द्रोपदी मुर्मू : धार्मिक, मृदुभाषी मुर्मू राजनीति के सर्वोच्च सोपान की ओर अग्रसर

द्रोपदी मुर्मू : धार्मिक, मृदुभाषी मुर्मू राजनीति के सर्वोच्च सोपान की ओर अग्रसर

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  • Publish Date - June 22, 2022 / 06:53 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:18 PM IST

नयी दिल्ली, 22 जून (भाषा) एक आदिवासी नेता से पार्षद और झारखंड की पूर्व राज्यपाल से अब भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार- द्रोपदी मुर्मू- अपनी निजी दुश्वारियों को पार करते हुए राजनीति के सर्वोच्च सोपान पर पहुंचने की ओर अग्रसर हैं और यदि सब कुछ ठीक रहा तो उनकी अगली मंजिल राष्ट्रपति भवन होगा।

चमक दमक और प्रचार से दूर रहने वाली मुर्मू ब्रह्मकुमारियों की ध्यान तकनीकों की गहन अभ्यासी हैं। उन्होंने यह गहन अध्यात्म और चिंतन का दामन उस वक्त पकड़ा था, जब उन्होंने 2009 से लेकर 2015 तक की छह वर्षों की अवधि में अपने पति, दो बेटों, मां और भाई को खो दिया था।

मुर्मू इस पद के लिए चुने जाने की स्थिति में भारत की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति बन जाएंगी। अपने गृह राज्य ओडिशा के मयूरभंज जिले में स्थित रायरंगपुर में पुरंदेश्वर शिव मंदिर के फर्श पर झाड़ू लगाती बुधवार को जारी मुर्मू (64) की तस्वीर उनके व्यक्तित्व के साथ तालमेल बिठाती नजर आ रही थी।

अठारह जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में मंगलवार को सत्तारूढ़ गठबंधन की ओर से उम्मीदवार चुने जाने के बाद राष्ट्रीय सुर्खियों में आई मुर्मू ने भगवान जगन्नाथ, शिव और हनुमान के मंदिरों में भी पूजा-अर्चना की।

भाजपा नेता और कालाहांडी से लोकसभा सदस्य बसंत कुमार पांडा ने कहा, ‘‘वह गहरी आध्यात्मिक और मृदुभाषी व्यक्ति हैं।’’

रायरंगपुर से ही उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ राजनीति के सोपान पर पहला पहला कदम रखा था। वह 1997 में रायरंगपुर अधिसूचित क्षेत्र परिषद में पार्षद बनाई गईं और 2000 से 2004 तक ओडिशा की बीजू जनता दल (बीजद)-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री भी रहीं। उन्हें 2015 में झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया और वह 2021 तक इस पद पर रहीं।

बीस जून, 1958 को जन्मीं मुर्मू राज्य की पहली महिला राज्यपाल थीं। विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा पर यदि वह जीत हासिल कर लेती हैं तो वह ऐसी राष्ट्रपति भी बनेंगी, जिनका जन्म स्वतंत्रता के बाद हुआ है।

ओडिशा भाजपा के पूर्व अध्यक्ष मनमोहन सामल ने कहा, ‘‘वह (मुर्मू) बहुत तकलीफों और संघर्षों से गुजरी हैं, लेकिन (वह) विपरीत परिस्थितियों से नहीं घबराती हैं।’’

सामल ने कहा कि संथाल परिवार में जन्मी मुर्मू संथाली और ओडिया भाषाओं में एक उत्कृष्ट वक्ता हैं। उन्होंने कहा कि मुर्मू ने क्षेत्र में सड़कों और बंदरगाहों जैसे बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है।

ओडिशा में अपने पैर जमाने का प्रयास कर रही भाजपा का ध्यान आदिवासी बहुल मयूरभंज पर हमेशा से रहा है। बीजद ने 2009 में भाजपा से नाता तोड़ लिया था और तब से इसने ओडिशा पर अपनी पकड़ मजबूत कर रखी है।

झारखंड के राज्यपाल के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, मुर्मू ने अपना समय रायरंगपुर में ध्यान चिंतन और सामाजिक कार्यों में समर्पित किया। उन्होंने कहा, ‘‘मैं हैरान भी हूं और खुश भी। दूरस्थ मयूरभंज जिले की एक आदिवासी महिला होने के नाते मैंने शीर्ष पद के उम्मीदवार बनने के बारे में कभी सोचा नहीं था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस अवसर की उम्मीद नहीं कर रही थी। मैं 2015 में पड़ोसी राज्य झारखंड की राज्यपाल बनने के बाद छह साल से अधिक समय से किसी भी राजनीतिक कार्यक्रम में शामिल नहीं हुई हूं। मुझे उम्मीद है कि सभी मेरा समर्थन करेंगे।’’

देश के सबसे दूरस्थ और अविकसित जिलों में से एक मयूरभंज की रहने वाली मुर्मू ने भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और ओडिशा सरकार में सिंचाई तथा बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में नौकरी भी की।

उन्होंने रायरंगपुर स्थित श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में मानद सहायक शिक्षक के रूप में भी काम किया।

मुर्मू को 2007 में ओडिशा विधानसभा द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

मुर्मू की बेटी इतिश्री ओडिशा के एक बैंक में काम करती हैं।

भाषा

सुरेश नरेश

नरेश