Jagdeep Dhankhar On SC: 'सुपर संसद' की तरह काम कर रहे जज'... सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर भड़के धनखड़, बोले- न्यायपालिका नहीं दे सकती राष्ट्रपति को आदेश |

Jagdeep Dhankhar On SC: ‘सुपर संसद’ की तरह काम कर रहे जज’… सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर भड़के धनखड़, बोले- न्यायपालिका नहीं दे सकती राष्ट्रपति को आदेश

'सुपर संसद' की तरह काम कर रहे जज' Judiciary can't give directions to President of India, functioning as 'super parliament': Jagdeep Dhankhar

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Modified Date: April 18, 2025 / 12:22 AM IST
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Published Date: April 17, 2025 5:40 pm IST

नई दिल्ली: Jagdeep Dhankhar On SC: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बृहस्पतिवार को न्यायपालिका द्वारा राष्ट्रपति के निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने और ‘सुपर संसद’ के रूप में कार्य करने को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय लोकतांत्रिक ताकतों पर ‘परमाणु मिसाइल’ नहीं दाग सकता। धनखड़ ने न्यायपालिका के प्रति यह कड़ी टिप्पणी राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए की। कुछ दिन पहले ही उच्चतम न्यायालय ने राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ रखे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए समयसीमा तय की थी।

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Jagdeep Dhankhar On SC: उन्होंने ने कहा,‘‘इसलिए, हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यपालिका के कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।’’ उपराष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय को पूर्ण शक्तियां प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 142 को ‘‘न्यायपालिका को चौबीसों घंटे उपलब्ध लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल’’ करार दिया। उन्होंने कहा, ‘‘अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है और (जो) न्यायपालिका के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध है।’’

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संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को अपने समक्ष किसी भी मामले में ‘‘पूर्ण न्याय’’ सुनिश्चित करने हेतु आदेश जारी करने की शक्ति देता है। इस शक्ति को उच्चतम न्यायालय की ‘‘पूर्ण शक्ति’’ के रूप में भी जाना जाता है। धनखड़ ने कहा, ‘‘हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम किस दिशा में जा रहे हैं?’’ उन्होंने कहा, ‘‘देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना चाहिए। यह सवाल नहीं है कि कोई पुनर्विचार याचिका दायर करता है या नहीं। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र की कभी उम्मीद नहीं की थी। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जाता है और यदि ऐसा नहीं होता है, तो यह कानून बन जाता है।’’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि उनकी चिंताएं ‘‘बहुत उच्च स्तर’’ पर थीं और उन्होंने ‘‘अपने जीवन में’’ कभी नहीं सोचा था कि उन्हें ऐसा देखने को मिलेगा। धनखड़ ने कार्यक्रम में मौजूद लोगों को याद दिलाया कि भारत के राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है।

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उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रपति संविधान के संरक्षण, सुरक्षा और बचाव की शपथ लेते हैं। मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसद और न्यायाधीश सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं।’’ उप राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीश होने चाहिए…।’’ उन्होंने शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को रेखांकित करते हुए कहा कि जब सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है, तो सरकार संसद के प्रति तथा चुनावों में जनता के प्रति जवाबदेह होती है। धनखड़ ने कहा, ‘‘जवाबदेही का एक सिद्धांत काम कर रहा है। संसद में आप सवाल पूछ सकते हैं… लेकिन अगर यह कार्यपालिका शासन न्यायपालिका द्वारा संचालित है, तो आप सवाल कैसे पूछ सकते हैं? चुनावों में आप किसे जवाबदेह ठहराते हैं?’’ उन्होंने कहा, ‘‘समय आ गया है जब हमारी तीन संस्थाएं – विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका -फूलें-फलें… किसी एक द्वारा दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप चुनौती पैदा करता है, जो अच्छी बात नहीं है…।’’

"अनुच्छेद 142 क्या है" और यह सुप्रीम कोर्ट को क्या अधिकार देता है?

अनुच्छेद 142 भारत के संविधान का एक विशेष प्रावधान है, जो सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आदेश जारी करने का अधिकार देता है। यह न्यायपालिका को अत्यधिक शक्तिशाली बनाता है।

"जगदीप धनखड़ सुप्रीम कोर्ट पर बयान" क्यों चर्चा में है?

धनखड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट 'सुपर संसद' की तरह कार्य नहीं कर सकता और अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ "परमाणु मिसाइल" बन गया है। उन्होंने न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाए।

क्या "सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को निर्देश" दे सकता है?

यह संवैधानिक बहस का विषय है। उपराष्ट्रपति का मानना है कि राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च है और सुप्रीम कोर्ट का इस तरह निर्देश देना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।

"शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत" क्या है?

यह लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है, जिसमें विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अपनी-अपनी सीमाओं में कार्य करती हैं और एक-दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करतीं।

क्या "अनुच्छेद 145(3)" न्यायपालिका की सीमा तय करता है?

हाँ, अनुच्छेद 145(3) कहता है कि संविधान की व्याख्या करने वाले मामलों में कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ होनी चाहिए। यह न्यायिक संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है।