महाराष्ट्र में रहेगी उद्धव ठाकरे सरकार या जाएगी? SC में जारी है सुप्रीम सुनवाई

Maharashtra political crisis:  महाराष्ट्र सियासी संकट पर पूरे देश की निगाह टिकी हुई है। वहां की उद्धव ठाकरे सरकार रहेगी या जाएगी... इस मामले..

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  • Publish Date - June 29, 2022 / 07:15 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:12 PM IST

Maharashtra political crisis:  महाराष्ट्र सियासी संकट पर पूरे देश की निगाह टिकी हुई है। वहां की उद्धव ठाकरे सरकार रहेगी या जाएगी… इस मामले में सुप्रीम सुनवाई चल रही है। महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट के बीच राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने फ्लोर टेस्ट को लेकर सरकार को नोटिस दे दिया है। अब उस फ्लोर टेस्ट के खिलाफ महा विकास अघाडी सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है जिस पर सुनवाई शुरू हो गई है।

अभिषेक मनु सिंघवी की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल पूछा है कि क्या फ्लोर टेस्ट के लिए कोई न्यूनतम समय होता है। क्या संविधान में ऐसा लिखा है कि अगर फ्लोर टेस्ट होता है तो सरकार बदल जाती है, तो दोबारा फ्लोर टेस्ट नहीं किया जा सकता?

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कोर्ट ने ये भी सवाल पूछा है कि क्या बहुमत परीक्षण 10 या 15 दिनों में दुबारा नही हो सकता अगर परिस्थिति बदलती है तो? संविधान में इसको लेकर क्या प्रावधान है? इस पर सिंघवी ने कहा है कि फ्लोर टेस्ट बहुमत जानने के लिए होता है। इसमें इस बात की उपेक्षा नहीं कर सकते कि कौन वोट डालने के योग्य है, कौन नहीं। स्पीकर के फैसले से पहले वोटिंग नहीं होनी चाहिए। उनके फैसले के बाद सदन सदस्यों की संख्या बदलेगी।

इस पूरे मामले में शिवसेना की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी पक्ष रखने जा रहे हैं, तो वहीं शिंदे गुट की तरफ से कोर्ट में नीरज किशन कौल अपनी दलील रखने वाले हैं। सुनवाई के दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि उन्हें आज ही फ्लोर टेस्ट को लेकर जानकारी मिली है। जब तक विधायकों का सत्यापन नहीं हो जाता, फ्लोर टेस्ट नहीं किया जा सकता है।

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लेकिन कोर्ट इस दलील से ज्यादा संतुष्ट नजर नहीं आए। उन्होंने फिर सिंघवी से सवाल पूछा कि अयोग्यता का मामला कोर्ट में लंबित है। जो हम तय करेंगे कि नोटिस वैध है या नहीं? लेकिन इससे फ्लोर टेस्ट कैसे प्रभावित हो रहा है? इस पर सिंघवी बताते हैं कि अयोग्यता को लेकर अगर स्पीकर फैसला लेते हैं और अयोग्य करार देते हैं तो फैसला 21/22 जून से लागू होगा। जब उन्होंने नियमों को तोड़ा है, उस दिन से उन्हें विधानसभा का सदस्य नहीं माना जाएगा।

वहीं सुनवाई के दौरान विधायकों को अयोग्य घोषित करने वाले नोटिस पर भी पर सवाल-जवाब हुए। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि वर्तमान स्थिति को देखते हुए दो सिचुएशन दिखाई पड़ती हैं। पहली ये कि स्पीकर ने विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया है और दूसरी ये कि अयोग्य को लेकर नोटिस जारी किया गया है, लेकिन अभी फैसला लंबित है।

राज्यपाल पर सिंघवी ने लगाए आरोप

सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा कि इस पूरे मामले में क्योंकि सिंघवी एक्सपर्ट हैं, ऐसे में सारे कानूनी सवाल भी उन्हीं से पूछे जा रहे हैं। इस पर सिंघवी ने शिवसेना का पक्ष रखते हुए कहा कि राज्यपाल ने सत्र बुलाने से पहले CM या मंत्रिमंडल से सलाह नही ली। जबकि उन्हें पूछना चाहिए था। राज्यपाल मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद के बजाय फडणवीस के इशारे और सलाह पर काम कर रहे हैं।

सुनवाई के दौरान सिंघवी ने अपने उस बयान को भी दोबारा दोहराया कि कोई सड़क से उठकर फ्लोर टेस्ट में शामिल नहीं हो सकता है। जो सदन का सदस्य नहीं है उसे कैसे वोट डालने की इजाजत दी जा सकती है। वैसे इस सुनवाई के बीच सुप्रीम कोर्ट ने उन 34 विधायकों की समर्थन वाली चिट्ठी का भी जिक्र किया जो राज्यपाल को दी गई थी। कोर्ट ने पूछा कि क्या वे इस चिट्ठी पर भी सवाल खड़ा करते हैं। इस पर सिंघवी ने साफ कहा कि उस चिट्ठी की विश्वसनीयता को लेकर किसी को कोई जानकारी नहीं है। राज्यपाल ने भी एक हफ्ते तक उस चिट्ठी पर कोई एक्शन नहीं लिया। जब विपक्ष के नेता ने उनसे मुलाकात की, तब जाकर वे एक्शन में आए।

लेकिन इन दलीलों के बावजूद भी कोर्ट की तरफ से लगातार तीखे सवाल दागे गए। पूछा गया कि अगर नोटिस भेज दिए गए, क्या अब राज्यपाल को सिर्फ उन नोटिस पर आने वाली आउटकम का इंतजार करना चाहिए या फिर वे कुछ फैसला ले सकते हैं? अब कोर्ट के इन सवालों पर सिंघवी के पास सिर्फ कुछ दूसरे सवाल थे। उन्होंने राज्यपाल पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि स्पीकर के खिलाफ भी एक नोटिस था। लेकिन उस नोटिस को उन्होंने खारिज कर दिया। तर्क दिया गया कि किसी असत्यापित मेल आइडी से वो नोटिस आया है। अब जरा ये देखिए राज्यपाल सिर्फ दो दिन पहले ही अस्पताल से आए हैं। उनकी तरफ से कुछ भी वेरिफाई नहीं किया गया है। लेकिन उनके अस्पताल से आते ही नेता विपक्ष ने उनसे मुलाकात कर ली।

राज्यपाल के अधिकारों पर बहस

लेकिन कोर्ट ने सवाल उठाया कि मान लीजिए, एक काल्पनिक स्थिति में, एक सरकार को पता है कि उसने बहुमत खो दिया है, और उसने स्पीकर का इस्तेमाल अयोग्यता नोटिस जारी करने के लिए किया है, राज्यपाल को क्या करना चाहिए? क्या वह अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है?

इस पर अभिषेक मनु सिंघवी तर्क रखते हैं कि ये लोग एक असत्यापित ईमेल भेजकर सूरत और फिर गुवाहाटी जाते हैं कि उन्हें स्पीकर पर कोई भरोसा नहीं है। यह नाबिया के फैसले का दुरुपयोग है। 10वीं अनुसूची की शक्ति का प्रयोग करने से अध्यक्ष को रोकने के लिए ये किया गया है। क्या राज्यपाल को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार नहीं करना चाहिए था। अगर कल फ्लोर टेस्ट नहीं होता तो क्या आसमान गिर जाता? सिंघवी की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि विवाद कोई भी क्यों ना रहे, लेकिन लोकतंत्र में उसका फैसला सिर्फ और सिर्फ सदन में ही होना चाहिए। जो भी फैसले लोकतंत्र से जुड़े हुए हैं, उनका समाधान भी सदन के पटल पर ही निकलना चाहिए।

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