बीस साल पुराना मुकदमा निपटाने में सुस्ती के लिए निचली अदालत की खिंचाई

बीस साल पुराना मुकदमा निपटाने में सुस्ती के लिए निचली अदालत की खिंचाई

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  • Publish Date - November 25, 2025 / 08:49 PM IST,
    Updated On - November 25, 2025 / 08:49 PM IST

प्रयागराज, 25 नवंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 20 साल पुराने एक आपराधिक मामले की सुनवाई में सुस्ती दिखाने के लिए प्रयागराज की एक निचली अदालत की खिंचाई करते हुए कहा कि नियमित रूप से सुनवाई टालने और पिछले 13 साल से अभियोजन पक्ष द्वारा एक भी गवाह पेश नहीं करने से 73 वर्षीय एक आरोपी पीड़ित हुआ है।

अदालत ने कहा, ‘‘राज्य के अन्य सभी अंगों की तरह न्यायपालिका भी जनता के प्रति समान रूप से जवाबदेह है। इसलिए निचली अदालत के पीठासीन अधिकारी को आम आदमी के प्रति अपनी जवाबदेही का एहसास करना होगा।”

न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह ने निचली अदालत को एक महीने के भीतर इस मुकदमे का निस्तारण करने या अनुशासनात्मक कार्यवाही सामना करने का निर्देश दिया।

इस मुकदमे में 73 वर्षीय शिरिश कुमार मालवीय आरोपी हैं और वह 2005 से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 129 के तहत मुकदमे का सामना कर रहे हैं।

इस अपराध में अधिकतम छह महीने तक के कारावास की सजा का प्रावधान है। इसके बावजूद मुकदमे की सुनवाई 20 साल तक चली है।

निचली अदालत की ऑर्डर शीट पर गौर करते हुए न्यायमूर्ति सिंह ने इस तथ्य को संज्ञान में लिया कि जहां आरोपी पिछले 13 साल से नियमित रूप से पेश होता रहा है, अभियोजन पक्ष एक भी गवाह पेश करने में विफल रहा।

अदालत ने कहा, “यह एक बहुत गंभीर मामला है जहां करीब 73 वर्षीय एक वरिष्ठ नागरिक को निचली अदालत द्वारा परेशान किया जा रहा है और प्रथम दृष्टया रिकॉर्ड देखने से यह प्रतीत होता है कि निचली अदालत अपने कामकाज में सुस्त है और वह अनावश्यक रूप से सुनवाई टालने के अलावा कुछ नहीं कर रही है।”

अदालत ने कहा, “निचली अदालत ने इस अदालत द्वारा और उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी उन निर्देशों को पूरी तरह नजरअंदाज किया जिसमें निर्देश दिया गया है कि पुराने मामले जल्द से जल्द निस्तारित किए जाने चाहिए।”

अदालत ने 20 नवंबर को दिए अपने आदेश में जल्द सुनवाई के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “जल्द सुनवाई का अधिकार एक आरोपी का मौलिक अधिकार है और यह केवल अदालत की सुनवाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यदि जांच पूरी करने में लंबी देरी होती है तो भी उसके मुकदमे की जल्द सुनवाई के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है।”

भाषा सं राजेंद्र

संतोष

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