यौन उत्पीड़न के मामलों में असंवेदनशील न्यायिक टिप्पणियों पर न्यायालय ने जताई चिंता

यौन उत्पीड़न के मामलों में असंवेदनशील न्यायिक टिप्पणियों पर न्यायालय ने जताई चिंता

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  • Publish Date - December 8, 2025 / 09:20 PM IST,
    Updated On - December 8, 2025 / 09:20 PM IST

नयी दिल्ली, आठ दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि यौन उत्पीड़न के मामलों में असंवेदनशील न्यायिक टिप्पणियों का पीड़ितों, उनके परिवारों और समग्र समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। न्यायालय ने कहा कि वह उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ अदालतों को ऐसे मामलों में टिप्पणियां करने और आदेश पारित करने को लेकर व्यापक दिशा-निर्देश जारी करने पर विचार कर सकता है।

प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 17 मार्च के आदेश में की गई “असंवेदनशील” टिप्पणियों का संज्ञान लेने के बाद शुरू की गई स्वत: संज्ञान कार्यवाही की सुनवाई की। इस दौरान वकीलों ने बताया कि कई उच्च न्यायालयों ने हाल ही में यौन उत्पीड़न के मामलों में इसी तरह की मौखिक और लिखित टिप्पणियां की हैं।

एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा कि हाल ही में एक अन्य मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि चूंकि रात हो चुकी थी, इसलिए यह अभियुक्तों के लिए “आमंत्रण” था।

उन्होंने कलकत्ता और राजस्थान उच्च न्यायालयों के ऐसे ही अन्य मामलों का भी हवाला दिया।

एक अन्य वकील ने सोमवार को एक निचली अदालत की एक ताजा घटना की ओर इशारा किया, जहां बंद कमरे में सुनाई के बावजूद, “कई लोग मौजूद थे” और सुनवाई के दौरान पीड़िता को कथित तौर पर परेशान किया गया।

प्रधान न्यायाधीश ने शुरू में कहा, “यदि आप इन सभी उदाहरणों का हवाला दे सकते हैं तो हम व्यापक दिशानिर्देश जारी करने पर विचार कर सकते हैं। इस तरह की किसी भी टिप्पणी का पीड़ितों, उनके परिवारों और बड़े पैमाने पर समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है… इसके अलावा, कई बार, पीड़ितों को अपनी शिकायतें वापस लेने के लिए मजबूर करने के लिए भी ऐसे तरीके अपनाए जाते हैं।”

उन्होंने कहा कि ये उच्च न्यायालयों की टिप्पणियां हैं और “अधीनस्थ अदालत के स्तर पर इस प्रकार की टिप्पणियों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है और हम कुछ व्यापक निर्देश जारी करना चाहेंगे।”

पीठ ने वकीलों से अगली सुनवाई से पहले संक्षिप्त लिखित सुझाव प्रस्तुत करने को कहा।

पीठ ने इससे पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 17 मार्च के आदेश पर स्वतः संज्ञान लिया था।

उच्च न्यायालय ने माना था कि नाबालिग लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसके निचले वस्त्र को नीचे खींचने का प्रयास करना, बलात्कार के प्रयास का अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है।

प्रधान न्यायाधीश ने इस मामले के तथ्यों का हवाला देते हुए कहा कि वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हैं और मामले में मुकदमा जारी रहने देते हैं।

भाषा प्रशांत दिलीप

दिलीप