एनसीईआरटी की पुस्तकों पर ‘कैंची’ चलाकर ‘किताब की आत्मा’ को खत्म किया गया : योगेंद्र यादव |

एनसीईआरटी की पुस्तकों पर ‘कैंची’ चलाकर ‘किताब की आत्मा’ को खत्म किया गया : योगेंद्र यादव

एनसीईआरटी की पुस्तकों पर ‘कैंची’ चलाकर ‘किताब की आत्मा’ को खत्म किया गया : योगेंद्र यादव

:   Modified Date:  April 9, 2023 / 04:02 PM IST, Published Date : April 9, 2023/4:02 pm IST

नयी दिल्ली, नौ अप्रैल (भाषा) राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने नए शैक्षणिक सत्र के लिए इतिहास, समाज शास्त्र, राजनीतिक शास्त्र आदि विषयों की पुस्तकों में कुछ बदलाव किए हैं, जिससे विवाद शुरू हो गया है। विपक्ष ने केंद्र सरकार पर इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया है। वहीं, एनसीईआरटी ने पाठ्यपुस्तकों को युक्तिसंगत बनाने और कुछ अंशों के अप्रासंगिक होने के आधार पर उन्हें हटाने की बात कही है।

इस विषय पर एनसीईआरटी के मुख्य सलाहकार रहे योगेंद्र यादव से ‘भाषा के पांच सवाल’ और उनके जवाब :

सवाल : एनसीईआरटी ने हाल ही में इतिहास, सामाजिक विज्ञान, राजनीतिक शास्त्र सहित कुछ विषयों की पाठ्यपुस्तकों में से कुछ अंश हटाया है। आप पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा करने वाले दल के मुख्य सलाहकार रहे हैं। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

जवाब : जब ये पुस्तकें वर्ष 2005, 2006,2007 में लिखी गई थीं, तब मैं सीएसडीएस में प्रोफेसर था और एक शोधार्थी के लिहाज से मुझे और सुहास पलसीकर को नौवीं, दसवीं, 11वीं और 12वीं कक्षा की राजनीतिक शास्त्र की पुस्तक के पुनर्लेखन के लिए मुख्य सलाहकार के तौर पर आमंत्रित किया गया। हमारा दायित्व यह देखना था कि पुस्तकें कैसी हों, सिलेबस कैसा हो, क्या विषय रखा जाए और क्या नहीं। मेरा संबंध सिर्फ राजनीतिक शास्त्र की पुस्तक से रहा, इतिहास की किताब से नहीं। हालांकि, मैंने वर्ष 2012 में मुख्य सलाहकार के दायित्व से इस्तीफा दे दिया था। ऐसे में वर्तमान स्थिति में जो कुछ हुआ है, उससे मेरा कोई संबंध नहीं है।

सवाल : लेकिन ‘समाज का बोध’ पुस्तक में ‘पाठक के नाम पत्र’ में अभी भी मुख्य सलाहकार के रूप में आपका नाम है, इस पर आप क्या कहेंगे?

जवाब : वर्ष 2005 में जब पुस्तक लिखी गई थी, तब मैं मुख्य सलाहकार था, लेकिन वर्ष 2012 में एनसीईआरटी की पुस्तक को लेकर विवाद उठा और तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने संसद में किताब एवं पाठ्यसामग्री का बचाव नहीं किया, तब मैंने और पलसीकर ने मुख्य सलाहकार के दायित्य से इस्तीफा दे दिया। ऐसे में अभी भी मेरा नाम लिया जाना उचित नहीं है। इसमें यह लिखा जाना चाहिए था कि पुस्तक में नए संशोधन के समय मैं मुख्य सलाहकार नहीं था।

सवाल : एनसीईआरटी की नयी पुस्तकों में मुगलों के इतिहास को गौण करने, महात्मा गांधी की हत्या से जुडे अंश हटाने, आरएसएस पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगाए जाने का उल्लेख हटाने जैसे विषयों को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया है। कई दलों ने इसकी काफी आलोचना की है। आप इसे कैसे देखते हैं?

जवाब : जो कुछ भी हो रहा है, वह हाल की बात नहीं है। पिछले आठ-नौ वर्षों में, जब से यह सरकार (भाजपा नीत सरकार) आई है, तब से लगातार हर वर्ष एनसीईआरटी की किताबों से कुछ न कुछ अंश हटाया जा रहा है। ऐसे अंश हटाए जा रहे हैं, जो इस सरकार को असुविधाजनक लगते हैं। इसमें गुजरात दंगों पर एनएचआरसी (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग) की टिप्पणी से लेकर अनेक उदाहरण शामिल हैं।

पिछले करीब नौ वर्षों में स्कूली पाठ्यपुस्तकों में लगातार शब्द बदले या हटाए गए, उद्धरणों पर ‘कैंची’ चलाई गई और इस प्रकार से किताब की आत्मा को खत्म किया गया।

सवाल : पाठ्यपुस्तकों में बदलाव और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा के मसौदे को आप वर्तमान एवं भविष्य के परिप्रेक्ष में कैसे देखते हैं? छात्रों के सर्वांगीन विकास में यह कैसे सहायक होगा?

जवाब : स्कूली पुस्तकों का यह प्रयास होता है कि जब नौंवी, दसवीं, 11वीं और 12वीं के बच्चे देश के जिम्मेदार नागरिक बनने की राह पर हों, तब उन्हें देश की राजनीति और लोकतंत्र के बारे में जानकारी दी जाए। इससे उन्हें यह पता लगेगा कि लोकतंत्र कैसे काम करता है, संविधान के मूल्य क्या हैं। इस प्रयास में यह ध्यान दिया जाता है कि किसी पार्टी विशेष का आग्रह या दुराग्रह शामिल न हो।

हालांकि, वर्तमान सरकार में जो कुछ हुआ है, वह शुद्ध राजनीतिक अवसरवादिता और पक्षधरता है। नौ वर्षों में वर्तमान सरकार नयी पुस्तक लिखने की क्षमता तैयार नहीं कर पाई और कोई ऐसा क्षमतावान व्यक्ति सरकार की समिति से नहीं जुड़ा, जो नयी पुस्तक तैयार करा सके।

सवाल : सरकार द्वारा पुस्तकों का पुनर्लेखन या संशोधन नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आधार पर करने की बात कही जा रही है, इस पर आपकी प्रतिक्रिया क्या है?

जवाब : राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक बड़ा सवाल है और इस पर मेरी कुछ बुनियादी असहमतियां हैं। लेकिन सवाल शिक्षा नीति का नहीं है। एनसीईआरटी की पुस्तकों पर जिस प्रकार से ‘कैंची’ चलाई गई है, उसका किसी नीति से कोई संबंध नहीं है।

नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक पैराग्राफ दिखाएं, जिसके आधार पर यह किया गया है। इनकी अपनी शिक्षा नीति ही इस कवायद को उचित नहीं ठहराती है। कोई भी शिक्षाविद इस तरह की एकतरफा कार्रवाई का समर्थन नहीं कर सकता है। अगर गुजरात दंगों से जुड़े अंश हटाए गए हैं, तो 1984 के सिख विरोधी दंगों के उद्धरण को किस आधार पर रखा गया है।

भाषा

दीपक पारुल

पारुल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)