पणजी, 11 अगस्त। सीएसआईआर-राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (एनआईओ) के हालिया शोध में गोवा में घरों में आपूर्ति किए जाने वाले नल के पानी में सूक्ष्म प्लास्टिक की मौजूदगी का पता चला है। एक अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी। सीएसआईआर-एनआईओ के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ महुआ साहा ने यहां संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि उत्तर और दक्षिण गोवा दोनों जिलों में मडगांव, पणजी, मापुसा, कानाकोना और मार्सेल में नल से लिये गए पानी में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाए गए।
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सीएसआईआर-एनआईओ और दिल्ली स्थित एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक ने उपचार पूर्व कच्चे पानी और उपचारित नल के पानी पर शोध किया । यह जल राज्य के तटीय स्थानों सेलौलिम, ओपा, असोनोरा और कैनाकोना के जलाशयों से प्राप्त किया गया था। एनजीओ के सहायक निदेशक सतीश सिन्हा ने यह जानकारी दी। बताया गया है कि पहले यह शोध पिछले साल भारत के विभिन्न शहरों में आयोजित किया जाना था, लेकिन कोविड-19 लॉकडाउन के कारण केवल गोवा तक ही सीमित रहा।
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शोध का नेतृत्व करने वाले साहा ने कहा कि मडगांव, पणजी, मापुसा, कैनाकोना और मार्सेल सहित गोवा में विभिन्न स्थानों से खींचे गए नल के पानी में माइक्रो-प्लास्टिक पाई गई। साहा ने कहा कि नल के पानी में प्लास्टिक कणों के घर्षण को माइक्रोप्लास्टिक की बढ़ती मौजूदगी का जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। वैज्ञानिक ने कहा, “भारत में नल जल वितरण प्रणाली में घरेलू पाइप मुख्य रूप से प्लास्टिक या कच्चा लोहा से बने होते हैं। इसलिए, जल उपचार संयंत्रों और जलाशयों के बीच प्लास्टिक पाइपों का क्षरण हो सकता है, जिससे उपचारित पानी में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण बैठ जाते हैं।” उन्होंने कहा कि माइक्रोप्लास्टिक के खतरे के स्तर को अभी तक स्थापित नहीं किया गया है।