(सुदिप्तो चौधरी)
कोलकाता, 25 जनवरी (भाषा) विश्व भारती द्वारा शांतिनिकेतन में कथित रूप से “अनधिकृत रुप से’ कब्जाए गए भूखंड के एक हिस्से को लौटाने के लिए कहने के बाद नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन बुधवार को कहा कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालय उन्हें उस जगह से हटाने की कोशिश करने के लिए अचानक ‘इतना सक्रिय’ क्यों हो गया है।
विश्वविद्यालय से इस बाबत एक पत्र मिलने के एक दिन बाद सेन ने कहा कि वह इस कदम के पीछे की ‘राजनीति’ को नहीं समझ पा रहे हैं।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने जोर देकर कहा कि शांति निकेतन में उनके पास जो जमीन है, उनमें से अधिकांश को उनके पिता ने 1940 के दशक में बाजार से खरीदा था, जबकि कुछ अन्य भूखंडों को पट्टे पर लिया था।
उन्होंने कहा, “ मैं उनकी (विश्वविद्यालय के अधिकारियों की) सोच में कोई गहराई नहीं देख सका। मैं विश्व भारती विश्वविद्यालय के इस रवैये के पीछे की राजनीति को नहीं भी समझता हूं।’’
प्रोफेसर सेन ने पीटीआई-भाषा से कहा, “ यह मेरा आवास है जो 1940 के दशक में विश्वभारती से पट्टे पर ली गई जमीन पर बना है। जमीन हमें 100 साल के लिए पट्टे पर दी गई थी। कुछ जमीन मेरे पिता ने बाजार से नियम-कायदों का पालन करते हुए खरीदी थी।”
अर्थशास्त्री ने कहा कि पास के सूरुल के जमींदारों से भूखंड खरीदे गए थे और सौदे से संबंधित आवश्यक दस्तावेज (सरकारी) अधिकारियों को सौंपे जा चुके हैं।
उन्होंने कहा, “ मुझे इस मामले में अपना समय बर्बाद करने का कोई कारण नजर नहीं आता। यह समझना बहुत मुश्किल है कि विश्व भारती अचानक मुझे (यहां से) हटाने की कोशिश में सक्रिय क्यों हो गया है।”
विश्व भारती ने मंगलवार को सेन से शांतिनिकेतन में जमीन के एक हिस्से को सौंपने को कहा था और दावा किया था कि भूमि के इस हिस्से पर उन्होंने अनधिकृत तरीके से कब्जा किया हुआ है।
भाषा नोमान माधव
माधव
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