जब कोई व्यक्ति धर्म पर सवाल उठाता है तब वह पितृसत्ता को चुनौती दे रहा होता है: निर्देशक शाजिया इकबाल
जब कोई व्यक्ति धर्म पर सवाल उठाता है तब वह पितृसत्ता को चुनौती दे रहा होता है: निर्देशक शाजिया इकबाल
नयी दिल्ली, 29 सितंबर (भाषा) फिल्म निर्देशक शाजिया इकबाल ने कहा है कि जब कोई व्यक्ति धर्म पर सवाल उठाता है तब वह पितृसत्ता को भी चुनौती दे रहा होता है।
इकबाल की लघु फिल्म ‘बेबाक’ हिजाब पर चर्चा शुरू करने की एक कोशिश है।
फिल्म की कहानी सच्ची घटनाओं से प्रेरित है, जो वास्तुकला के क्षेत्र में करियर बनाने की इच्छुक एक छात्रा के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है और यह किरदार सारा हाशमी ने निभाया है। फिल्म में दिखाया गया है कि छात्रवृत्ति के लिए एक साक्षात्कार के दौरान हिजाब नहीं पहनने को लेकर एक धर्म गुरु उसे फटकार लगाता है। धर्मगुरू का किरदार अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने निभाया है।
इकबाल ने ‘पीटीआई-भाषा’ से एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘हम पितृसत्ता वाले समाज में रहते हैं और पितृसत्ता एवं धर्म के बीच 1,000 वर्षों की जुगलबंदी है। यह अब भी जारी है, वे एकसाथ काम करते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कुछ लोग आगे आए हैं और प्रगतिशील हो गए हैं। जब वे धर्म पर सवाल उठाते हैं, तब वे पितृसत्ता पर भी सवाल उठा रहे होते हैं…। (महिला के साथ) संपत्ति जैसा व्यवहार करना इसी जुगलबंदी का हिस्सा है। उन्हें महज बहन, मां, पत्नी के रूप में देखना स्वामित्व जताना है।’’
‘बेबाक’ के निर्माता अनुराग कश्यप हैं। यह फिल्म ओटीटी (ओवर द टॉप) मंच जियो सिनेमा पर एक अक्टूबर से उपलब्ध होगी। इसमें शीबा चड्ढा और विपिन शर्मा भी हैं।
इकबाल ने कहा कि परंपरा और संस्कृति के नाम पर महिलाओं को दरकिनार कर दिया जाता है और कोई भी व्यक्ति पितृसत्ता और धर्म के बीच इस ‘समन्वय’ पर सवाल नहीं उठाना चाहता।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे समझ में नहीं आता कि फिल्मों में ऐसी कहानियां क्यों नहीं हैं जो इस रोजमर्रा की पितृसत्ता पर सवाल उठाती हों। जब हम बलात्कार की घटनाओं के बारे में बात करते हैं, तो हम पूछते हैं कि उसने क्या पहना था, कितने बजे की घटना है, क्या वह (पीड़िता) नशे में थी।’’
उन्होंने सवाल किया,‘‘आप उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले व्यक्ति से सवाल करने के बजाय पीड़िता से सवाल करते हैं। यह संस्कृति पितृसत्तात्मक समाज में अंतर्निहित है। हिजाब पहनने से महिलाओं के खिलाफ हिंसा को नियंत्रित करने में मदद नहीं मिलती है, तो वे अपने-आप को इतना क्यों ढंकती हैं? क्या खुद को ज्यादा शालीन दिखाने के लिए?’’
बिहार में जन्मी निर्देशक ने कहा कि ‘बेबाक’ की कहानी काफी हद तक उन चीजों से मिलती-जुलती है जिसका उन्होंने कॉलेज की अपनी पढ़ाई के दौरान अनुभव किया था और बाद में उसे अपनी इस 20 मिनट की फिल्म का हिस्सा बनाने का फैसला किया।
इकबाल ने कहा कि जब फ्रांस ने 2011 में बुरका पर प्रतिबंध लगा दिया था तब पूरी चर्चा दक्षिणपंथ बनाम वामपंथ पर केंद्रित हो गई थी।
उन्होंने कहा, ‘‘यह (चर्चा) हिजाब के बारे में नहीं थी, यह इस बारे में अधिक थी कि आप किस ओर हैं। इंटरनेट पर सब कुछ इन्हीं दो भागों में बंट गया था, चाहे वह भारत, अमेरिका या विश्व का कोई और देश हो। मैंने सोचा कि क्या हम एक ऐसी फिल्म बना सकते हैं कि जो इस विषय पर चर्चा शुरू करे।’’
भाषा सुभाष सिम्मी
सिम्मी

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