जश्न ए रेख्ता के दस साल : संघर्ष, सफलता और उर्दू को मुख्य धारा में लाने का जश्न है ये सफर

जश्न ए रेख्ता के दस साल : संघर्ष, सफलता और उर्दू को मुख्य धारा में लाने का जश्न है ये सफर

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  • Publish Date - December 2, 2025 / 04:18 PM IST,
    Updated On - December 2, 2025 / 04:18 PM IST

नयी दिल्ली, दो दिसंबर(भाषा) रेख्ता फाउंडेशन ने जब 2015 में पहले जश्न ए रेख्ता का आयोजन किया था तो इसके पीछे का विचार एकदम सादा था- उर्दू को किताबों की दुनिया से बाहर लाकर उसे नयी धड़कन देना और उसका अब तक का सफर इस बात का गवाह रहा है कि उर्दू अदब की हर साल सजने वाली यह महफिल अपने इस मकसद में को हासिल करने के साथ ही कामयाबी की नई मिसालें गढ़ रही है।

एक दशक बाद आज जश्न ए रेख्ता हिंदुस्तान के सबसे बड़े सांस्कृतिक जलसे का मकाम हासिल कर चुका है और ये एक ऐसी खिड़की की तरह है जहां से एक पूरी नई पीढ़ी उस ज़बान में गुंथी कहानियों को बुन सुन रही है जिसे कभी मुश्किल, पेचीदा और उनके लिए ‘अलहदा’ माना जाता था।

इस साल जश्न ए रेख्ता की महफिल पांच से सात दिसंबर तक यहां बानसेरा पार्क में सजेगी।

इस सफर की शुरुआत एक वेबसाइट से हुई थी।

जश्न ए रेख्ता की दसवीं सालगिरह से पहले उन शुरुआती दिनों को याद करते हुए इसके संस्थापक संजीव सराफ और क्रिएटिव डायरेक्टर हुमा खलील ने डिजिटल माध्यम से दिये गए एक साक्षात्कार में ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘हमने रेख्ता वेबसाइट से शुरू किया था। हमारी ज्यादातर साहित्यिक विरासत उपलब्ध नहीं थी। ये ऐसे लिपि में थी जिसे बहुत से लोग नहीं पढ़ सकते। इसलिए हमने एक एक शब्द को उर्दू, देवनागरी, रोमन और अंग्रेजी में ऑनलाइन उपलब्ध कराया ताकि कोई भी इसे पढ़ सके।’’

लेकिन जल्द ही टीम ने महसूस किया कि केवल पढ़ना ही काफी नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘ किताब की अपनी सीमाएं हैं, जबकि उर्दू ज़बान खुद को कई शक्लों में पेश करती है, जैसे कि कव्वाली, दास्तांगोई, मुशायरा, ग़ज़ल और थियेटर। केवल किताब पढ़ने से आप उर्दू का मुख्तलिफ ज़ायकों का लुत्फ नहीं ले सकते । इसलिए हमने इसे जनता के बीच ले जाने का फैसला किया।’’

इसका पहला आयोजन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में किया गया था।

सराफ कहते हैं, ‘‘ और उस दिन के बाद से यह लगातार बढ़ रहा है। क्योंकि उर्दू के लिए एक तलब लोगों में थी। ये एक इंतेहाई खूबसूरत ज़बान है जिसकी अपनी मुलायमियत सुनने वालों को गिरह में बांध लेती है।’’

खलील कहती हैं कि एक समय उर्दू केवल विद्वानों और शोधार्थियों की ज़बान थी और भारत में इसके प्रति एक अजनबीयत का भाव था। 1947 में विभाजन के बाद जब पाकिस्तान ने इसे अपनी आधिकारिक ज़बान के तौर पर अपनाया तो ये भाषा पहचान संबंधी बहसों में फंस गई ।’’

जश्न ए रेख्ता के जरिए रेख्ता फांडेशन ने उर्दू ज़बान को हिंदुस्तान में एक नए मुकाम पर पहुंचाया है। खलील कहती हैं, ‘‘ ये जश्न उर्दू अदब की दुनिया में खुलने वाली एक खिड़की है।’’

दोनों पति पत्नी को इस बार जश्न ए रेख्ता में बानसेरा पार्क में और अधिक संख्या में दर्शकों-श्रोताओं के शामिल होने की उम्मीद है जहां एक दिन का टिकट कम से कम छह सौ रूपये और अधिकतम टिकट 15,000 रूपये है।

इस बार जश्न ए रेख्ता में दो सौ ज्यादा कलाकार, लेखक और शायर शिरकत करेंगे जिनमें गुलज़ार, जावेद अख्तर, राणा सफवी, पुष्पेश पंत और तराना हुसैन मुख्य वक्ता रहेंगे। इसमें उर्दू लिपि से लेकर, खानपान और साहित्य पर चर्चाएं होंगी।

इसमें सुखविंदर सिंह, ध्रुव संगारी, मीनू बख्शी, विद्या शाह, रिनी सिंह और सुलेमान हुसैन अपनी संगीत प्रस्तुतियां देंगे।

इसके साथ ही वसीम बरेलवी, विजेंद्र सिंह परवेज, हिलाल फरीद, शारिक कैफी, अजहर इकबाल जैसे जाने माने शायरों के अलावा अब्बास कमर, आयशा अयूब, अली हैदर , अमीर हमजा हल्बे और हिमांशी बाबरा कातिब जैसे उभरते सितारे भी अपने फन का मुज़ाहिरा करेंगे।

भाषा

नरेश प्रशांत

प्रशांत