नयी दिल्ली, 14 नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग पर 2023 में हुए विरोध प्रदर्शन से संबंधित मामले में अभियोग का सामना कर रहे एक व्यक्ति की वह याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उसने अपनी गिरफ्तारी और रिमांड आदेशों को चुनौती दी थी।
अदालत ने कहा कि निचली अदालत के रिमांड आदेशों में कोई कमी नहीं है और आरोपी को राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की रिमांड अर्जी दी गई है, जिसमें उसे (आरोपी को) गिरफ्तार करने के कारण और आधार दोनों शामिल हैं।
अदालत ने ब्रिटेन के हाउंसलो निवासी इंदर पाल सिंह गाबा की याचिका खारिज कर दी। एनआईए ने गाबा को 25 अप्रैल को लंदन में 22 मार्च, 2023 को हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान कथित रूप से गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम देने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता (गाबा) के वकील की यह दलील स्वीकार नहीं की जा सकती कि प्राथमिकी प्रस्तुत न करना घातक होगा। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ने सही कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के अनुसार जांच अधिकारी द्वारा प्राथमिकी की प्रति शिकायतकर्ता के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को प्रदान करना अनिवार्य नहीं है।’’
उच्च न्यायालय द्वारा 29 अक्टूबर को पारित यह आदेश 12 नवंबर को न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया गया।
अदालत ने उल्लेख किया कि गाबा को इस वर्ष 25 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया था और उसी दिन उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया था।
इसने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता को रिमांड अर्जी की एक प्रति प्रदान की गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने के कारण और आधार दोनों शामिल थे और इसलिए, अदालत की यह राय है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत संवैधानिक सुरक्षा का पालन किया गया है और आक्षेपित रिमांड आदेशों में कोई कमी नहीं है।’’
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 19 मार्च, 2023 को खालिस्तानी अलगाववादियों द्वारा इस्तेमाल किए गए झंडे लेकर उच्चायोग भवन के सामने लगभग 50-60 प्रदर्शनकारियों की भीड़ जमा हुई।
अभियोग के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने कथित तौर पर भारत-विरोधी और खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाए और अपमानजनक तरीके से भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को नीचे गिरा दिया। इसमें कहा गया है कि कुछ दंगाइयों ने राष्ट्रीय ध्वज को फाड़ने की कोशिश की, जिसे बाद में बड़ी मुश्किल से उनसे (प्रदर्शनकारियों से) वापस लिया गया।
रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से पता चला है कि ऑडियो-वीडियो साक्ष्य 22 मार्च 2023 के विरोध प्रदर्शन में याचिकाकर्ता की उपस्थिति और सक्रिय भागीदारी को दर्शाता है।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि उसे (गाबा को) विरोध प्रदर्शन के प्रमुख आयोजकों के साथ मिलकर भारत विरोधी नारे लगाते और भारत की संप्रभुता को कमजोर करने वाली गतिविधियों में शामिल होते देखा गया था।
गाबा के खिलाफ एक ‘लुकआउट सर्कुलर’ (एलओसी) जारी किया गया था और नौ दिसंबर, 2023 को उसे अटारी सीमा पर पाकिस्तान से भारत में प्रवेश करते समय आव्रजन अधिकारियों ने हिरासत में लिया था।
एनआईए ने गाबा का पासपोर्ट जब्त कर लिया और बाद में उसे 24 अप्रैल, 2024 को गिरफ्तार कर लिया गया।
संघीय एजेंसी ने पिछले साल अप्रैल में दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ से जांच अपने हाथ में ले ली थी, जिसने गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था।
गाबा ने रिमांड आदेशों और अपनी गिरफ्तारी को इस आधार पर चुनौती दी कि उसे गिरफ्तारी का आधार नहीं बताया गया तथा उसके अधिवक्ता या परिवार के सदस्यों को रिमांड के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी।
उसने दावा किया कि वह 19 मार्च, 2023 के विरोध प्रदर्शन में भाग नहीं लिया था और उसका नाम दंगाई के रूप में नहीं आता है, जिसके आधार पर पूरी प्राथमिकी दर्ज की गई है।
एनआईए की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ने दलील दी कि गाबा के खिलाफ कई सबूत हैं और उसे 19 मार्च, 2023 को अन्य खालिस्तानी समर्थकों के साथ खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाते देखा गया था।
विधि अधिकारी ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता 19 मार्च, 2023 को हुई घटना की योजना बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था, इसलिए वह भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने में बहुत हद तक शामिल था।
इस मामले में एनआईए की जांच से पता चला है कि पिछले साल 19 और 22 मार्च को लंदन में हुई घटनाएं भारतीय मिशनों और उसके अधिकारियों पर क्रूर हमले करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा थीं।
भाषा सुरेश रंजन
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