भोपाल : MP Assembly Election 2023 : मध्यप्रदेश के सियासी इतिहास में आदिवासी वोटर्स ही किंग मेकर बनते आए हैं। प्रदेश की आदिवासी बहुल विधानसभा सीटों पर जिस भी पार्टी को बढ़त मिली सूबे की सत्ता उसे ही हासिल हुई। यही वजह है कि इस बार आदिवासी वोटर्स को साधने की सियासत ख़ासी गरमाई थी और 17 नवंबर को आदिवासी आरक्षित 47 विधानसभा सीटों पर बंपर वोटिंग भी दर्ज की गई। अब कांग्रेस और भाजपा आदिवासी वर्ग के बढ़े हुए पोलिंग परसेंटेज को अपने हक में बता रहे हैं।
MP Assembly Election 2023 : मध्यप्रदेश के चुनावी रण में आदिवासी वोटर्स को साधने की सियासत जितनी इस बार देखी गई, उतनी शायद ही कभी दिखी हो। कांग्रेस की तरफ से जहां मल्लिकार्जुन खरगे, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी की सभाओं के लिए आदिवासी जिलों को चुना गया। वहीं भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने मोर्चा संभालकर खुद को आदिवासियों का बड़ा हमदर्द बताया। वोटिंग से पहले कांग्रेस ने आदिवासी बहुल जिलों से वनवासी अधिकार यात्राएं निकालीं और भाजपा ने पेसा एक्ट लागू करने और जनजातीय नायकों के सम्मान करने का खूब प्रचार किया। सियासत के केन्द्र में रहे आदिवासी वर्ग ने भी इस बार खूब मतदान किया। इस बार हर आदिवासी बहुल सीट पर 2018 के मुकाबले 2 से 3 फीसदी ज्यादा मतदान हुआ और अधिकांश सीटों पर पोलिंग परसेंटेज 80 फीसदी के पार चला गया। अब कांग्रेस और भाजपा आदिवासियों के इस बढ़े हुए मतदान प्रतिशत को अपने हक में बता रहे हैं।
इधर, चुनाव विश्लेषक मानते हैं कि आदिवासी वर्ग में मतदान प्रतिशत का बढ़ना आदिवासी वोटर्स को साधने की सियासत का इफेक्ट तो माना जा सकता है, लेकिन इस बार बढ़ा हुआ पोलिंग परसेंटेज किसी एक पार्टी के हक में है ये कहना ठीक नहीं है।
MP Assembly Election 2023 : दरअसल साल 2013 में आदिवासी सीटों पर पोलिंग परसेंटेज 6 फीसदी बढ़ा था, तब भाजपा की सरकार बनी थी। तो 2018 में 5 फीसदी मतदान प्रतिशत बढ़ा, तब कांग्रेस की वापसी हुई थी। ऐसे में 2023 में बढ़ चढ़कर मतदान करने का आदिवासियों का ये उत्साह किसे मुख्यमंत्री बनाएगा ये देखना दिलचस्प होगा।
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