सन 1965 के युद्ध में तत्कालीन प्रधानमंत्री शास्त्री ने निर्णायक नेतृत्व प्रदान किया: राजनाथ

सन 1965 के युद्ध में तत्कालीन प्रधानमंत्री शास्त्री ने निर्णायक नेतृत्व प्रदान किया: राजनाथ

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  • Publish Date - September 19, 2025 / 07:47 PM IST,
    Updated On - September 19, 2025 / 07:47 PM IST

(तस्वीरों के साथ)

नयी दिल्ली, 19 सितंबर (भाषा) रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और भारतीय सैनिकों की सराहना करते हुए शुक्रवार को कहा कि यह राष्ट्र की ताकत की परीक्षा थी।

सिंह ने कहा कि शास्त्री जी के दृढ़ इच्छाशक्ति वाले नेतृत्व के कारण ही भारत 1965 में अनिश्चितता और चुनौतियों का सामना करने में सफल रहा, क्योंकि उन्होंने न केवल निर्णायक राजनीतिक नेतृत्व प्रदान किया, बल्कि पूरे राष्ट्र का मनोबल भी बढ़ाया।

रक्षा मंत्री एक कार्यक्रम में 1965 के युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों और शहीद नायकों के परिजनों के साथ बातचीत कर रहे थे।

इस बात पर जोर देते हुए कि भारतीयों ने बार-बार यह साबित किया है कि देश अपना भाग्य स्वयं बनाता है, सिंह ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को इस दृढ़ संकल्प का एक शानदार उदाहरण बताया।

उन्होंने कहा, ‘‘ऑपरेशन सिंदूर ने हमारे दुश्मनों को दिखा दिया कि हम कितने मज़बूत हैं। जिस समन्वय और साहस के साथ हमारी सेनाओं ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया, वह इस बात का प्रमाण है कि जीत अब हमारे लिए कोई अपवाद नहीं है; यह हमारी आदत बन गई है। हमें इस आदत को हमेशा बनाए रखना चाहिए।’’

हालाँकि, रक्षा मंत्री के संबोधन का मुख्य आकर्षण 1965 के युद्ध पर उनका अवलोकन था।

सिंह ने कहा, ‘‘कोई भी युद्ध केवल युद्ध के मैदान में नहीं लड़ा जाता; युद्ध में विजय पूरे राष्ट्र के सामूहिक संकल्प का परिणाम होती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘1965 के उस दौर में, भारत अनिश्चितताओं और चुनौतियों का सामना करने में कामयाब रहा, जिसका श्रेय लाल बहादुर शास्त्री जी के दृढ़-इच्छाशक्ति वाले नेतृत्व को भी जाता है। उन्होंने न केवल निर्णायक राजनीतिक नेतृत्व प्रदान किया, बल्कि पूरे राष्ट्र का मनोबल भी नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाया।’’

सिंह ने कहा, ‘‘विपरीत परिस्थितियों में भी हमने एकता का परिचय दिया और युद्ध जीता।’’

अपने संबोधन में रक्षा मंत्री ने 1965 के युद्ध के शहीद नायकों तथा उन लोगों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि भारत शक्ति परीक्षण में विजयी हो।

उन्होंने कहा, ‘‘पाकिस्तान ने सोचा था कि वह घुसपैठ, गुरिल्ला रणनीति और अचानक हमलों के माध्यम से हमें डरा सकता है, लेकिन उसे यह नहीं पता था कि प्रत्येक भारतीय सैनिक इस भावना के साथ मातृभूमि की सेवा करता है कि राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाएगा।’’

सिंह ने 1965 के युद्ध के दौरान लड़ी गई विभिन्न लड़ाइयों में भारतीय सैनिकों द्वारा प्रदर्शित ‘‘अद्वितीय वीरता और देशभक्ति’’ पर प्रकाश डाला, जिसमें असल उत्तर की लड़ाई, चाविंडा की लड़ाई और फिलोरा की लड़ाई शामिल थी।

रक्षा मंत्री ने परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद की अदम्य भावना और वीरता का विशेष उल्लेख किया, जिन्होंने असल उत्तर की लड़ाई के दौरान मशीन गन टैंक की निरंतर गोलाबारी के बीच दुश्मन के कई टैंकों को नष्ट करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे बहादुर अब्दुल हमीद ने हमें सिखाया कि बहादुरी हथियार के आकार की नहीं, बल्कि दिल के आकार की होती है। उनकी वीरता हमें सिखाती है कि सबसे कठिन परिस्थितियों में भी, साहस, संयम और देशभक्ति का संयोजन असंभव को भी संभव बना सकता है।’’

रक्षा मंत्री ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने किस प्रकार अपने दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘पहलगाम में हुआ कायराना आतंकवादी हमला आज भी हमारे दिलों में दर्द और शोक भर देता है। इसने हमें हिलाकर रख दिया, लेकिन हमारा मनोबल नहीं टूटा।’’

सिंह ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवादियों को ऐसा सबक सिखाने का संकल्प लिया, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।’’

पहलगाम आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत के बाद भारत ने सात मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में आतंकवादी बुनियादी ढांचे को निशाना बनाया गया।

इन हमलों के कारण चार दिन तक भीषण झड़पें हुईं, जो 10 मई को सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति के साथ समाप्त हुईं।

सिंह ने यह भी कहा कि एक राष्ट्र के रूप में भारत स्वतंत्रता के बाद से अपने पड़ोसियों के मामले में बहुत भाग्यशाली नहीं रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे सामने हमेशा किसी न किसी प्रकार की चुनौतियाँ आती रही हैं। लेकिन हम भारतीयों की यही विशेषता है कि हम इन चुनौतियों को भाग्य मानकर चुपचाप नहीं बैठे। हमने कड़ी मेहनत की और अपनी नियति स्वयं गढ़ी, अपना भविष्य स्वयं बनाया।’’

भाषा

नेत्रपाल दिलीप

दिलीप