उच्चतम न्यायालय धर्मांतरण को लेकर 16 अप्रैल को करेगा याचिकाओं पर सुनवाई

उच्चतम न्यायालय धर्मांतरण को लेकर 16 अप्रैल को करेगा याचिकाओं पर सुनवाई

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  • Publish Date - April 10, 2025 / 04:18 PM IST,
    Updated On - April 10, 2025 / 04:18 PM IST

नयी दिल्ली, 10 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय देश में धर्म परिवर्तन के मुद्दे से संबंधित याचिकाओं पर 16 अप्रैल को सुनवाई करेगा।

यद्यपि कुछ याचिकाओं में कई राज्यों के धर्मांतरण-रोधी कानूनों को चुनौती दी गई है, वहीं एक अन्य याचिका में जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ राहत का अनुरोध किया गया है।

उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर 16 अप्रैल की वादसूची से पता चलता है कि यह मामला प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ के समक्ष आएगा।

शीर्ष अदालत ने जनवरी 2023 में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि धर्म परिवर्तन एक गंभीर मुद्दा है और इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए।

उसने केंद्र और राज्यों को कथित धोखाधड़ी से होने वाले धर्म परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाने के निर्देश संबंधी याचिका पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की सहायता मांगी थी।

याचिका में ‘भय, धमकी, उपहार और मौद्रिक लाभ के जरिये धोखे से धर्मांतरण’ पर रोक लगाने का अनुरोध किया था।

शीर्ष अदालत ने 2023 में कई राज्यों के धर्मांतरण-रोधी कानूनों को चुनौती देने वाले पक्षों से कहा था कि वे इससे संबंधित मामलों को उच्च न्यायालयों से शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने के लिए एक आम याचिका दायर करें।

उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि ‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष कम से कम पांच ऐसी याचिकाएं हैं, जबकि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष सात, गुजरात और झारखंड उच्च न्यायालयों के समक्ष दो-दो, हिमाचल प्रदेश के समक्ष तीन और कर्नाटक और उत्तराखंड उच्च न्यायालयों के समक्ष एक-एक याचिका लंबित हैं।’

गुजरात और मध्यप्रदेश ने धर्मांतरण पर उनके कानूनों के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने वाले संबंधित उच्च न्यायालयों के अंतरिम आदेशों को चुनौती देते हुए दो अलग-अलग याचिकाएं भी दायर की थीं।

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भी उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के धर्मांतरण-रोधी कानूनों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया और तर्क दिया था कि ये अंतरधार्मिक युगलों को ‘परेशान’ करने एवं उन्हें आपराधिक मामलों में फंसाने के लिए बनाए गए थे।

इस मुस्लिम संस्था ने कहा कि पांचों राज्यों के सभी स्थानीय कानूनों के प्रावधान किसी व्यक्ति को अपने धर्म का खुलासा करने के लिए मजबूर करते हैं और परिणामस्वरूप, उनकी निजता का हनन करते हैं।

भाषा राजकुमार सुरेश

सुरेश