Manipur President Rule | Photo Credit: IBC24
नई दिल्ली: संसद ने शुक्रवार तड़के मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की पुष्टि करने वाले सांविधिक संकल्प को पारित कर दिया। 13 फरवरी को हिंसाग्रस्त मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था, और इस निर्णय के अनुरूप उच्चतम न्यायालय ने दो महीने के अंदर राष्ट्रपति शासन की पुष्टि के लिए एक सांविधिक संकल्प पेश करने का आदेश दिया था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह संकल्प राज्यसभा में चर्चा और पारित करने के लिए प्रस्तुत किया, जिसे उच्च सदन ने करीब चार बजे ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी थी।
सांसदों को संबोधित करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की आवश्यकता की व्याख्या करते हुए कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया था, जिसके बाद राज्यपाल ने विधायकों से चर्चा की और बहुमत के सदस्यों ने यह कहा कि वे सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हैं। इसके बाद, कैबिनेट ने राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा की, जिसे राष्ट्रपति महोदया ने स्वीकार कर लिया।
अमित शाह ने स्वीकार किया कि मणिपुर में जातीय हिंसा में 260 लोगों की मौत हुई, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा में इससे ज्यादा लोग मारे गए थे। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले चार महीने से मणिपुर में कोई नई मौत नहीं हुई और केवल दो लोग घायल हुए हैं। शाह ने इस मुद्दे पर विपक्ष से राजनीति नहीं करने की अपील की और सरकार की प्राथमिकता मणिपुर में शांति स्थापित करना बताया।
इससे पहले, विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मणिपुर में हिंसा के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वहां न जाने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि मणिपुर में इतनी हिंसा के बावजूद प्रधानमंत्री को राज्य में जाने का अवसर नहीं मिला। खरगे ने यह भी आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ भाजपा सरकार की ‘डबल इंजन सरकार’ मणिपुर में पूरी तरह विफल साबित हुई है। उन्होंने कहा, “जब सत्तारूढ़ दल पर दबाव बढ़ा, तब मुख्यमंत्री को इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा।”
तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओब्रायन ने भी मणिपुर के हालात पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए आरोप लगाया कि मणिपुर के हालात खराब होने के 22 माह बाद भी प्रधानमंत्री वहां नहीं गए। ओब्रायन ने सत्तारूढ़ दल पर मणिपुर के मुद्दे पर ‘गुरूर’ का रवैया अपनाने का आरोप लगाया।