नयी दिल्ली, चार सितंबर (भाषा) दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना ने ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ (एनबीए) की नेता मेधा पाटकर की पांच महीने की सजा के खिलाफ दायर अपील पर अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा कि (पाटकर की) अपील कानूनी रूप से विचारणीय नहीं है और खारिज किये जाने योग्य है।
साकेत अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने 29 जुलाई को मानहानि के मामले में पाटकर की सजा निलंबित कर दी थी और सक्सेना से जवाब दाखिल करने को कहा था।
सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ 23 साल पहले आपराधिक मानहानि का मामला दायर कराया था। उस वक्त सक्सेना गुजरात में एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) का नेतृत्व कर रहे थे।
मजिस्ट्रेट अदालत ने 24 मई को पाटकर को दोषी ठहराया था और एक जुलाई को पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी तथा 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था। पाटकर ने इस फैसले को सत्र अदालत में चुनौती दी थी।
सक्सेना के वकील गजिंदर कुमार और किरण जय ने पाटकर की अपील पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह विचार करने योग्य नहीं है और इसे खारिज किया जाना चाहिए, क्योंकि पाटकर ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
उन्होंने कहा कि 24 जुलाई की तारीख वाली अपील पर केवल पाटकर के वकील के हस्ताक्षर हैं।
सक्सेना के वकीलों ने दलील दी कि इसके अलावा, पाटकर ने एक ‘फर्जी हलफनामा’ दायर किया था, जो 17 जुलाई की तारीख का बना था एवं यह हस्ताक्षरित और सत्यापित था, जबकि उस तारीख को अपील का वजूद ही नहीं था।
अधिवक्ताओं ने कहा, इन कारणों से, अपील की विषय-वस्तु की ‘‘सच्चाई और सत्यता’’ के बारे में ‘‘घोर संदेह’’ है।
सक्सेना के जवाब के अनुसार, ‘‘अभियुक्त या अपीलकर्ता (पाटकर) के हस्ताक्षर के बिना और पहले की तारीख में झूठे हलफनामे के साथ अपील दायर करने का यह तरीका न केवल इस अदालत की अवमानना और मिथ्या शपथ का कृत्य है, बल्कि यह अपीलकर्ता की ओर से अपनी सुविधा के अनुसार किसी एक या पूरे तथ्य एवं रिकॉर्ड को नकारने की एक चतुर रणनीति है।’’
सक्सेना के जवाब में आरोप लगाया गया है कि पाटकर ने पहले अदालतों को गुमराह किया था और पकड़े जाने के बाद अज्ञानता एवं अनजाने में हुई गलतियों का हवाला देकर अपने वकीलों पर इसकी जिम्मेदारी थोपने की कोशिश की थी।
इसके बाद अदालत ने पाटकर की वकील श्री देवी से अदालत की आधिकारिक ईमेल आईडी पर पाटकर के हस्ताक्षर के साथ अपील की एक प्रति ईमेल करने को कहा।
इसमें कहा गया है कि सक्सेना के वकील द्वारा उठाए गए ‘कानूनी मुद्दों’ को बरकरार रखा जा रहा है।
मामले की आगे की कार्यवाही के लिए 18 अक्टूबर की तारीख तय की गयी है।
मजिस्ट्रेट अदालत ने पाटकर को यह कहते हुए दोषी ठहराया था कि सक्सेना को ‘कायर’ कहना तथा हवाला लेनदेन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाना न केवल अपने आप में मानहानिकारक था, बल्कि उनके बारे में नकारात्मक धारणा को भड़काने के लिए भी गढ़ा गया था।
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