कानून के शासन का पालन सभी को करना होगा : उच्चतम न्यायालय

कानून के शासन का पालन सभी को करना होगा : उच्चतम न्यायालय

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  • Publish Date - July 14, 2022 / 05:46 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:57 PM IST

नयी दिल्ली,14 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) होना कानून के शासन का पालन नहीं करने के लिए ‘‘कोई अपवाद नहीं ’’ है और सभी को कानून के शासन का पालन करना होगा।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ से कहा कि अतिक्रमण हटाने से प्रभावित हुए योग्य आवेदकों को उन्हें उपलब्ध कराई गई रहने की जगह के लिए किस्त अदा करने के वास्ते कुछ समय दिया जाए और उनका पुनर्वास प्रधानमंत्री आवास योजना के मुताबिक किया जाए। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ये लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘जब संविधान ने कानून के शासन को मान्यता दे रखी है तो उसका पालन सभी को करना होगा। गरीबी रेखा से नीचे होना ऐसा कोई अपवाद नहीं है जिसके चलते कानून के शासन का पालन नहीं किया जाए। ’’ न्यायालय ने कहा कि कई लोग ऐसे हैं जो गरीबी रेखा से नीचे हैं।

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता यथोचित प्राधिकार से संपर्क कर सकते हैं और यदि योजना के तहत समय बढ़ाने की उसके पास शक्ति है तो वे इस पर विचार कर सकते हैं।

सूरत नगर निगम की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा कि प्रभावित लोगों द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत दिये गये 2,450 आवेदनों में आज की तारीख तक 1,901 को मंजूरी दी गई है।

उन्होंने कहा कि योजना के मुताबिक आवंटी को छह लाख रुपये प्रति फ्लैट की दर से अदा करना होगा।

याचिकाकर्ता के वकील ने जब कहा कि 549 आवेदनों को मंजूरी नहीं दी गई है , तो पीठ ने कहा कि यदि इन्हें खारिज कर दिया गया है तो आवेदक उस फैसले को उपयुक्त मंच के समक्ष चुनौती देने के लिए स्वतंत्र हैं।

पीठ ने रेलवे का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल के.एम. नटराज से अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई के बारे में पूछा। यह कार्रवाई अधिकारियों की उस निष्क्रियता को लेकर की गई थी जिसके चलते रेलवे की संपत्ति का अतिक्रमण हुआ था।

पीठ ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा कि संबद्ध विभाग गलती करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे और पहले ही शुरू की जा चुकी अनुशासनात्मक कार्रवाई को उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाया जा सकता है।

न्यायालय ने पूर्व में इस बात का जिक्र किया था कि सूरत-उधना से लेकर जलगांव तक रेल लाइन परियोजना अब तक अधूरी है क्योंकि रेलवे की संपत्ति पर 2.65 किमी तक अनधिकृत ढांचे खड़े हैं।

शीर्ष न्यायालय ने निर्देश दिया था कि ध्वस्त करने की कार्रवाई के दौरान ढहाये गये अनधिकृत ढांचों में रहने वालों को छह महीने तक 2,000 रुपये प्रति माह मुआवजा दिया जाए।

भाषा

सुभाष मनीषा

मनीषा