सियासी है आदिवासी प्रेम ! आदिवासियों का सच्चा हितैषी कौन? आदिवासी जननायकों के बलिदान दिवस पर तेज हुई सियासत

Politics intensified on the sacrifice day of tribal people

सियासी है आदिवासी प्रेम ! आदिवासियों का सच्चा हितैषी कौन? आदिवासी जननायकों के बलिदान दिवस पर तेज हुई सियासत
Modified Date: November 29, 2022 / 07:45 pm IST
Published Date: September 18, 2022 11:44 pm IST

 

(रिपोर्टः सुधीर दंडोतिया) भोपालः आज गोंडवाना साम्राज्य के राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह का बलिदान दिवस है। जिनको 1857 की क्रांति में अंग्रेजों ने तोप से बांधकर उड़ा दिया था। कांग्रेस और बीजेपी ने दोनों महान विभूतियों को अपने-अपने तरीके से याद किया। बड़े-बड़े आयोजन किए। यहां तक तो सब ठीक था। लेकिन जब दोनों तरफ से बयानों के तीर चलने लगे। कांग्रेस को लगता है कि इस कार्यक्रम के ज़रिए बीजेपी आदिवासी समाज को बांटना चाहती है और बीजेपी को लगता है कि कांग्रेस बलिदान दिवस के बहाने सिर्फ राजनीति कर रही है। इसलिए हमें आज आपके सामने ये लिखना पड़ा कि सियासी है ये आदिवासी प्रेम…सच्चा हितैषी कौन?

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मध्यप्रदेश में एक बार फिर आदिवासियों का सच्चा हितैषी बनने की होड़ लगी है। बीजेपी कांग्रेस दोनों ही दलों ने 1857 की क्रांति के जननायक और स्वतंत्रता संग्राम के आदिवासी नायक राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर बड़े आयोजन किए। बलिदान दिवस के मौके पर बीजेपी सरकार ने जबलपुर में इन क्रांतिकारियों की कर्मस्थली पर मेगा शो किया। इस आयोजन को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी की मंशा पर सवाल उठाए हैं। जिसको लेकर मध्यप्रदेश में सियासत गरमा गई है।

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पिछले साल इसी तरह के आयोजन में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शिरकत की थी। इस साल बीजेपी और बड़ा आयोजन कर रही है। इधर ​​​​​​प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कांग्रेस दफ्तर में शंकर शाह, रघुनाथ शाह के शहीदी दिवस पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया, कांग्रेस द्वारा आयोजित सभा को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं।

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1857 की क्रांति में सबसे पहले किसी राजघराने से किसी ने बलिदान दिया तो वो थे पिता-पुत्र राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह। इन्होंने मध्य भारत से आज़ादी की ऐसी चिंगारी जगाई। जो शोला बन गई। यही वजह है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों का उनके बलिदान दिवस पर आयोजन को लेकर खास फोकस है, महाकौशल मध्य प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा अंचल माना जाता है, जहां विधानसभा की 38 सीटें आती हैं, इनमें ज्यादातर आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, ऐसे में आदिवासी वोट बैंक पर दोनों ही पार्टियों की नजर है।

 


लेखक के बारे में

सवाल आपका है.. पत्रकारिता के माध्यम से जनसरोकारों और आप से जुड़े मुद्दों को सीधे सरकार के संज्ञान में लाना मेरा ध्येय है। विभिन्न मीडिया संस्थानों में 10 साल का अनुभव मुझे इस काम के लिए और प्रेरित करता है। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रानिक मीडिया और भाषा विज्ञान में ली हुई स्नातकोत्तर की दोनों डिग्रियां अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने के लिए गति देती है।