AIMPLB On UCC : “UCC का असली निशाना केवल मुसलमान हैं”…. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता ने दिया बड़ा बयान

AIMPLB On UCC : ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रदेश में UCC लागू करने पर तंज कसा है।

AIMPLB On UCC : “UCC का असली निशाना केवल मुसलमान हैं”…. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता ने दिया बड़ा बयान

AIMPLB On UCC

Modified Date: February 7, 2024 / 11:00 pm IST
Published Date: February 7, 2024 11:00 pm IST

नई दिल्ली : AIMPLB On UCC : ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रदेश में UCC लागू करने पर तंज कसा है। AIMPLB के अनुसार उत्तराखंड सरकार द्वारा UCC बिल में आदिवासियों को और बहुसंख्यक वर्ग को भी कई छूटें दी गई हैं जिससे स्पष्ट होता है कि UCC क़ानून का असली निशाना केवल मुसलमान हैं।

AIMPLB के प्रवक्ता डॉ. सैयद कासिम रसूल इलियास ने एक प्रेस बयान में कहा की उत्तराखंड सरकार का प्रस्तावित UCC अनावश्यक, अनुचित, विविधता विरोधी और अव्यवहारिक है जिसको राजनैतिक लाभ के लिए ज़ल्दबाजी में पेश किया गया है। यह केवल दिखावा और राजनीतिक प्रचार से अधिक कुछ नहीं है सर्वप्रथम विवाह और तलाक़ का संक्षेप में उल्लेख किया गया है उसके बाद विस्तार से विरासत का उल्लेख किया गया है और अंत में अजीब तौर पर लिव-इन रिलेशनशिप के लिए एक नई क़ानूनी प्रणाली प्रस्तुत की गई है। ऐसे रिश्ते निस्संदेह सभी धर्मों के नैतिक मूल्यों को प्रभावित करेंगे।

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प्रचार मात्र के लिए है दूसरी शादी पर प्रतिबंध लगाना

AIMPLB On UCC :  UCC बिल प्रस्तावित क़ानून में दूसरी शादी पर प्रतिबंध लगाना भी केवल प्रचार मात्र के लिए है क्योंकि सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से ही पता चलता है कि इसका अनुपात भी तीव्रता से गिर रहा है। दूसरी शादी मौज-मस्ती के लिए नहीं बल्कि सामाजिक आवश्यकता के कारण की जाती है। यदि दूसरी शादी पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो इसमें महिला की ही हानि है। इस मामले में आदमी को मजबूरन पहली पत्नी को तलाक़ देना होगा। अनुसूचित जनजातियों को पहले ही UCC 2024 अधिनियम से बाहर रखा गया है, अन्य सभी जाति समुदायों को उनके रीति-रिवाजों में छूट दी गई है। जब कोई समस्या उत्तर मांगती है तो एकरूपता कहां रह गयी?

मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया) एप्लीकेशन एक्ट 1937 के अनुसार निकाह़ (विवाह), तलाक़ और विरासत से संबंधित मामले इसी एक ही क़ानून द्वारा शासित होंगे। यहाँ एक और प्रश्न जन्म लेता है कि किसी राज्य का क़ानून किसी केंद्रीय क़ानून को कैसे समाप्त या रद्द कर सकता है और वह भी उसका नाम लिए बिना। हमें विश्वास है कि कुछ क़ानूनी विरोधाभासों को उचित समय पर अदालतों द्वारा हल किया जाएगा क्योंकि कुछ धाराएं उल्लंघनकारी और असंवैधानिक हैं।

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देश के मतदाताओं को यह धोखा देने का प्रयास कर रही एक विधानसभा

AIMPLB On UCC :  यह ददुःखद तथ्य है कि UCC बिल के नाम पर एक विधानसभा देश के मतदाताओं को यह धोखा देने का प्रयास कर रही है कि उसने वास्तव में बहुत अच्छा काम किया है जबकि उसने ऐसा नहीं किया है। यह प्रस्तावित UCC क़ानून केवल कार्यों की बहुलता और भ्रम को जन्म देगा। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि निकाह़, तलाक़, विरासत आदि जैसे मुद्दे भारत के संविधान की वर्तमान संयुक्त सूची (केंद्र और राज्य दोनों) में शामिल हैं। संविधान के अनुच्छेद 245 के अनुसार संसद को इन पर क़ानून बनाने का अधिकार है। ऐसा क़ानून बनाने का अधिकार केवल संसद को है, राज्य की शक्ति संसद की इस विशेष शक्ति के अधीन हैं।

AIMPLB के प्रवक्ता ने आखिर में कहा कि, उत्तराखंड के प्रस्तावित क़ानून से अनुसूचित जनजातियों को छूट दी गई है फिर इसे समान नागरिक संहिता कैसे घोषित किया जा सकता है जबकि राज्य में आदिवासियों की आबादी अच्छी-खासी है और बहुसंख्यक वर्ग को भी कई छूटें दी गई हैं जिससे स्पष्ट होता है कि क़ानून का असली निशाना केवल मुसलमान हैं।

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