न्यायालय ने कुछ आरोपियों के खिलाफ एससी/एसटी अधिनियम के तहत दर्ज मुकदमे रद्द किए

न्यायालय ने कुछ आरोपियों के खिलाफ एससी/एसटी अधिनियम के तहत दर्ज मुकदमे रद्द किए

न्यायालय ने कुछ आरोपियों के खिलाफ एससी/एसटी अधिनियम के तहत दर्ज मुकदमे रद्द किए
Modified Date: December 8, 2025 / 10:01 pm IST
Published Date: December 8, 2025 10:01 pm IST

नयी दिल्ली, आठ दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कथित अपराध के लिए कुछ आरोपियों के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही सोमवार को रद्द कर दिया और कहा कि शिकायतकर्ता के घर को ‘‘सार्वजनिक स्थल’’ नहीं माना जा सकता।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि पूर्ववर्ती भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत कथित अपराधों के लिए उनके खिलाफ कार्यवाही कानून के अनुसार जारी रहेगी।

पीठ ने आरोपियों द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस वर्ष जुलाई के आदेश को चुनौती देने के लिए दाखिल अपील पर फैसला सुनाया। उच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान अधीनस्थ अदालत के आदेश को बरकरार रखा था।

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अधीनस्थ अदालत ने आरोपियों को आईपीसी और अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, जिसे एससी/एसटी अधिनियम भी कहा जाता है, के तहत कथित अपराधों के लिए मुकदमे का सामना करने के लिए तलब किया था।

शीर्ष अदालत ने अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय ने माना था कि शिकायतकर्ता के बेटे को आरोपियों ने सार्वजनिक सड़क पर सबके सामने पीटा था, जिससे यह घटना एससी/एसटी अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपराध के दायरे में आती है।

पीठ ने एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(एस) का उल्लेख किया जो अत्याचार के अपराधों के लिए दंड से संबंधित है और सार्वजनिक स्थान या लोगों के समक्ष किसी भी स्थान पर जातिसूचक शब्त कहने संबंधित है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले में शिकायतकर्ता द्वारा पहले दायर आवेदन से पता चलता है कि कथित जातिसूचक शब्द शिकायतकर्ता के परिसर के अंदर अपीलकर्ताओं द्वारा इस्तेमाल किये गए थे।

पीठ ने कहा, ‘‘पहली नजर में यह परिस्थिति वैधानिक आवश्यकता को पूरा नहीं करती है कि दुर्व्यवहार ‘सरेआम किसी भी स्थान पर’ किया गया था, जो एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(एस) के तहत अपराध का एक अनिवार्य घटक है।’’

न्यायालय ने कहा ,‘‘शिकायतकर्ता का घर सार्वजनिक रूप से दृश्य नहीं माना जा सकता।’’

भाषा

धीरज संतोष

संतोष


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