Naxalite Hidma Story: लाल गलियारे का कुख्यात नक्सली हिड़मा… इस जगह से शुरू हुआ था खतरनाक सफर, क्रूर आरंभ और डर का अंत, जानिए पूरी कहानी
Naxalite Hidma Story: लाल गलियारे का कुख्यात नक्सली हिड़मा... इस जगह से शुरू हुआ था खतरनाक सफर, क्रूर आरंभ और डर का अंत, जानिए पूरी कहानी
Naxalite Hidma Story/Image Source: IBC24
- बालाघाट में शुरू हुआ था खतरनाक सफर
- हिड़मा ने नक्सल संगठन में जमाया कब्ज़ा
- लाल गलियारे में खत्म हुआ
बालाघाट: Naxalite Hidma Story:आंध्रप्रदेश के घने जंगल में हुई मुठभेड़ में लाल गलियारे का दुर्दांत नक्सली मारवी हिड़मा का 18 नवंबर 2025 को अंत कर दिया गया। हिड़मा, उसकी पत्नी राजे और अन्य साथियों के साथ ढेर हो जाना नक्सल आंदोलन के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है। एक हफ्ता बीत चुका है, लेकिन हिड़मा का नाम अब भी नक्सली नेटवर्क में चर्चा का केंद्र है, जो बताता है कि उसकी पकड़ कितनी गहरी थी।
बालाघाट में हिड़मा का उदय (Balaghat MP news)
सरकार ने मार्च 2026 तक नक्सलवाद खत्म करने का लक्ष्य तय किया है और हिड़मा का खात्मा इस लड़ाई को निर्णायक मोड़ पर ले आया है। आज हम बताएंगे कि कैसे बालाघाट ने हिड़मा को पहली बार खड़ा किया और यही कनेक्शन उसे नक्सल संगठन में तेजी से ऊपर ले गया। मारवी हिड़मा भले ही अपने आखिरी दिनों में संगठन का टॉप कमांडर माना जाता था लेकिन शुरुआत में वह बड़े पद पर नहीं था। साल 2002 से 2004 के बीच हिड़मा एमएमसी जोन के बालाघाट में सक्रिय रहा और यहाँ उसे विलास के नाम से दलम में जाना जाता था।
गांव सर्वे और नक्सली भर्ती (Marvi Hidma encounter)
Naxalite Hidma Story: बालाघाट में उसकी मुख्य जिम्मेदारी नक्सली दलम में भर्ती और सर्वे कार्य की थी कौन सा गांव नक्सलियों को समर्थन दे सकता है, कौन संगठन में शामिल हो सकता है, इलाके में किसकी क्या भूमिका है, इन सभी की गुप्त जानकारी जुटाना उसी का काम था। यहाँ किसी बड़ी वारदात में शामिल न होने के बावजूद उसकी रणनीतिक भूमिका इतनी महत्वपूर्ण थी कि मध्यप्रदेश पुलिस ने उस समय उस पर 15 लाख रुपए का इनाम घोषित किया था। हिड़मा उस दौर में अकेला नहीं था। उसी समय दो और बड़े माओवादी सोनू दादा और रुपेश, जो हाल ही में जगदलपुर में आत्मसमर्पण कर चुके हैं वे भी बालाघाट में सक्रिय रहे।
हिड़मा का अंत और संगठन की कमजोर स्थिति (Hidma killed News)
Naxalite Hidma Story: यह दोनों 2012 से 2015 में संगठन के विस्तार यानी दलम बढ़ाने की रणनीति संभाल रहे थे। तीनों की मौजूदगी ने उस समय बालाघाट को नक्सली गतिविधियों का महत्वपूर्ण ठिकाना बना दिया था। लेकिन अब हिड़मा के खात्मे और बड़े नेताओं के सरेंडर के बाद नक्सल नेटवर्क की कमर लगभग टूट चुकी है। हिड़मा की मौत सिर्फ एक सफल ऑपरेशन नहीं, बल्कि यह संकेत है कि नक्सलवाद अब अपने अंतिम दौर में है। सरकार का मार्च 2026 तक नक्सलवाद खत्म करने का लक्ष्य अब पहले से ज्यादा करीब है।

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