मुस्लिम पति द्वारा पत्नी को तलाक देने के एकतरफा अधिकार को चुनौती देने वाली याचिका खारिज |

मुस्लिम पति द्वारा पत्नी को तलाक देने के एकतरफा अधिकार को चुनौती देने वाली याचिका खारिज

मुस्लिम पति द्वारा पत्नी को तलाक देने के एकतरफा अधिकार को चुनौती देने वाली याचिका खारिज

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:59 PM IST, Published Date : September 27, 2021/2:09 pm IST

नयी दिल्ली, 27 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पति द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी समय, अकारण और पहले से नोटिस दिए बिना तलाक (तलाक-उल-सुन्नत) देने के ‘‘एकतरफा अधिकार’’ को चुनौती देने वाली याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि संसद इस संबंध में पहले ही कानून पारित कर चुकी है।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं लगती, क्योंकि संसद पहले ही हस्तक्षेप कर चुकी है और उसने उक्त अधिनियम/मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 को लागू किया है, इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है।’’

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता महिला को आशंका है कि उसका पति तलाक-उल-सुन्नत का सहारा लेकर उसे तलाक दे देगा। उसने कहा, ‘‘हमारे विचार से, मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 और विशेष रूप से उसकी धारा तीन के अधिनियमन के मद्देनजर यह याचिका पूरी तरह से गलत है।’’

अधिनियम की धारा तीन के अनुसार, किसी मुस्लिम पति द्वारा लिखित या मौखिक शब्दों द्वारा या इलेक्ट्रॉनिक रूप में या किसी अन्य तरीके से अपनी पत्नी को इस तरह ‘तलाक’ देने कोई भी घोषणा करना अवैध है।

याचिकाकाकर्ता महिला ने याचिका में कहा कि यह प्रथा ‘‘मनमानी, शरिया विरोधी, असंवैधानिक, स्वेच्छाचारी और बर्बर’’ है। याचिका में आग्रह किया गया था कि पति द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी समय तलाक देने के अधिकार को मनमाना कदम घोषित किया जाए।

इसमें इस मुद्दे पर विस्तृत दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया गया था और यह घोषणा करने की मांग की गई थी कि मुस्लिम विवाह महज अनुबंध नहीं है बल्कि यह दर्जा है।

याचिका 28 वर्षीय मुस्लिम महिला ने दायर की थी। उसने कहा था कि उसके पति ने इस वर्ष आठ अगस्त को ‘तीन तलाक’ देकर उसे छोड़ दिया और उसके बाद उसने अपने पति को कानूनी नोटिस भेजा।

याचिका में कहा गया कि कानूनी नोटिस के जवाब में पति ने एक बार ही तीन तलाक देने से इंकार किया और महिला से कहा कि वह उसे यह नोटिस मिलने के 15 दिन के भीतर तलाक दे दें।

महिला का कहना था कि मुस्लिम पति द्वारा पत्नी को तलाक देने के लिए बगैर किसी कारण इस तरह के अधिकार का इस्तेमाल करना इस प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

उच्चतम न्यायालय ने अगस्त 2017 में फैसला दिया था कि मुस्लिमों में तीन तलाक की प्रथा अवैध और असंवैधानिक है।

भाषा सिम्मी अनूप

अनूप

 

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