कानपुर: how do you get hiv एचआईवी संक्रमितों की संख्या भारत सहित दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि NACO अन्य संस्थाएं एचआई संक्रमितों की मदद कर रही है और दुनियाभर के वैज्ञानिक इस जानलेवा बीमारी की दवा और इलाज ढूंढने में लगे हुए हैं। वहीं, इस बीच एड्स पीड़ितों का चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। जीएसवीएम के मेडिसिन विभाग ने एक स्टडी के बाद ये दावा किया है कि शादीशुदा और कम आय वाले ज्यादा एचआईवी संक्रमण के शिकार हो रहे हैं।
how do you get hiv मिली जानकारी के अनुसार जीएसवीएम के मेडिसिन विभाग ने 100 एचआईवी पीड़ितों को स्टडी का का हिस्सा बनाया गया। 18-40 और 40-60 वर्ष के संक्रमितों की दो कैटगरी बनाई गईं। शोध में पाया कि संक्रमण के दो हफ्ते बाद 18 से 40 साल वाले युवकों में तेजी से इम्युनिटी गिरती है लेकिन जब एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी शुरू होती तो तेजी से बढ़ने लगती है। जीएसवीएम के प्रोफेसर डॉ. एसके गौतम के मुताबिक एचआईवी संक्रमितों की इम्युनिटी के साथ बीमारी के ट्रेंड का पता चलता है।
– 18-40 साल के 72 फीसदी मरीजों में संक्रमण मिला
– 73 फीसदी शादीशुदा (तलाकशुदा और बेवा समेत), सिर्फ 27 अविवाहित मिले
– 57 फीसदी बीमार पांच से 10 हजार रुपये आय वाले रहे।
– पुरुष और महिला का औसत 7030 रहा।
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एचआईवी वेलफेयर सोसाइटी ऑफ इंडिया के महासचिव डॉ. राहुल मिश्र ने कहा कि एचआईवी संक्रमितों को समाज और डॉक्टर बराबरी का दर्जा दें, उन्हें आम इंसान ही समझें। इस बीमारी को लड़कर हराया जाना संभव है। एचआईवी-एड्स से लड़ने वाले ये तीन युवक बानगी भर हैं। बीमारी का पता लगने के बाद हार नहीं मानी और जंग लड़कर अपने हिस्से की खुशियां पा ली हैं। इन मरीजों के संघर्ष की कहानियां ऐसे लोगों के लिए प्रेरक साबित हो रही हैं। वहीं, एचआईवी सोसाइटी के सदस्य भी उनकी लड़ाई में खुलकर साथ ही नहीं दे रहे हैं, मदद भी कर रहे हैं।
बताया जा रहा है कि जाजमऊ निवासी युवक को चार साल पहले शादी के बाद पता चला कि एचआईवी संक्रमण है। ऐसे में बीमारी से लड़ने के लिए इलाज शुरू कर दिया। वायरल लोड कम हो गया और सामान्य जिंदगी जीने लगा। इसी साल उसकी बेगम के गर्भवती होने का पता चला तो एचआईवी वेलफेयर सोसाइटी के सदस्यों से संपर्क किया। बेगम की डिलीवरी कराने के लिए जब कोई डॉक्टर तैयार नहीं हुई तो उसने बेंगलुरु भेज दिया।
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एक ने कहा कि 1997 में मुंबई में जन्म हुआ तो हमारे माता-पिता को एचआईवी संक्रमण का पता चला। मुझे लेकर एचआईवी वेलफेयर सोसाइटी ऑफ इंडिया के पास गए। इलाज शुरू किया गया तो वायरल लोड कम होने लगा। सोसाइटी के महासचिव डॉ.राहुल मिश्र ने इलाज की जिम्मेदारी ली। एड्स का इलाज करने के साथ-साथ पढ़ाई की और एमबीए कर बैंक में पीओ परीक्षा पास कर नियुक्त हो गए। 2007 में कानपुर आ गए। एचआईवी को हरा आम लोगों की तरह गृहस्थी चला रहे।
लखनऊ के रहने वाले शख्स को 2007 में एड्स संक्रमित होने का पता लगा तो तनाव में आ गए। इसके बावजूद हौसला नहीं खोया। तय किया कि शादी संक्रमित महिला से ही करेंगे तो कानपुर आ गए। यहां आकर एचआईवी वेलफेयर सोसाइटी के सदस्यों से मिले। 2008 में शादी की और कहा कि बीमारी से लड़ेंगे इसलिए संतान पैदा नहीं करेंगे। एड्स संक्रमित दंपति ने बच्चे को गोद लिया और अब बीमारी से बेहाल मरीजों का हौसला बढ़ा रहे हैं।
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