नयी दिल्ली, 27 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने चुनाव कानून का जिक्र करते हुए कहा है कि अपने चुनावी घोषणापत्र में राजनीतिक दलों द्वारा वादा किया जाना ‘भ्रष्ट आचरण’ के समान नहीं है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कांग्रेस के एक उम्मीदवार के चुनाव को चुनौती देने वाली चामराजपेट विधानसभा क्षेत्र के एक मतदाता की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
याचिका में आरोप लगाया गया कि 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणापत्र में जनता को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय मदद देने की प्रतिबद्धता जताई थी, जो भ्रष्ट चुनावी आचरण के बराबर है।
वकील ने तर्क दिया कि एक राजनीतिक दल द्वारा अपने घोषणापत्र में व्यक्त की गई प्रतिबद्धताएं, जो अंततः बड़े पैमाने पर जनता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, उस पार्टी के एक उम्मीदवार के ‘भ्रष्ट आचरण’ की श्रेणी में आएंगी। लेकिन अदालत ने कहा कि इस तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा, ‘‘किसी भी मामले में, इन मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों में, हमें ऐसे सवालों पर विस्तार से विचार करने की जरूरत नहीं है। इसलिए अपील खारिज की जाती है।’’
याचिकाकर्ता चामराजपेट विधानसभा क्षेत्र के मतदाता शशांक जे. श्रीधर ने विजयी उम्मीदवार बी. जेड जमीर अहमद खान के खिलाफ चुनाव याचिका दायर की थी।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी द्वारा अपने घोषणापत्र में दी गई ‘पांच गारंटी’ भ्रष्ट आचरण के समान है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना था कि किसी पार्टी द्वारा लागू की जाने वाली नीतियों के बारे में घोषणा को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं माना जा सकता है।
अदालत ने कहा कि कांग्रेस की पांच गारंटियों को सामाजिक कल्याण नीति के रूप में माना जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि ये गारंटी आर्थिक रूप से व्यवहार्य हैं या नहीं, यह पूरी तरह से एक अलग पहलू है।
भाषा संतोष प्रशांत
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