सियासत में बाबाओं की एंट्री…बाबाओं के भरोसे राजनेता.. क्या बाबाओं को साधने से मिलेगी सत्ता?

सियासत में बाबाओं की एंट्री...बाबाओं के भरोसे राजनेता.. ! Politicians relying on babas.. Will babas get power by cultivating them?

Modified Date: November 29, 2022 / 08:54 pm IST
Published Date: August 26, 2021 11:16 pm IST

भोपाल: मध्यप्रदेश की सियासत में एक बार फिर बाबाओं की एंट्री होती दिखाई दे रही है। प्रदेश के सियासी दल उप चुनाव और विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं। ऐसे में एक बार फिर राजनितिक दलों का जोर बाबाओं पर है। चर्चा है कि इस बार कांग्रेस मिर्ची बाबा पर दाव लगा सकती है, तो वहीं बीजेपी ने भी कांग्रेस की नब्ज भांपते हुए अभी से बाबाओ को मंत्री का दर्जा देना शुरू कर दिया है।

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मंत्रोच्चार की ध्वनी और ईश्वर की आराधना सियासत की ये हलचल इन दिनों काफी चर्चा में है। मध्यप्रदेश की राजनीति में अब ऐसी बातें आम हो चली है और बाबा राजनेताओं के खास होते जा रहे हैं। पहले कंप्यूटर बाबा और अब मिर्ची बाबा, कंप्यूटर बाबा को शिवराज सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा मिला था। लेकिन बीजेपी ज्यादा रास नहीं आई और कांग्रेस का दामन थामा। कांग्रेस ने भी कंप्यूटर बाबा को राज्यमंत्री बनाया। मगर कांग्रेस की सत्ता जाने के बाद कम्प्यूटर बाबा को जेल की हवा भी खानी पड़ गई। तब से कंप्यूटर बाबा फिर कभी सक्रिय दिखाई नहीं दिए। अब कांग्रेस में उनकी जगह ‘मिर्ची बाबा’ ले रहे हैं। इन्हें भी कमलनाथ सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा मिला था।

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2019 के लोकसभा चुनाव में मिर्ची बाबा ने भोपाल से चुनाव लड़ रहे दिग्विजय सिंह की जीत का दावा किया था। ये भी कहा था कि उनकी जीत नहीं होने पर वे जल समाधि ले लेंगे। हालांकि बाद में वे अपनी बात से पलट गए थे।

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कमलनाथ ने मुख्यमंत्री रहते हुए महाकाल मंदिर, राम वनगमन पथ और गौशालाओं के लिए कई योजनाओं पर काम किया था। बीजेपी को मालूम है उप चुनाव में कमलनाथ का सॉफ्ट हिंदुत्व उस पर भारी पड़ सकता है। लिहाजा बीजेपी भी बाबाओं को तरजीह देने लगी है। बीजेपी ने हाल ही में गौ संवर्धन बोर्ड में स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरी की नियुक्ति कर उन्हें मंत्री का दर्जा दिया है। हालांकि बीजेपी कांग्रेस के मिर्ची बाबा प्रेम पर जरूर तंज कस रही है।

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मध्यप्रदेश में उपचुनाव के बादल घुमड़ रहे हैं। यही वजह है कि दोनों ही सियासी दल अपनी शक्ति और बाबाओं की भक्ति का पूरा इस्तेमाल करना चाहते हैं। क्योंकि राजनीतिक दल इन उपचुनाव को सेमीफाइनल के तौर पर देख रहे हैं। माना जा रहा है कि नतीजे 2023 की तस्वीर साफ कर देंगे।

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