शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के लिए किसी जाति को अलग-अलग श्रेणियों में नहीं रखा जा सकता : अदालत

शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के लिए किसी जाति को अलग-अलग श्रेणियों में नहीं रखा जा सकता : अदालत

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  • Publish Date - April 22, 2025 / 04:43 PM IST,
    Updated On - April 22, 2025 / 04:43 PM IST

बेंगलुरु, 22 अप्रैल (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि एक ही समुदाय को शिक्षा और रोजगार के लिए दो अलग-अलग आरक्षण श्रेणियों के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता।

यह निर्णय पूर्ववर्ती मैसूरु जिले के कोल्लेगल तालुक की निवासी वी. सुमित्रा द्वारा दायर याचिका पर आया। उन्होंने राज्य द्वारा बालाजिगा/बनाजिगा समुदाय के वर्गीकरण को चुनौती दी थी।

न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज ने हाल ही में फैसला सुनाते हुए कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया कि वह बालाजिगा/बनाजिगा समुदाय को शिक्षा और रोजगार उद्देश्यों के लिए समान रूप से समूह ‘बी’ के अंतर्गत वर्गीकृत करे।

अदालत ने कहा कि समुदाय को शिक्षा के लिए समूह ‘बी’ (अनुच्छेद 15(4) के तहत) और रोजगार के लिए समूह ‘डी’ (अनुच्छेद 16(4) के तहत) के अंतर्गत रखने वाला राज्य का मौजूदा वर्गीकरण भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है।

सुमित्रा को 1993 में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्गा) आरक्षण के तहत प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका के रूप में नियुक्त किया गया था, क्योंकि उनका दावा था कि उनकी जाति समूह ‘बी’ से संबंधित है।

हालांकि, उन्हें 1996 में एक नोटिस मिला जिसमें कहा गया था कि उनके समुदाय को रोजगार के लिए समूह ‘डी’ के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है, जिससे नौकरी से संबंधित आरक्षण के लिए उनका जाति प्रमाण पत्र अमान्य हो गया।

विभागीय अपीलों और कर्नाटक प्रशासनिक न्यायाधिकरण के माध्यम से निवारण के कई असफल प्रयासों के बाद, सुमित्रा को 1986 की एक सरकारी अधिसूचना मिली, जिसमें यह दोहरा वर्गीकरण किया गया था।

उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के पीछे संवैधानिक मंशा सुसंगत है और इसका उद्देश्य समान वंचित समूहों के लिए सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है। उन्होंने राज्य के वर्गीकरण को चुनौती दी और इसे विरोधाभासी बताया।

न्यायमूर्ति गोविंदराज ने उनकी दलील को बरकरार रखते हुए कहा, ‘अनुच्छेद 14 के तहत विधि के समक्ष समानता का सिद्धांत आरक्षण के मामले में भी समान व्यवहार को शामिल करता है। एक ही समुदाय को संदर्भ के आधार पर अलग-अलग समूहों में नहीं रखा जा सकता – ऐसा विभाजन स्वाभाविक रूप से भेदभावपूर्ण है।’

अदालत ने कहा कि इस प्रकार का कोई भी विभेदकारी व्यवहार संवैधानिक सुरक्षा का उल्लंघन करता है तथा सकारात्मक कार्रवाई को एक समान तरीके से लागू किया जाना चाहिए।

न्यायाधीश ने कहा, ‘यदि किसी समुदाय को शिक्षा के मामले में पिछड़ा माना जाता है, तो रोजगार के मामले में उसके साथ अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता।’

दोहरे वर्गीकरण को ‘आरंभ से ही अमान्य’ घोषित करते हुए, उच्च न्यायालय ने उन आदेशों को रद्द कर दिया, जिनमें रोजगार में समूह ‘बी’ के तहत आरक्षण के लिए सुमित्रा के दावे को खारिज कर दिया गया था।

इसने राज्य को आरक्षण समूह ‘बी’ के तहत उसकी पात्रता को स्वीकार करते हुए प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका के रूप में उनकी नौकरी जारी रखने का भी निर्देश दिया।

भाषा नोमान दिलीप

दिलीप