बेटियों का दर्द..सियासत बेदर्द! क्या महिला अत्याचार के मामले में राजनीतिक इच्छाशक्ति कमजोर ?

बेटियों का दर्द..सियासत बेदर्द! क्या महिला अत्याचार के मामले में राजनीतिक इच्छाशक्ति कमजोर ? The pain of daughters..Politics is merciless!

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  • Publish Date - July 15, 2023 / 11:50 PM IST,
    Updated On - July 15, 2023 / 11:50 PM IST

भोपाल । दिल्ली का निर्भया कांड आपको जरूर याद होगा । 11 साल का वक्त गुजर चुका है लेकिन क्या आपको एक पल के लिए भी हालात बदलने का जरा भी अहसास हुआ है । महिला हिंसा से जुड़े हर मामले के बाद हर बार बयान भी बहुत आते हैं । ट्वीट भी खूब होते हैं । कभी कभी कैंडल मार्च भी निकलते हैं । कुछ दिनों तक ये वारदातें सुर्खियां बनती हैं और धीरे से गायब हो जाती हैं किसी अगली घटना के इंतजार में लेकिन न सख्त कार्रवाई होती है न तुरंत एक्शन नतीजा ये है कि महिलाओं की हत्या, छेड़छाड़, रेप के मामले बार-बार सामने आते है । कई बार इसकी वजह राजनीतिक संरक्षण या पुलिस की लापरवाही भी रहती है । आज फेस टू फेस में बात महिलाओं की । उनके साथ जो घट रहा है उसकी और सवाल उन राजनीतिक दलों पर । जिन पर जिम्मेदारी है इसे रोकने की क्योंकि सवाल आपका है।

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ये वारदात मध्यप्रदेश के अलग-अलग शहरों की हैं और इनके पीड़ित भी अलग-अलग हैं लेकिन एक चीज जो इनमें समान है, वो है महिलाओं पर अत्याचार जिन परिवारों ने दर्द को सहा है वो आज तक सदमे से बाहर नहीं आ पाए । लेकिन वोट की राजनीति के सहारे सत्ता की सीढ़ी चढ़ने वालों को शायद इससे मतलब नहीं । ठीक सात दिन बाद ग्वालियर में ”लड़की हूं लड़ सकती हूं” का नारा देने वाली कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का कार्यक्रम है । पार्टी इसकी तैयारी में जुटी है और उसके नेता दावा कर रहे हैं कि ग्वालियर में भी प्रियंका गांधी प्रदेश की महिलाओं को आवाज देंगी। प्रियंका यूपी में अपने नारे को भले ही वोट में तब्दील न कर पाई हों लेकिन MP में सत्ता संभाल रही बीजेपी को शायद इस बात का अंदेशा है कि यहां प्रियंका का लड़की हूं लड़ सकती हूं वाला नारा कहीं चल न जाए और इसलिए ही उन्हें बार बार राजस्थान की याद दिलाई जा रही है । जहां के महिला हिंसा के आंकड़े बताकर न सिर्फ प्रियंका गांधी के महिला सशक्तिकरण के कार्ड को कमजोर करने की कोशिश है । बल्कि BJP की कवायद ये भी है कि प्रियंका के आने के पहले ही कांग्रेस की महिलाओं को लेकर चलने वाली मुहिम की हवा निकाल दी जाए।

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सियासी जुबानों का समस्या के समाधान पर कम और सत्ता के संग्राम पर ज्यादा फोकस है । महिला अत्याचार की एक और वारदात जो आपको हैरान भी कर देगी और दुखी भी हरदा के सिविल लाइन्स में सरेराह एक स्कूली छात्रा को एक युवक ने 10 मिनट तक अपनी बाहों में जकड़े रखा । 8वीं में पढ़ने वाली ये मासूम खुद को छुड़ाने की कोशिश भी करती रही सहेलियों ने मनचले को छाते से भी मारा । आपका शायद गुस्सा भी बढ़ जाए । ये सुनकर कि इस बच्ची से 10 महीने पहले भी छेड़छाड़ की गई थी । जिसकी शिकायत स्कूल प्राचार्य ने थाने में की थी । तो क्या ये मान लें कि पुलिस शिकायतों के बाद बड़ी वारदात होने का इंतजार करती रहती है । महिला अपराध को खत्म करने के दावे केवल दिखावे हैं और उनकी शर्म मर चुकी है।