संसदीय समिति ने राज्यों की सहमति के बिना सीबीआई जांच के लिए नया कानून बनाने को कहा

संसदीय समिति ने राज्यों की सहमति के बिना सीबीआई जांच के लिए नया कानून बनाने को कहा

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  • Publish Date - March 27, 2025 / 05:42 PM IST,
    Updated On - March 27, 2025 / 05:42 PM IST

नयी दिल्ली, 27 (भाषा) केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) में प्रतिनियुक्ति के लिए उम्मीदवारों की कमी का जिक्र करते हुए संसद की एक समिति ने बृहस्पतिवार को विशेषज्ञों के लिए ‘लेटरल एंट्री’ की सिफारिश की और साथ ही सुझाव दिया कि एजेंसी को राज्यों की सहमति के बिना राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता को प्रभावित करने वाले मामलों की जांच करने की अनुमति देने के लिए एक नया कानून बनाया जाए।

समिति ने पुलिस उपाधीक्षकों, निरीक्षकों और उपनिरीक्षकों जैसे पदों के लिए कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी), संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) या एक समर्पित सीबीआई परीक्षा के माध्यम से सीधी भर्ती की अनुमति देकर एक स्वतंत्र भर्ती ढांचा विकसित करने की भी सिफारिश की है।

समिति ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता को प्रभावित करने वाले मामलों के लिए राज्यों की सहमति के बिना सीबीआई को व्यापक जांच शक्तियां प्रदान करने वाला एक अलग या नया कानून राज्य सरकारों की राय लेकर बनाया जा सकता है।

कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर विभाग से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) से संबंधित अनुदान मांगों (2025-26) पर बृहस्पतिवार को संसद में पेश अपनी 145वीं रिपोर्ट में ये सिफारिशें कीं।

भाजपा के राज्यसभा सदस्य बृजलाल की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि सीबीआई में प्रतिनियुक्ति के लिए उपयुक्त कर्मियों की कमी गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि यह एजेंसी की परिचालन क्षमता को प्रभावित कर रहा है।

रिपोर्ट के मुताबिक प्राथमिक कारणों में कर्मियों को भेजने वाले विभाग में कर्मियों की कमी, राज्य पुलिस बलों का रवैया, दस्तावेज़ीकरण में प्रक्रियात्मक देरी और कुशल कर्मियों की अपर्याप्त पहचान शामिल है। समिति ने कहा कि इन कारणों से रिक्तियां रह जाती हैं और इससे सीबीआई की जांच क्षमताओं पर असर पड़ता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऋण देने वाले विभागों के लिए प्रोत्साहन की कमी अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति का विकल्प चुनने से हतोत्साहित करती है।

रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘नामांकन प्रक्रिया में प्रशासनिक अड़चनें नियुक्तियों में देरी करती हैं, जिससे महत्वपूर्ण मामले प्रभावित होते हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए संस्थागत सुधारों, सुव्यवस्थित प्रक्रियाओं और कुशल कर्मियों को आकर्षित करने और बनाए रखने के लिए बेहतर प्रोत्साहन की आवश्यकता है।’’

रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिनियुक्ति पर निर्भरता कम करने के लिए समिति ने सुझाव दिया कि सीबीआई डीएसपी, इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर जैसे कोर रैंक के लिए एसएससी, यूपीएससी या समर्पित सीबीआई परीक्षा के माध्यम से सीधी भर्ती की अनुमति देकर एक स्वतंत्र भर्ती ढांचा विकसित करे।

समिति ने कहा, ‘‘इसमें साइबर अपराध, फोरेंसिक, वित्तीय धोखाधड़ी और कानूनी डोमेन के विशेषज्ञों के लिए ‘लेटरल एंट्री’ भी शुरू की जानी चाहिए।’’

लेटरल एंट्री का मतलब निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती से है। इसके माध्यम से केंद्र सरकार के मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के पदों की भर्ती की जाती है।

समिति ने कहा कि सीबीआई को एक स्थायी कैडर स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे जांच एजेंसी को दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।

समिति ने एक संस्थान के भीतर विशेषज्ञता टीम के गठन की भी सिफारिश की ताकि बाहरी विशेषज्ञों पर निर्भरता कम हो।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘प्रतिनियुक्ति केवल चुनिंदा वरिष्ठ पदों के लिए रखी जा सकती है, जिनके लिए विविध अनुभव की आवश्यकता होती है, लेकिन भर्ती प्रक्रिया और सुधारों को सुव्यवस्थित करने से सीबीआई को परिचालन दक्षता और जांच क्षमताओं को बढ़ाने में मदद मिलेगी।’’

समिति ने कहा कि आठ राज्यों ने सीबीआई जांच के लिए सामान्य सहमति वापस ले ली है, जिससे भ्रष्टाचार और संगठित अपराध की जांच करने की इसकी क्षमता गंभीर रूप से सीमित हो गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समस्या से निपटने के लिए समिति को लगता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता को प्रभावित करने वाले मामलों में सरकार की सहमति के बिना सीबीआई को व्यापक जांच शक्तियां प्रदान करने वाला एक अलग या नया कानून राज्य सरकारों की भी राय लेकर लागू किया जा सकता है।

इसमें कहा गया है कि निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए कानून में सुरक्षा उपायों को भी शामिल किया जाना चाहिए, जिससे राज्य सरकारों को शक्तिहीन महसूस करने से रोका जा सके।

समिति ने कहा, ‘‘समय पर और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने, देरी रोकने के लिए यह सुधार जरूरी है… समिति इस मोर्चे पर कार्रवाई का आग्रह करती है जो संघीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए सीबीआई के अधिकार को मजबूत करेगा।’’

सीबीआई को दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 के माध्यम से मामलों की जांच करने की शक्ति प्राप्त है।

समिति ने इस बात पर जोर दिया कि सीबीआई के कामकाज में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए मामलों के आंकड़े और वार्षिक रिपोर्ट उसकी वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई जाएगी।

इसमें कहा गया है, ‘‘केंद्रीकृत मामला प्रबंधन (सेंट्रलाइज्ड केस मैनेजमेंट) को गैर-संवेदनशील मामलों के विवरण तक सार्वजनिक पहुंच की अनुमति देनी चाहिए जो सीबीआई के संचालन में जवाबदेही, दक्षता और विश्वास को बढ़ाएगा।’’

समिति ने कहा कि सूचना के सक्रिय प्रकटीकरण से नागरिकों को सशक्त बनाया जा सकेगा और साथ ही जिम्मेदार शासन भी सुनिश्चित किया जा सकेगा।

समिति ने सीबीआई से इन उपायों को तेजी से लागू करने तथा अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी प्रणाली के लिए जनता के सूचना के अधिकार के साथ जांच गोपनीयता को संतुलित किए जाने का भी आग्रह किया।।

समिति ने कहा कि सीबीआई वेबसाइट का मीडिया अनुभाग केवल चुनिंदा जानकारियां मुहैया कराता है, जो ढांचागत सार्वजनिक रिपोर्टिंग का विकल्प नहीं होता।

समिति ने कहा, ‘‘प्रकरण प्रबंधन प्रणाली का कार्यान्वयन एक सकारात्मक कदम है, लेकिन सार्वजनिक पहुंच के बारे में चिंताएं अनसुलझी हैं। इसके अलावा, सीबीआई की वार्षिक रिपोर्ट को चुनिंदा सरकारी निकायों तक सीमित करना व्यापक पारदर्शिता को सीमित करता है। समिति का मानना है कि संरचित, गैर-पूर्वाग्रहपूर्ण खुलासे जांच की अखंडता को बनाए रखते हुए जनता के विश्वास को बढ़ा सकते हैं।’’

भाषा ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र माधव

माधव