राजस्थान Year Ender 2020: गहलोत ने किया महामारी से निपटने और सरकार को बचाने की दोहरी चुनौती का सामना | Rajasthan Year Ender 2020: Gehlot faces double challenge of tackling epidemic and saving government

राजस्थान Year Ender 2020: गहलोत ने किया महामारी से निपटने और सरकार को बचाने की दोहरी चुनौती का सामना

राजस्थान Year Ender 2020: गहलोत ने किया महामारी से निपटने और सरकार को बचाने की दोहरी चुनौती का सामना

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:10 PM IST, Published Date : December 30, 2020/9:37 am IST

जयपुर (राजस्थान), 29 दिसम्बर (भाषा) साल 2020 में जब पूरा देश कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के अप्रत्याशित संकट से जूझ रहा था, तब ऐेसे में राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने लोगों की जान एवं आजीविका की रक्षा करने के साथ-साथ सरकार को बचाने की दोहरी चुनौती का सामना किया।

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राजस्थान सरकार पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और 18 अन्य विधायकों की बगावत के कारण खतरे में आ गई थी। कोरोना वायरस के शुरूआती दिनों में संक्रमण को फैलने से रोकने में राज्य के ‘भीलवाड़ा मॉडल’ की देशभर में सराहना हुई, लेकिन उसी दौरान राज्य की राजधानी जयपुर के रामगंज में तेजी से संक्रमण फैलने के कारण सरकार को आलोचनाओं को सामना करना पड़ा।

राज्य में साल के अंत में हुए पंचायत, जिला परिषद और शहरी स्थानीय निकाय चुनावों के परिणामों ने कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। सामान्य रुझानों के विपरीत भाजपा ने पंचायत चुनाव में ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस को पछाड़ दिया। विपक्षी दल जीत की खुशी मना ही रहा था कि तभी कुछ ही दिनों बाद कांग्रेस पार्टी शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव परिणामों में विजयी हुई।

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राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने तीन नए केंद्रीय कृषि कानूनों को राज्य में लागू नहीं करने के लिए राजस्थान विधानसभा में तीन विधेयक पारित किए। हालांकि ये विधेयक राज्यपाल के पास लंबित हैं।

राज्य के उत्तर-पश्चिमी इलाकों में घूमने आने वाले देशी और विदेशी पर्यटकों के लिहाज से वर्ष की शुरुआत में सब सामान्य था, लेकिन माउंट आबू घूमने आए इतालवी दंपत्ति के संक्रमित पाए जाने के बाद हालात बदल गए। यह दंपत्ति आगरा जाने से पूर्व फरवरी में जयपुर, बीकानेर, उदयपुर, जोधपुर, झुंझुनू और जयपुर जाने वाले पर्यटकों के 23 सदस्यीय समूह का हिस्सा था। दंपत्ति के जैसे ही कोरोना वायरस संक्रमित होने का पता चला, राज्य सरकार हरकत में आ गई और उनके संपर्क में आए लोगों का पता लगाने के लिए व्यापक अभियान चलाया गया।

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लगातार बढ़ रहे संक्रमण के मामलों से चिंतित मुख्यमंत्री गहलोत ने विभिन्न हितधारकों के साथ बैठकें की और संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने के लिए राज्य में लॉकडाउन लगाने की घोषणा की। राजस्थान लॉकडाउन की पहल करने वाला देश का पहला राज्य था। लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में मजदूर और प्रवासी फंस गए। प्रवासी कर्मी लॉकडाउन के बाद कोई साधन उपलब्ध नहीं होने के कारण सामान लादे और छोटे बच्चों को कंधे पर बैठाकर पैदल ही अपने गृह राज्यों की ओर निकल पड़े। कई लोग साइकिल या मोटरसाइकिल से सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित अपने गंतव्यों तक पहुंचे।

इसी बीच, भीलवाड़ा मॉडल, जिसे ‘रूथलेस कंटेंमेंट’ का नाम दिया गया, उसने देश भर के लोगों का ध्यान खींचा। भीलवाड़ा जिला प्रशासन ने शुरुआती दिनों में कर्फ्यू लगाकर, संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने के लिए अभियान चलाकर और अन्य उपायों के सख्त अनुपालन के जरिए संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने में शुरुआत में कामयाबी हासिल की थी, लेकिन सभी प्रकार के प्रयासों के बावजूद जयपुर के चारदीवारी क्षेत्र में संक्रमण तेजी से फैला।

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राज्य में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनावों की घोषणा की गई। संख्याबल के आधार पर दो सीटों पर कांग्रेस की और एक सीट पर भाजपा की आसान जीत तय थी, लेकिन सरकार से बगावत करने वाले सचिन पायलट समर्थित कांग्रेस विधायकों के क्रास वोटिंग (पार्टी नेतृत्व की इच्छा के विरुद्ध मतदान) की उम्मीद में भाजपा ने एक उम्मीदवार की जगह दो उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे। मुख्यमंत्री गहलोत ने जून में राज्यसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी के सभी विधायकों को दिल्ली रोड स्थित एक रिसॉर्ट में स्थानांतरित कर दिया। उन्होंने भाजपा पर कांग्रेस के विधायकों को लालच देकर राज्य सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। हालांकि राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग नहीं हुई और कांग्रेस के दोनों उम्मीदवार के सी वेणुगोपाल, नीरज डांगी और भाजपा के राजेन्द्र गहलोत ने राज्यसभा चुनाव में जीत हासिल कर ली।

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इसके कुछ दिनों बाद जुलाई में राजस्थान की राजनीति में भूचाल आया और गहलोत एवं उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच दूरियां सार्वजनिक हो गई। गहलोत ने पार्टी के विधायकों और निर्दलीय विधायकों को एक बार फिर रिसॉर्ट में स्थानांतरित कर दिया। कांग्रेस सरकार के 2018 में सत्ता में आने के बाद दोनों नेताओं के बीच मुख्यमंत्री पद के लिये रस्साकशी चली थी और अंतत: गहलोत को तीसरी बार मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया गया, जबकि पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया।

इस वर्ष एक महीने तक चले राजनीतिक संकट के दौरान कई तरह के उतार-चढ़ाव देखने को मिले। जून में राज्यसभा चुनाव से पहले कांग्रेस विधायकों की कथित खरीद-फरोख्त किए जाने के बारे में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। प्राथमिकी दर्ज होने के बाद गहलोत, पायलट और मुख्य सचेतक महेश जोशी को सरकार गिराने के कथित प्रयासों के संबंध में बयान दर्ज कराने के लिए नोटिस जारी किए जाने पर राजनीतिक भूचाल आ गया था। नोटिस से पायलट खेमा नाराज हो गया था।

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इस बीच, कांग्रेस विधायक दल की एक बैठक मुख्यमंत्री आवास पर बुलाई गई, लेकिन संकट उस समय गहरा गया, जब पायलट ने विधायक दल की बैठक से ठीक पहले गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार को अल्पमत में बताकर खुले तौर पर बगावत की घोषणा कर दी। विधायक दल की बैठक में पायलट और उनके समर्थक 18 विधायक शामिल नहीं हुए। पायलट के समर्थक विधायक हरियाणा के मानेसर में ठहरे, जबकि गहलोत खेमे के विधायकों को जयपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित एक होटल में रुकवाया गया था और उन्हें बाद में जैसलमेर ले जाया गया।

जयपुर में मुख्यमंत्री आवास पर विधायक दल की बैठक के तुरंत बाद आयकर विभाग की टीमों ने कांग्रेस नेता राजीव अरोड़ा और धर्मेंद्र राठौड़ के घर छापा मारा। इसी बीच, कांग्रेस के बागी विधायक भंवर लाल और केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह के बीच हुई बातचीत की दो ओडियो टेप की क्लिप वायरल होने से एक और मोड़ आया।

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बगावत की कीमत पायलट को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री पद की सीटें गवांकर चुकानी पड़ी। उनके सहयोगी एवं दो अन्य कैबिनेट मंत्रियों विश्वेन्द्र सिंह और रमेश मीणा को अशोक गहलोत मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया और शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया। ओडियो क्लिप के आधार पर एसओजी और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने भंवर लाल शर्मा और गजेन्द्र सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया।

पायलट और उनके अन्य विधायकों के विधायक दल की बैठक में उपस्थित नहीं होने पर मुख्य सचेतक जोशी ने विधानसभा अध्यक्ष को लिखित शिकायत दी। विधानसभा अध्यक्ष ने शिकायत के आधार पर पायलट सहित सभी 19 विधायकों को अयोग्य घोषित करने के नोटिस जारी किए, जिसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। विधानसभा सत्र आहूत करने को लेकर राज्य सरकार और राजभवन के बीच गतिरोध देखा गया। कांग्रेस विधायकों ने राजभवन के अंदर विधानसभा सत्र आहूत करने की मांग को लेकर धरना दिया।

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राज्य सरकार अल्प समय के नोटिस में विधानसभा सत्र बुलाना चाहती थी, लेकिन राज्यपाल ने मंत्रिमंडल की सिफारिश को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि सत्र बुलाने के लिये कम से कम 21 दिन का समय चाहिए। सत्र बुलाने के लिये सरकार की ओर से 30 जुलाई को राज्यपाल को भेजे गये चौथे प्रस्ताव को राज्यपाल ने स्वीकार करते हुए 14 अगस्त से सत्र बुलाने की स्वीकृति प्रदान की थी। संशोधित प्रस्ताव में 21 दिन की शर्त पूरी हो रही थी।

पार्टी आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद एक महीने तक चला राजनीतिक नाटक खत्म हुआ। गतिरोध 10 अगस्त को समाप्त हुआ और 14 अगस्त से बुलाये गये विधानसभा सत्र में अशोक गहलोत सरकार ने विश्वास मत हासिल किया। पायलट और अन्य विधायकों ने गहलोत सरकार के पक्ष में मत डाले। वहीं विपक्षी भाजपा ने सरकार को अस्थिर करने के आरोपों को नकारा।

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सत्ता में होने के बावजूद कांग्रेस को 21 जिलों में हुए पंचायत समिति और जिला परिषद सदस्यों के चुनाव में बड़े झटके का सामना करना पडा। भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा सीटें मिली। वहीं, 12 जिलों के शहरी स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा सीटे मिली।