19 साल की उम्र में ‘क्रांतिकारी साधु’ और 1950 में बने दंडी संन्यासी, इस दिन शंकराचार्य की उपाधि से हुए विख्यात 

swami swaroopanand saraswati: द्वारकापीठ के शंकराचार्य  स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन हो गया। उन्होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर के....

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:28 pm IST
Published Date: September 11, 2022 5:52 pm IST

swami swaroopanand saraswati: द्वारकापीठ के शंकराचार्य  स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन हो गया। उन्होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में दोपहर साढ़े 3 बजे अंतिम सांस ली। 99 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। वे लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। स्वरूपानंदजी आजादी की लड़ाई में जेल भी गए थे। उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी। जगतगुरु शंकराचार्य का 99वां जन्मदिन हरियाली तीज के दिन मनाया था। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य थे।

19 साल की उम्र में वह ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में 9 और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटी। वे करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे। 1950 में वह दंडी संन्यासी बनाये गए और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली। 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।

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स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म २ सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में हुआ था। उनके पिता धनपति उपाध्याय और मां का नाम गिरिजा देवी था। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्राएं शुरू की। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। उस दौरान भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। 1942 में जब अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।

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