Chhindwara News: गोटमार मेले में अब तक 270 लोग घायल, मौके पर 600 पुलिस जवान तैनात, जानिए आखिर क्यों है इस मेले में पत्थर मारने की परंपरा

Chhindwara News: गोटमार मेले में अब तक 270 लोग, मौके पर 600 पुलिस जवान तैनात, जानिए आखिर क्यों है इस मेले में पत्थर मारने की परंपरा

  •  
  • Publish Date - August 23, 2025 / 04:11 PM IST,
    Updated On - August 23, 2025 / 04:11 PM IST

Chhindwara News | Photo Credit: IBC24

HIGHLIGHTS
  • इस साल 270 लोग घायल, दो गंभीर हालत में
  • 1955 से अब तक 14 मौतें
  • परंपरा दो मान्यताओं से जुड़ी: एक पिंडारी समाज के युद्ध से, और दूसरी अधूरी प्रेम कहानी से

अजय द्विवेदी/छिंदवाड़ा: Chhindwara News छिंदवाड़ा पांढुर्णा में परंपरा के नाम पर खूनी खेल शनिवार को एक बार फिर खेला जा रहा है। गोटमार मेला सुबह करीब 10 बजे शुरू हुआ। जाम नदी पर पांढुर्णा और सावरगांव की ओर से एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार हो रही है। अब तक 270 लोग घायल हुए हैं जिसमें दो गंभीर रूप से घायल लोगों को नागपुर रेफर किया गया। घायलों के लिए 6 अस्थायी स्वास्थ्य केंद्र बनाए गए हैं। मौके पर 600 पुलिस जवान, 45 डॉक्टर और 200 मेडिकल स्टाफ तैनात है। कलेक्टर अजय देव शर्मा ने धारा 144 भी लागू कर दी है।

Read More: Suravaram Sudhakar Reddy: इस दिग्गज नेता का 83 साल की उम्र में निधन.. रह चुके है दो बार सांसद और पार्टी के महासचिव, दी जा रही श्रद्धांजलि

Chhindwara News अब तक 14 लोगों की गई जान

पत्थरबाजी में 1955 से 2023 तक 14 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें एक ही परिवार के तीन लोगों की जान गई है। इसके अलावा, कइयों ने हाथ-पैर, आंख खो दिए। लोग इसे हर साल दोगुने उत्साह से खेलते हैं, लेकिन अपनों को खोने वाले परिवार इसे शोक दिन के रूप में मनाते हैं।

दो कलेक्टरों ने कोशिश की, नहीं बदली परंपरा

हर साल प्रशासन और पुलिस एक सप्ताह पहले से गोटमार की तैयारी में जुट जाते हैं। कोशिश होती है कि गोटमार को सांकेतिक रूप से मनाया जाए। साल 2001 में तत्कालीन कलेक्टर संजय बदोंपाध्याय तथा 2010 में तत्कालीन कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव ने पत्थर हटवाकर प्लास्टिक की गेंद भी डलवा दी थी, लेकिन इसके बाद भी खेल हुआ।

मेला बंद करने पर चली थी गोलियां

तीन सितंबर 1978 और 27 अगस्त 1987 को जिला प्रशासन ने इस मेले को बंद करने का प्रयास किया। मेले में पत्थरबाजी कर रहे लोगों को हटाने के लिए पहले लाठी चार्ज किया गया। आंसू गैस के गोले भी छोड़े। इन प्रयासों की वजह से ग्रामीण भड़क गए और पुलिस पर हमला कर दिया। पुलिस को गोली भी चलानी पड़ी। इस दौरान ब्राम्हणी वार्ड के देवराव सरकड़े और जाटवा वार्ड के कोठीराम संभारे की आंख में गोली लगी, जिससे उनकी मौत हो गई। इसके बाद कर्फ्यू लगाना पड़ा था।

परंपरा के पीछे ये मान्यता

पहली परंपरा पिंडारी (आदिवासी) समाज से जुड़ी है। इसके अनुसार हजारों साल पहले जाम नदी किनारे पिंडारी (आदिवासी) समाज का प्राचीन किला था। जहां पिंडारी समाज और उनकी सेना रहती थी। सेनापति दलपत शाह थे, लेकिन महाराष्ट्र के भोंसले राजा की सेना ने पिंडारी समाज के किले पर हमला बोल दिया। इस दौरान पिंडारी समाज के अस्त्र-शस्त्र कम पड़ गए। पिंडारियों की सेना ने किले से पत्थरों से हमला करके नागपुर के भोंसले राजा को परास्त कर दिया। तब से यहां पत्थर मारने की परंपरा कायम है। जनता में सेनापति दलपत शाह का नाम बदलकर राजा जाटबा नरेश कर दिया। आज भी जाटबा राजा की समाधि मौजूद है। जिस इलाके में समाधि, उसका नाम पांढुर्णा नगर पालिका में जाटबा वार्ड के नाम से दर्ज है। इस वार्ड में 600 लोगों की आबादी रहती है।

दूसरी परंपरा-अधूरी प्रेम कहानी

यहां के लोगों का दावा है कि पांढुर्णा का एक युवक साबर गांव की लड़की से प्रेम करता था। वह लड़की को भगाकर पांढुर्णा लेकर आने लगा, लेकिन रास्ते में जाम नदी में बाढ़ थी। दोनों नदी पार नहीं कर पाए। इसी दौरान लड़की पक्ष के लोगों को खबर लगी, तो उन्होंने पथराव शुरू कर दिया। इसके विरोध में पांढुर्णा के पक्ष ने भी पथराव कर दिया। इसी पत्थरबाजी में प्रेमी-प्रेमिका की मौत जाम नदी के बीच ही हो गई। उनकी मौत के बाद लोगों को शर्मिंदगी हुई। दोनों के शवों को उठाकर किले पर मां चंडिका के दरबार में रखा गया। पूजा-अर्चना के बाद अंतिम संस्कार कर दिया गया। इसी घटना की याद में मां चंडिका की पूजा कर गोटमार मेले का आयोजन किया जाता है।

ऐसे होती है गोटमार मेले की शुरुआत

जाम नदी में चंडी माता की पूजा के बाद साबरगांव के लोग पलाश के कटे पेड़ को नदी के बीच लगाते हैं। इसके बाद दोनों गांव पांढुर्णा और सावरगांव के लोगों के बीच पत्थरबाजी होती है। सावरगांव के लोग पलाश का पेड़ और झंडा नहीं निकालने देते, वे इसे लड़की मानकर रक्षा करते हैं। इस झंडे को जंगल से लाने की परंपरा पीढ़ियों से सावरगांव निवासी सुरेश कावले का परिवार करता है। वहीं, पांढुर्णा के लोग पत्थरबाजी कर पलाश का पेड़ कब्जे में लेने का प्रयास करते हैं। अंत में झंडे को तोड़ लेने के बाद दोनों पक्ष मिलकर चंडी मां की पूजा कर इस गोटमार मेले को खत्म करते हैं।

गोटमार मेला कब और कहां आयोजित होता है?

यह मेला हर साल जाम नदी पर पांढुर्णा और सावरगांव (जिला छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश) के बीच आयोजित होता है।

गोटमार मेले की शुरुआत कैसे होती है?

जाम नदी में मां चंडी की पूजा के बाद सावरगांव वाले नदी के बीच पलाश का पेड़ लगाते हैं। इसके बाद दोनों गांवों के लोग पत्थरबाजी करते हैं।

गोटमार मेले में कितने लोग घायल या मृत हुए हैं?

1955 से अब तक 14 लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग घायल हुए हैं। इस बार 270 लोग घायल हुए।

ताजा खबर