VB G RAM G Bill FAQ, image source: LS tv
नईदिल्ली: VB G RAM G bill FAQ: संसद ने शीतकालीन सत्र में विकसित भारत – जी राम जी विधेयक 2025 यानि VB G RAM G विधेयक पारित कर दिया है। जिसके बाद से ही कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष इस विधेयक को लेकर केंद्र सरकार पर हमलावर है। वहीं कुछ लोग यह भी जानना चाहते हैं कि आखिर इस विधेयक में क्या खामी है जिसके कारण विपक्ष सरकार को लगातार घेर रही है। इस खबर में हम आपको आपके हर सवाल का जवाब देने जा रहे हैं।
“विकसित भारत – जी राम जी” विधेयक यानी “विकसित भारत – रोजगार एवं आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण)” विधेयक। इसमें बीस वर्ष पुराने मनरेगा कानून की सारी कमियों को हटाकर एक आधुनिक व्यवस्था बनाई गई है। इसके तहत ऐसे ग्रामीण परिवार, 18 साल से अधिक आयु वाले सदस्य, अकुशल श्रम करना चाहते हैं, उन्हें हर वित्तीय वर्ष (01 अप्रैल से 31 मार्च के दौरान) 125 दिनों के रोजगार की गारंटी दी जाएगी। मनरेगा कानून में केवल 100 दिन ही रोजगार मिलने की गारंटी थी। इस बिल का उद्देश्य रोजगार पैदा करने के साथ-साथ गाँवों में मजबूत और टिकाऊ बुनियादी ढांचा बनाना है, जैसे
• जल से संबंधित कार्यों के माध्यम से जल सुरक्षा
• कोर ग्रामीण अवसंरचना (Infrastructure)
• आजीविका से संबंधित अवसंरचना
• अत्यधिक मौसमीय घटनाओं के प्रभाव को कम करने हेतु विशेष कार्य
इस बिल के तहत बनाई गई सभी परिसंपत्तियों को “विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना स्टैक” में शामिल किया जाएगा। इससे ग्रामीण विकास से जुड़े सभी काम एक ही व्यवस्था के तहत जुड़ेंगे। इससे भविष्य में सकारात्मक रणनीति बनाने में मदद मिलेगी।
• मनरेगा की सभी कमियों को हटा दिया गया है।
• मनरेगा में 100 दिन काम मिलता था,अब 125 दिन मिलेगा। इससे ग्रामीण परिवारों को ज्यादा आय सुरक्षा मिलेगी।
• मनरेगा के तहत काम अलग-अलग श्रेणियों में फैले हुए थे। नए बिल में काम को चार मुख्य प्रकार – जल सुरक्षा, ग्रामीण अवसंरचना, आजीविका से जुड़े काम और मौसम से जुड़े जोखिमों को कम करने वाले काम तक सीमित किया गया है।
• इस बिल में ग्राम पंचायतों द्वारा बनाए गए विकसित ग्राम पंचायत प्लान को अनिवार्य किया गया है। इन योजनाओं को PM गति शक्ति जैसी राष्ट्रीय प्रणालियों से जोड़ा जाएगा।
यह बिल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए बनाया गया है। इसके तहत रोजगार बढ़ेगा, आय बढ़ेगी और गांवों में टिकाऊ निर्माण होगा।
• जल से जुड़े कार्यों को प्राथमिकता दी गई है। मिशन अमृत सरोवर के तहत 68,000+ जल निकाय बनाए या पुनर्जीवित किए जा चुके हैं। इससे खेती और भूजल को लाभ हुआ है।
• सड़कों और संपर्क सुविधाओं से बाजार तक पहुंच बेहतर होगी। भंडारण, बाजार और उत्पादन से जुड़ी सुविधाएं आय के नए साधन पैदा करेंगी।
• जल संचयन, बाढ़ निकासी और मृदा संरक्षण से ग्रामीण आजीविकाएं सुरक्षित होंगी।
• 125 दिनों की गारंटी से गांव की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।
• अधिक ग्रामीण अवसरों और टिकाऊ निर्माण से पलायन की संकट में कमी आएगी।
• डिजिटल उपस्थिति, डिजिटल भुगतान और डेटा-आधारित योजना से व्यवस्था अधिक प्रभावी बनेगी, फर्जीवाड़ा रूकेगा।
• इस बिल से किसानों को श्रमिकों की उपलब्धता और बेहतर कृषि सुविधाओं का लाभ मिलेगा।
• राज्य 60 दिनों की अवधि तय कर सकते हैं। इस दौरान बुआई और कटाई के समय योजना के तहत काम रोका जाएगा। इससे कृषि कार्यों के लिए श्रमिकों की कमी नहीं होगी।
• चरम कृषि अवधि में सार्वजनिक काम रुकने से मजदूरी दर में तेज बढ़ोतरी नहीं होगी। इससे खेती की लागत नियंत्रित रहेगी।
• जल और सिंचाई से जुड़े कार्यों से सिंचाई, भूजल और बहु फसली क्षमता में सुधार होगा।
• बेहतर संपर्क और भंडारण से किसानों को फसल संभालने और बाजार तक पहुंचने में मदद मिलेगी।
• बाढ़ और जल संरक्षण से फसलों की सुरक्षा बढ़ेगी।
• मजदूरों को इस बिल से 25 दिन ज्यादा काम की गारंटी, बेहतर आय और सुरक्षित व्यवस्था मिलेगी।
• 125 दिनों की गारंटी से लगभग 25% अधिक संभावित कमाई।
• विकसित ग्राम पंचायत प्लान के कारण काम पहले से तय और चिन्हित रहेगा।
• 2024–25 में 99.94 प्रतिशत भुगतान डिजिटल हुआ है। यह डिजिटल भुगतान जारी रहेगा। आधार और बायोमेट्रिक सत्यापन से मजदूरी का पैसा सीधे खाते में मिलेगा, जिससे मजदूरी की चोरी समाप्त होगी।
• अगर काम नहीं दिया जाता है, तो बेरोजगारी भत्ता देना अनिवार्य होगा।
• मजदूरों द्वारा बनाई गई परिसंपत्तियों का लाभ उन्हें सीधे मिलेगा।
• मनरेगा वर्ष 2005 की परिस्थितियों के अनुसार बनाया गया था। अब ग्रामीण भारत में बड़ा बदलाव आ चुका है।
• गरीबी दर 2011–12 में 25.7% थी, जो 2023–24 में घटकर 4.86% रह गई है। यह बदलाव MPCE और NABARD RECSS सर्वेक्षणों से भी दिखता है।
• आज सामाजिक सुरक्षा मजबूत है, संपर्क सुविधाएं बेहतर हुई हैं और डिजिटल पहुंच बढ़ी है। ऐसे में पुराना ढांचा आज की ग्रामीण अर्थव्यवस्था से मेल नहीं खा रहा था।
इसी कारण नए और अधिक प्रासंगिक रोजगार ढांचे की जरूरत पड़ी।
• मानक फंडिंग से रोजगार की गारंटी बिना कम किए, इसे भारत सरकार की अन्य योजनाओं के बजटीय मॉडल के अनुरूप बनाया गया है।
• मांग आधारित फंडिंग में बजट अनिश्चित रहता था। मानक फंडिंग एक नपे-तुले मानक पर आधारित होती है। इससे तर्कसंगत योजना पहले से तय की जा सकती है।
• हर पात्र श्रमिक को रोजगार या बेरोजगारी भत्ता देने की गारंटी बनी रहती है।
• नहीं, रोजगार के दिन 100 से बढ़ाकर 125 कर दिए गए हैं।
• वित्तीय वर्ष 2024–25 में आवंटन, मांग के अनुरूप रहा, यानी अनुमान सटीक रहा।
• केंद्र और राज्य दोनों की संयुक्त जिम्मेदारी तय है।
• आपदा के समय विशेष छूट का प्रावधान है।
• काम न मिलने पर बेरोजगारी भत्ता अनिवार्य है।
• पहले से रोजगार का अधिकार ज्यादा सुरक्षित है।
VB G RAM G bill FAQ: हां, कई सुधार किए गए थे , लेकिन उसमें कई ऐसी परेशानियां थी जिसे दूर नहीं किया जा सका। 2013–14 से 2025–26 के दौरान सुधार के कई प्रयास हुए उसी का कुछ सकारात्मक परिणाम दिखा –
• महिलाओं की भागीदारी 48% से 56.74% हुई
• आधार से जुड़े सक्रिय श्रमिकों की संख्या 76 लाख से बढ़कर 12.11 करोड़ हुई
• APBS यानी आधार-आधारित भुगतान प्रणाली से पहले कोई श्रमिक नहीं जुड़ें थे, अब 11.93 करोड़ जुड़ें हैं।
• जियो-टैग्ड परिसंपत्तियाँ पहले एक भी नहीं थीं अब 6.44 करोड़+ हैं।
• ई-भुगतान 37% से बढ़कर 99.99% हुआ
• व्यक्तिगत परिसंपत्तियाँ 17.6% से बढ़कर 62.96% हुईं
इतने सुधार हुए, बेहतर परिणाम भी दिखा लेकिन फिर भी गबन जारी रहा, कमजोर निगरानी और खर्च के अनुरूप परिसंपत्तियां न बनने जैसी समस्याएं बनी रहीं, इससे यह साफ हो गया कि मनरेगा जैसी व्यवस्था अपनी सीमा पर पहुंच चुकी थी। इसीलिए VB–G RAM G बिल की आवश्यकता महसूस की गई।
• पश्चिम बंगाल के 19 जिलों में जांच के दौरान फर्जी काम, नियम उल्लंघन और धन के दुरुपयोग पाए गए, जिसके कारण फंडिंग रोकनी पड़ी।
• 2025–26 में 23 राज्यों की निगरानी में ऐसे काम मिले जो स्थल पर मौजूद नहीं थे या खर्च के अनुसार नहीं थे।
• जहां पर श्रमिकों से काम कराना था वहाँ पर मशीनों का उपयोग हुआ और NMMS उपस्थिति को बड़े पैमाने पर दरकिनार किया गया।
• 2024–25 में 193.67 करोड़ रुपये का गबन दर्ज किया गया।
• महामारी के बाद केवल 7.61% परिवार ही 100 दिन का काम पूरा कर पाए।
इन समस्याओं के कारण नया ढांचा जरूरी हो गया।
• AI-आधारित धोखाधड़ी पहचान
• निगरानी हेतु केंद्रीय एवं राज्य स्तरीय संचालन समितियाँ
• ग्रामीण विकास के चार प्रमुख स्तंभों पर फोकस
• पंचायतों की निगरानी भूमिका का सुदृढ़ीकरण
• GPS/मोबाइल-आधारित निगरानी
• रियल-टाइम MIS डैशबोर्ड
• साप्ताहिक सार्वजनिक जानकारी
• हर ग्राम पंचायत में साल में दो बार गहन जांच-पड़ताल
• ग्रामीण रोजगार स्थानीय विषय है।
• अब केंद्र और राज्य लागत और जिम्मेदारी साझा करेंगे।
• ग्राम पंचायतें स्थानीय जरूरत के अनुसार योजना बनाएंगी।
• केंद्र मानक तय करेगा और राज्य लागू करेंगे, जवाबदेही तय होगी तो व्यवस्था-तंत्र मजबूत होगा।
नहीं, इसे संतुलित बनाया गया है और केंद्र सरकार राज्यों के प्रति संवेदनशील है, और इसी अनुसार नए विधेयक को बनाया गया है।
• सामान्य राज्यों के लिए केंद्र और राज्य सरकार का खर्च का अनुपात 60:40 रहेगा।
• उत्तर पूर्वी और हिमालयी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों के लिए यह अनुपात 90:10 होगा।
• बिना विधानमंडल वाले केंद्रशासित प्रदेशों के लिए पूरा खर्च केंद्र सरकार वहन करेगी।
• पहले भी राज्य सामग्री लागत का 25% वहन करते थे।
• आपदा के समय अतिरिक्त सहायता का प्रावधान रहेगा।
• बेहतर निगरानी से लंबे समय में गबन से होने वाले नुकसान में कमी आएगी।
• इससे बुआई और कटाई के समय श्रमिक उपलब्ध रहते हैं।
• मजदूरी दर में तेज बढ़ोतरी नहीं होती, किसान भाइयों को आसानी से उचित दर पर श्रमिक मिल जाते हैं।
• यह 60 दिनों की ‘नो वर्क’ अवधि लगातार नहीं होते। इन्हें जरूरत के अनुसार अलग-अलग समय पर तय किया जा सकता है।
• बाकी समय में 125 दिनों की गारंटी बनी रहती है।
• श्रमिकों का कृषि कार्यों में रुझान बढ़ता है।
• इससे किसान और श्रमिक दोनों को लाभ होता है।