‘डीएनए रिपोर्ट पितृत्व साबित करती है, सहमति का अभाव सिद्ध नहीं करती’: अदालत

‘डीएनए रिपोर्ट पितृत्व साबित करती है, सहमति का अभाव सिद्ध नहीं करती’: अदालत

‘डीएनए रिपोर्ट पितृत्व साबित करती है, सहमति का अभाव सिद्ध नहीं करती’: अदालत
Modified Date: April 3, 2025 / 05:02 pm IST
Published Date: April 3, 2025 5:02 pm IST

नयी दिल्ली, तीन अप्रैल (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि डीएनए रिपोर्ट से केवल पितृत्व साबित होता है, सहमति का अभाव नहीं। इसी के साथ उसने दुष्कर्म के जुर्म में 10 साल की जेल की सजा पाने वाले व्यक्ति को बरी कर दिया।

न्यायमूर्ति अमित महाजन ने कहा कि डीएनए रिपोर्ट से भले ही यह साबित हो गया कि महिला की कोख से जन्मे शिशु का जैविक पिता आरोपी ही है, लेकिन गर्भावस्था अकेले बलात्कार का अपराध सिद्ध करने के लिए “पर्याप्त नहीं” है, जब तक कि यह भी न साबित किया जाए कि संबंध सहमति के बिना बनाया गया था।

उच्च न्यायालय ने 20 मार्च को पारित फैसले में कहा, “डीएनए रिपोर्ट केवल पितृत्व को साबित करती है-यह सहमति के अभाव को सिद्ध नहीं करती है और न ही कर सकती है। यह एक सर्वविदित कानून है कि आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 376 (बलात्कार) के तहत अपराध की सिद्धि सहमति के अभाव पर टिकी हुई है।”

 ⁠

फैसले के मुताबिक, घटना से जुड़ी परिस्थितियों ने अभियोजन पक्ष के मामले को “अत्यधिक असंभाव्य” बना दिया है।

न्यायमूर्ति महाजन ने फैसले में इस संभावना से भी इनकार नहीं किया कि बिना किसी स्पष्टीकरण के देरी से दर्ज की गई प्राथमिकी “सामाजिक दबाव का नतीजा” हो सकती है।

उन्होंने कहा, “इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरोप सहमति से बने संबंध को बलात्कार के रूप में स्थापित करने के लिए लगाए गए थे, ताकि आरोप लगाने वाली महिला और उसके परिवार को समाज के तानों का सामना न करना पड़े।”

न्यायमूर्ति महाजन ने कहा कि मामले में संदेह का लाभ याचिकाकर्ता को मिलना चाहिए।

उन्होंने कहा, “कानून बेशक केवल चुप्पी को सहमति नहीं मानता। लेकिन यह उचित संदेह से परे सबूतों के अभाव में दोषी भी नहीं ठहराता। इस मामले में संदेह बना हुआ है – अटकलों के कारण नहीं, बल्कि सबूत के अभाव के कारण।”

उच्च न्यायालय ने कहा कि मुकदमे के दौरान न सिर्फ महिला के बयानों में विरोधाभास पाया गया, बल्कि बलात्कार की पुष्टि करने के लिए चिकित्सा और फोरेंसिक साक्ष्य भी नहीं मिले।

महिला ने आरोप लगाया था कि उसके पड़ोस में रहने वाले युवक ने लूडो खेलने के बहाने उसे अपने घर बुलाकर कई बार उससे बलात्कार किया।

महिला ने दावा किया था कि आरोपी ने आखिरी बार 2017 के अक्टूबर या नवंबर महीने में उससे बलात्कार किया था। बाद उसे पता चला कि वह गर्भवती है।

जनवरी 2018 में युवक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई और दिसंबर 2022 में अदालत ने उसे दोषी करार देते हुए 10 साल की जेल की सजा सुनाई।

युवक ने अपनी सजा को इस आधार पर चुनौती दी कि उसने महिला की सहमति से उसके साथ संबंध बनाए थे।

भाषा पारुल सुरभि

सुरभि


लेखक के बारे में