ओडिशा की लाल चींटी की चटनी को मिला GI टैग, छत्तीसगढ़ के बस्तर में सबसे ज्यादा उपयोगी, जीआई टैग पर उठ रहे सवाल

Odisha's red ant chutney gets GI tag: ओडिशा की लाल चींटी की चटनी बताकर जीआई टैग देना कई सवालों को जन्म दे रहा है। इसी तरह की लाल चींटी की चटनी अन्य पूर्वी राज्यों जैसे झारखंड और छत्तीसगढ़ में  बहुतायत में पाई जा सकती है।

ओडिशा की लाल चींटी की चटनी को मिला GI टैग, छत्तीसगढ़ के बस्तर में सबसे ज्यादा उपयोगी, जीआई टैग पर उठ रहे सवाल
Modified Date: January 12, 2024 / 07:21 pm IST
Published Date: January 12, 2024 7:18 pm IST

Odisha’s red ant chutney gets GI tag: रायपुर। दुनिया भर के समुदायों में सदियों से भोजन स्रोत के रूप में कीड़ों का सेवन किया जाता रहा है। ओडिशा के मयूरभंज जिले में, लाल बुनकर चींटियों का उपयोग चटनी या पानी जैसा अर्ध-ठोस पेस्ट बनाने के लिए किया जाता है जिसे “काई चटनी” कहा जाता है। यह चटनी अपने औषधीय और पौष्टिक गुणों के लिए क्षेत्र में प्रसिद्ध है। 2 जनवरी, 2024 को इस विशिष्ट स्वादिष्ट चटनी को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग से सम्मानित किया गया।

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के प्राय: जिलों में आदिवासी लोग न​ सिर्फ इनकी चटनी खाते हैं बल्कि इन चींटिंयों की चटनी को बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं। यह स्वाद में बेहतरीन होती है। लेकिन इसे सिर्फ ओडिशा की लाल चींटी की चटनी बताकर जीआई टैग देना कई सवालों को जन्म दे रहा है। इसी तरह की लाल चींटी की चटनी अन्य पूर्वी राज्यों जैसे झारखंड और छत्तीसगढ़ में  बहुतायत में पाई जा सकती है।

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पोषक ​तत्वों से भरपूर होती है चटनी

गौरतलब है कि लाल बुनकर चींटियाँ, जिन्हें वैज्ञानिक रूप से ओकोफिला स्मार्गडीना के नाम से जाना जाता है, अपने बेहद दर्दनाक डंक के लिए उल्लेखनीय हैं, जो त्वचा पर फफोले पैदा करने में सक्षम हैं। ये चींटियाँ आमतौर पर मयूरभंज के जंगलों में पाई जाती हैं, जिनमें सिमिलिपाल के जंगल भी शामिल हैं, जो एशिया का दूसरा सबसे बड़ा जीवमंडल बनाते हैं।

जिले के सैकड़ों आदिवासी परिवार इन कीड़ों और चटनियों को इकट्ठा करके और बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं। चींटियों और उनके अंडों को उनके घोंसलों से इकट्ठा किया जाता है और उपयोग करने से पहले साफ किया जाता है। चटनी नमक, अदरक, लहसुन और मिर्च के मिश्रण को पीसकर बनाई जाती है।

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अपनी पाक अपील के अलावा, लाल चींटी की चटनी संभावित स्वास्थ्य लाभों के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि चटनी प्रोटीन, कैल्शियम, जिंक, विटामिन बी-12, आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम आदि जैसे पोषक तत्वों का अच्छा स्रोत है। इस अनोखी चटनी को स्वस्थ मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के विकास में अपनी भूमिका के लिए भी जाना जाता है। संभावित रूप से अवसाद, थकान और स्मृति हानि जैसी स्थितियों के प्रबंधन में सहायक मानी जाती है।

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लेखक के बारे में

डॉ.अनिल शुक्ला, 2019 से CG-MP के प्रतिष्ठित न्यूज चैनल IBC24 के डिजिटल ​डिपार्टमेंट में Senior Associate Producer हैं। 2024 में महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय से Journalism and Mass Communication विषय में Ph.D अवॉर्ड हो चुके हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से M.Phil और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर से M.sc (EM) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। जहां प्रावीण्य सूची में प्रथम आने के लिए तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के हाथों गोल्ड मेडल प्राप्त किया। इन्होंने गुरूघासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर से हिंदी साहित्य में एम.ए किया। इनके अलावा PGDJMC और PGDRD एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी किया। डॉ.अनिल शुक्ला ने मीडिया एवं जनसंचार से संबंधित दर्जन भर से अधिक कार्यशाला, सेमीनार, मीडिया संगो​ष्ठी में सहभागिता की। इनके तमाम प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में लेख और शोध पत्र प्रकाशित हैं। डॉ.अनिल शुक्ला को रिपोर्टर, एंकर और कंटेट राइटर के बतौर मीडिया के क्षेत्र में काम करने का 15 वर्ष से अधिक का अनुभव है। इस पर मेल आईडी पर संपर्क करें anilshuklamedia@gmail.com