नयी दिल्ली, 15 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि एक वादी अपने कानूनी विकल्पों का प्रयोग कर सकता है, लेकिन उसे अवमाननापूर्ण आरोप लगाने और अदालत के अधिकार को कमजोर करने की स्वतंत्रता नहीं है।
अदालत ने इस महीने की शुरुआत में हाइब्रिड सुनवाई (हाइब्रिड माध्यम में भौतिक पेशी और डिजटल माध्यम दोनों के जरिये सुनवाई से जुड़ने की व्यवस्था होती है) आयोजित करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे डिजिटल मंच के ‘चैट बॉक्स’ में एक वकील की “स्पष्ट रूप से अवमाननापूर्ण” टिप्पणियों पर आपत्ति जताते हुए यह बात कही।
अदालत ने वकील को कारण बताओ नोटिस जारी किया। वकील अदालत द्वारा कथित तौर पर उनके व्यक्तिगत मामले की सुनवाई नहीं करने से व्यथित थे। अदालत ने उनसे यह बताने के लिए कहा कि क्यों न अवमानना के लिए नोटिस जारी किया जाए और उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए।
न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा कि वकील से मर्यादा बनाए रखने की उम्मीद की गई थी, लेकिन उन्होंने कोई पश्चाताप व्यक्त नहीं किया है और अपनी टिप्पणियों पर कायम रहे, जो सार्वजनिक धारणा में अदालत के अधिकार को “कमजोर” करने की कोशिश करती हैं।
न्यायाधीश ने कहा कि टिप्पणियां “अदालत को बदनाम करने” के इरादे से सार्वजनिक क्षेत्र में रखी गई थीं, “स्पष्ट रूप से अपमानजनक” हैं और न्यायिक कार्यवाही के उचित विमर्श में हस्तक्षेप करती हैं, इसलिए अदालत की अवमानना अधिनियम की धारा 14 के तहत आपराधिक अवमानना के दायरे में आती हैं।
न्यायाधीश ने नौ मई को दिए एक आदेश में कहा, “इस न्यायालय की सुविचारित राय है कि याचिकाकर्ता हमेशा कानून के अनुसार उपलब्ध उपायों का प्रयोग कर सकता है, लेकिन यह अवमाननापूर्ण आरोप लगाने और न्यायालय के अधिकार को कमजोर करने की स्वतंत्रता नहीं देता है।”
भाषा प्रशांत माधव
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