संवेदनशील मामलों में अदालतों को दिन-प्रतिदिन की सुनवाई की प्रथा पर लौटना चाहिए: न्यायालय

संवेदनशील मामलों में अदालतों को दिन-प्रतिदिन की सुनवाई की प्रथा पर लौटना चाहिए: न्यायालय

  •  
  • Publish Date - September 25, 2025 / 09:06 PM IST,
    Updated On - September 25, 2025 / 09:06 PM IST

नयी दिल्ली, 25 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि विशेष रूप से संवेदनशील मामलों में, दिन-प्रतिदिन सुनवाई की प्रथा पूरी तरह से समाप्त कर दी गयी है और अदालतों को इसे पुनः अपनाना चाहिए।

न्यायालय ने त्वरित सुनवाई के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 में अंतर्निहित मानते हुए कहा कि सभी उच्च न्यायालयों को संबंधित जिला अदालतों के लाभ के लिए इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा करने के वास्ते एक समिति गठित करनी चाहिए।

न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि दिन-प्रतिदिन के आधार पर सुनवाई करने की पुरानी प्रथा पर लौटने के लिए, पुलिस के कामकाज के तरीके सहित वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक परिदृश्य को समझना आवश्यक है।

पीठ ने 22 सितंबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘विशेष तौर पर महत्वपूर्ण या संवेदनशील मामलों में दिन-प्रतिदिन सुनवाई करने की लगभग तीस साल पुरानी प्रथा पूरी तरह समाप्त कर दी गयी है। हमारा मानना ​​है कि अब समय आ गया है कि अदालतें इस प्रथा को (फिर से) अपनाएं।’’

शीर्ष अदालत का यह आदेश सीबीआई की उस याचिका पर आया है, जिसमें पिछले साल सितंबर में बलात्कार के एक मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा एक आरोपी को ज़मानत देने के आदेश को चुनौती दी गई थी।

पीठ ने कहा कि न्याय प्रणाली में देरी के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारकों में से एक है आपराधिक मुकदमों की निरंतर सुनवाई न करना। पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में भी अदालतें विवेकाधिकार का इस्तेमाल करके साक्ष्यों पर ‘‘टुकड़ों में’’ विचार करती हैं और मामले प्रभावी रूप से कई महीनों या वर्षों तक चलते रहते हैं।

पीठ ने कहा कि कानूनी स्थिति यह है कि एक बार गवाहों के बयान के बाद संबंधित अदालत को दिन-प्रतिदिन सुनवाई जारी रखनी चाहिए, जब तक कि सभी गवाहों के बयान न हो जाए, सिवाय उन गवाहों के जिन्हें सरकारी वकील ने छोड़ दिया हो।

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश अपने प्रशासनिक पक्ष को संबंधित जिला न्यायपालिकाओं को एक परिपत्र जारी करने का निर्देश दे सकते हैं, जिसमें अन्य बातों के अलावा इस बात का भी जिक्र किया गया हो कि प्रत्येक जांच या सुनवाई शीघ्रता से की जानी चाहिए।

पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई 31 दिसंबर तक पूरी की जाए।

भाषा सुरेश अविनाश

अविनाश