मी लॉर्ड ‘मैं मां बनना चाहती हूं, पति का साथ चाहिए’, कोर्ट ने 15 दिन के पैरोल पर छोड़ा

उम्रकैद में बंद पति से बच्चे की इच्छा रखने वाली उसकी पत्नी कलेक्टर के पास अर्जी दी और कहा कि बच्चे के लिए कुछ दिन की पैरोल पर पति को छोड़ दें, लेकिन कलेक्टर ने इस पर गंभीरता से विचार नहीं लिया। बाद में पत्नी हाईकोर्ट तक जा पहुंची। 'I want to be a mother, let husband go home for a few days', court left on parole for 15 days

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  • Publish Date - April 8, 2022 / 10:47 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:17 PM IST

जयपुर। desire to become a mother: राजस्थान में पैरोल का एकदम अलग सा मामला सामने आया है। उम्रकैद में बंद पति से बच्चे की इच्छा रखने वाली उसकी पत्नी कलेक्टर के पास अर्जी दी और कहा कि बच्चे के लिए कुछ दिन की पैरोल पर पति को छोड़ दें, लेकिन कलेक्टर ने इस पर गंभीरता से विचार नहीं लिया। बाद में पत्नी हाईकोर्ट तक जा पहुंची। जिसके बाद कोर्ट ने पति को 15 दिन की पैरोल पर छोड़ दिया।

desire to become a mother: हालाकि आरोपी करीब 11 महीने पहले ही 20 दिन की पैरोल से लौटा था। दरअसल, भीलवाड़ा जिले के रबारियों की ढाणी का रहने वाला नंदलाल 6 फरवरी 2019 से अजमेर जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा है। सजा मिलने से कुछ समय पहले ही उसकी शादी हुई थी। लेकिन अपराध के मामले के चलते उसे जेल हो गई। उसके बाद पहली बार उसे पिछले साल मई में 20 दिन की पैरोल दी गई। इस बीच कोरोना और अन्य कारणों के चलते करीब दो साल तक पत्नी और परिवार से नंदलाल की मुलाकात संभव नहीं हो सकी।

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इस बीच नंदलाल की पत्नी कुछ दिन पहले जेल अफसरों के पास वकील के साथ पहुंची और कहा- वह मां बनना चाहती है, अगर पति को कुछ दिन की पैरोल पर छोड़ दें तो उसका यह अधिकार पूरा हो सकता है। जेल अफसरों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। जब जेल अफसरों की ओर से कोई जवाब नहीं आया तो वो कलेक्टर के पास पहुंची और अपना प्रार्थना पत्र दिया। कलेक्टर ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया। जब पत्नी का सब्र जवाब दे गया तो वह सीधे हाईकोर्ट जा पहुंची और जज के सामने अपना पक्ष रखा। पत्नी ने कहा-पति से अपराध हुआ है, लेकिन उनकी मंशा नहीं थी। जेल और पुलिस के तमाम नियमों का वे सख्ती से पालन कर रहे हैं। प्रोफेशनल अपराधी वे नहीं हैं।

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पैरोल में स्पष्ट प्रावधान नहीं

कोर्ट ने कहा कि पैरोल में इस तरह की कंडीशन के लिए स्पष्ट प्रावधान नहीं, लेकिन… हाईकोर्ट में जज संदीप मेहता व फरजंद अली की खंडपीठ ने इस मामले को सुना और कहा- पैरोल में संतान उत्पत्ति के लिए वैसे तो कोई साफ नियम नहीं हैं। लेकिन वंश के संरक्षण के उद्देश्य से संतान होने को धार्मिक दर्शन भारतीय संस्कृति और विभिन्न न्यायिक घोषणाओं के माध्यम से मान्यता दी। जजों ने ऋग्वेद व वैदिक भजनों का उदाहरण दिया और संतान उत्पत्ति को मौलिक अधिकार भी बताया। कोर्ट ने पक्ष सुनने के बाद कहा- दंपती को अपनी शादी के बाद से आज तक कोई समस्या नहीं है। हिंदु दर्शन के अनुसार गर्भधारण करना 16 संस्कारों में सबसे ऊपर है, इस कारण अनुमति दी जा सकती है।

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