नयी दिल्ली, दो दिसंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय राष्ट्रीय राजधानी में खतरनाक वायु प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कदम उठाने के अनुरोध वाली एक याचिका पर बुधवार को सुनवाई करेगा।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि यह अनुरोध एक जनहित याचिका की प्रकृति का है, इसलिए इसकी सुनवाई जनहित याचिका रोस्टर वाली पीठ द्वारा की जानी चाहिए।
यह याचिका बुधवार को मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की जाएगी।
याचिका में कहा गया है कि पिछले कई वर्षों में दिल्ली में वायु गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है, विशेष रूप से सर्दियों के दौरान वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) अक्सर ‘बहुत खराब’, ‘गंभीर’ और ‘खतरनाक’ श्रेणियों में पहुंच जाता है। इसमें कहा गया है कि बढ़ते प्रदूषण के कारण बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों और पहले से बीमार लोगों सहित निवासियों में लगातार गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
यह याचिका ग्रेटर कैलाश-दो वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दायर की गई है, जिसमें अदालत से वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए तत्काल और दीर्घकालिक, दोनों तरह के प्रभावी और वैज्ञानिक उपाय करने का आदेश देने का आग्रह किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि वायु गुणवत्ता में लगातार गिरावट के बावजूद अधिकारी ‘निष्क्रिय’ बने रहे, तथा उन्होंने चरणबद्ध प्रतिक्रिया कार्ययोजना (जीआरएपी) के ‘तीसरे चरण में उठाए जाने वाले कदम’ के निर्देश तभी जारी किए जब एक्यूआई गंभीर स्तर को पार कर गया।
इसमें आरोप लगाया गया कि सरकार ने वास्तविक कार्यान्वयन सुनिश्चित किए बिना केवल कागज पर उपाय निर्धारित करने तक ही खुद को सीमित रखा है।
याचिका में कहा गया है, ‘आज तक कोई वास्तविक या पर्याप्त जमीनी उपाय किए बिना इस तरह की विलम्बित और दिखावटी कार्रवाई से केवल और अधिक देरी हुई है। लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को लापरवाही से खतरे में डाला गया है और वर्तमान सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की गंभीरता के प्रति पूर्ण उपेक्षा प्रदर्शित की गई है।’
याचिका में दिल्ली सरकार, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण समिति (सीपीसीसी), वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम), दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) और दिल्ली पुलिस को प्रतिवादी पक्ष बनाया गया है।
भाषा आशीष दिलीप
दिलीप