Contract Employees Regularization Rejected : इन संविदा कर्मचारियों को ​​बिलासपुर हाईकोर्ट से बड़ा झटका! नियमितिकरण की मांग की याचिका खारिज

Contract Employees Regularization Rejected; जस्टिस दुबे ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए अपने फैसले में लिखा है कि संविदा कर्मचारियों को सेवा विस्तार का अधिकार नहीं होता।

HIGHLIGHTS
  • संविदा कर्मचारियों को सेवा विस्तार का अधिकार नहीं
  • नियमितीकरण का दावा भी नहीं किया जा सकता
  • CIMS में संविदा पर काम कर चुके कर्मचारियों को हाईकोर्ट से बड़ा झटका

बिलासपुर: contract employees regularization rejected, बिलासपुर के छत्तीसगढ़ इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस (CIMS) में संविदा पर काम कर चुके कर्मचारियों को हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। नियमितिकरण की मांग करते हुए लगाई गई याचिकाओं को जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच ने खारिज कर दिया।

जस्टिस दुबे ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए अपने फैसले में लिखा है कि संविदा कर्मचारियों को सेवा विस्तार का अधिकार नहीं होता। कोर्ट ने यह भी कहा है कि, प्रक्रिया के तहत याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति नहीं हुई, तो नियमितीकरण का दावा भी नहीं किया जा सकता।

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30 जून 2015 को संविदा नियुक्ति समाप्त

contract employees regularization rejected ; दरअसल, सिम्स में यदुनंदन पोर्चे, जगदीश मुखी, सुनील सिंह, अनिल श्रीवास्तव समेत 23 लोगों की संविदा नियुक्ति हुई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है, कि संविदा नियुक्ति के बाद वर्ष 1996, 2001, 2002, 2003, 2005 और 2008 से कार्य कर रहे थे। सिम्स के डीन संविदा अवधि समाप्त होने की बात करते हुए 1 जून 2015 को नोटिस जारी किया, जिसके एक महीने के भीतर 30 जून 2015 को संविदा नियुक्ति समाप्त कर दी गई।

5 जून 2015 को नए संविदा पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि संविदा नियुक्ति को समाप्त करने के बाद 5 जून 2015 को नए संविदा पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया गया और उन्हीं पदों पर संविदा भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया गया था, जिस पद पर वे काम कर रहे थे।

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मुख्यमंत्री से शिकायत के बाद यह तय किया गया था कि, पांच साल से अधिक समय से कार्यरत संविदा कर्मियों की सेवाएं नियमितीकरण तक जारी रहेंगी। डीन ने 5 अप्रैल 2011 को इस पर सहमति जताई थी, इसके बावजूद 1 जून 2015 को सेवाएं समाप्त करने का आदेश जारी कर दिया ।

कोर्ट ने संविदा कर्मचारियों की याचिका क्यों खारिज की?

उत्तर: कोर्ट ने यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती फैसलों के आधार पर लिया। फैसले में कहा गया कि संविदा कर्मचारियों को सेवा विस्तार या नियमितिकरण का वैधानिक अधिकार नहीं होता, खासकर जब उनकी नियुक्ति निर्धारित प्रक्रिया के तहत नहीं हुई हो।

याचिकाकर्ताओं का तर्क क्या था?

उत्तर: याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे कई वर्षों से (1996 से 2008 तक) CIMS में संविदा पर कार्य कर रहे थे। उन्हें विश्वास था कि इतने वर्षों की सेवा के बाद उनकी नियुक्ति नियमित की जाएगी, और मुख्यमंत्री स्तर पर भी 5 वर्षों से अधिक सेवा देने वालों की सेवाएं जारी रखने का आश्वासन दिया गया था।

कोर्ट ने किन मुख्य बिंदुओं पर ध्यान दिया?

उत्तर: संविदा नियुक्ति की प्रक्रिया निर्धारित नियमों के तहत नहीं हुई थी। संविदा कर्मचारियों को संविदा खत्म होने के बाद पुनः उसी पद पर नियुक्त करने का कोई अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, नियमितिकरण की कोई वैधानिक गारंटी नहीं है जब तक नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी और नियमानुसार न हो।

क्या यह फैसला सभी संविदा कर्मचारियों पर लागू होता है?

उत्तर: यह फैसला विशेष रूप से CIMS बिलासपुर के उन 23 संविदा कर्मचारियों पर लागू होता है जिन्होंने याचिका दायर की थी। हालांकि, यह एक नजीर (precedent) के रूप में अन्य समान मामलों में भी संदर्भ के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

अब इन कर्मचारियों के पास क्या विकल्प हैं?

उत्तर: ये कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं। राज्य सरकार से पुनः राजनीतिक या प्रशासनिक स्तर पर गुहार लगा सकते हैं। नए संविदा विज्ञापन के आधार पर पुनः आवेदन कर सकते हैं, यदि पात्रता हो।