उच्च न्यायालय ने 182 साल जेल की सजा टाल रहे रियल एस्टेट कारोबारी की पैरोल बढ़ाने से इनकार किया

उच्च न्यायालय ने 182 साल जेल की सजा टाल रहे रियल एस्टेट कारोबारी की पैरोल बढ़ाने से इनकार किया

  •  
  • Publish Date - February 15, 2024 / 06:27 PM IST,
    Updated On - February 15, 2024 / 06:27 PM IST

नयी दिल्ली, 15 फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने भूखंड खरीददारों से ठगी करने के मामले में 182 साल जेल की सजा को टाल रहे एक रियल एस्टेट कारोबारी की ‘पैरोल’ बढ़ाने से इनकार करते हुए कहा है कि इसे प्रदान करना एक ‘विशेषाधिकार’ है, नियमित रूप से विस्तारित किये जाने वाला ‘अधिकार’ नहीं।

उच्च न्यायालय ने कहा कि निर्धारित की गई सजा से बचा नहीं जा सकता और महज इस आधार पर पैरोल को अनंत काल तक जारी रखने की व्यक्ति द्वारा की जा रही कोशिशें दिल्ली कारागार नियम, 2018 के तहत ‘फर्लो’ एवं ‘पैरोल’ प्रदान करने की योजना के खिलाफ होगी।

न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा, ‘‘…मौजूदा मामले में, याचिकाकर्ता दिल्ली कारागार नियम, 2018 के अनुरूप पैरोल प्रदान करने के लिए सक्षम प्राधिकार के समक्ष अर्जी लगाये बिना, कानूनन सुनाई गई सजा को वर्षों से टाल रहा है।’’

उन्होंने कहा कि रिट याचिकाओं के जरिये पैरोल के स्वत: विस्तार को नियमित नहीं माना जा सकता, जो करीब चार साल से जारी है।’’

तिरुपति एसोसिएट्स के राकेश कुमार की याचिका खारिज करते हुए उच्च न्यायालय का यह आदेश आया है। कुमार ने छह महीनों के पैरोल के लिए अनुरोध किया था।

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘पैरोल प्रदान करना एक विशेषाधिकार है, और उपरोक्त अवधि के लिए नियमित रूप से पैरोल अधिकार नहीं है…।’’

याचिकाकर्ता के अनुसार, वह सात साल हिरासत में रह चुके हैं। उन्हें एक उपभोक्ता मंच ने भूखंड खरीददारों के एक संघ द्वारा दायर किये गये मामले में 182 साल जेल की सजा सुनाई है।

कुमार ने दलील दी कि उच्च न्यायालय के 13 सितंबर 2019 के एक आदेश पर उन्हें पैरोल पर रिहा किया गया और मामले को सुलझाने के उनके आश्वासन के मद्देनजर समय-समय पर इसे विस्तारित किया गया। ऐसा पिछला आदेश इस साल 10 जनवरी को जारी किया गया था।

उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कानूनी कार्यवाही को आगे बढ़ाने और उसके लिए पैसों का इंतजाम करने के वास्ते पैरोल बढ़ाने का अनुरोध किया था।

जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष 1998 के मामले के विवरण के अनुसार, रियल एस्टेट फर्म और उसके सहयोगियों के खिलाफ 344 शिकायतें दर्ज की गईं, जिन्हें ब्याज सहित बकाया राशि का भुगतान करने और प्रत्येक शिकायतकर्ता को 20,000 रुपये मुआवजा एवं मुकदमा खर्च के रूप में 500 रुपये देने का निर्देश दिया गया था।

शिकायतकर्ताओं द्वारा भूखंड खरीदने के लिए रियल एस्टेट कारोबारी के पास 90.79 लाख रुपये जमा किये गए थे।

भाषा सुभाष रंजन

रंजन