(फाइल फोटो के साथ)
नयी दिल्ली, तीन फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) को पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए प्रस्तावित कार्ययोजना पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकारों के साथ बैठक करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने सीएक्यूएम से कहा कि वह राज्यों से परामर्श कर इस मुद्दे पर अपने विचार प्रस्तुत करे तथा 17 मार्च तक सुझाव पेश करे।
पंजाब सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने कहा कि किसानों को यह विश्वास दिलाना होगा कि फसल विविधीकरण एक व्यवहार्यपरक विकल्प है।
उन्होंने कहा, ‘‘एक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) है जो दिया जाना चाहिए एवं न्यूनतम खरीद सुनिश्चित हो। दरअसल धान की खेती में शत प्रतिशत उपज (की खरीद) का आश्वासन रहता है कि इसे भारतीय खाद्य निगम द्वारा उठा लिया जाएगा। मक्का और अन्य (फसलों) के लिए ऐसी खरीद नीति नहीं है।’’
पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह ने कहा कि राज्य सरकार पराली जलाने की समस्या को खत्म करने के कदमों का समर्थन करती है, लेकिन दिल्ली में प्रदूषण बढ़ाने वाले अन्य कारकों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास 15 नवंबर के बाद दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक का आंकड़ा है, जो पराली जलाने की घटना का आखिरी दिन था। उसके बाद दिल्ली में एक्यूआई 400 को छू गया और जनवरी में यह जारी है… हम पराली जलाने की समस्या को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन एक राज्य के तौर पर इसमें हमारा कितना हाथ है, कृपया इस पर निर्णय लें।’’
निर्माण कार्यों पर रोक लगाते हुए दैनिक मजदूरों को न्यूनतम सहायता राशि देने के मुद्दे पर शीर्ष अदालत ने कहा कि उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा इसका अनुपालन नहीं कर रहे हैं। पीठ ने निर्देश दिया कि संबंधित राज्यों के मुख्य सचिव वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए उपस्थित रहें।
शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि पंजाब और हरियाणा सरकारें पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई करने में धीमी हैं और समस्या के दीर्घकालिक समाधान के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है।
भाषा
राजकुमार प्रशांत
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