राजगढ़। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है मध्यप्रदेश के नरसिंहगढ़ विधानसभा सीट की। नरसिंहगढ़, जिसे मालवा का कश्मीर कहा जाता है। फिलहाल सीट पर कांग्रेस का कब्जा है और गिरीश भंडारी यहां से विधायक हैं। आने वाले चुनाव में नरसिंहगढ़ में एक नहीं बल्कि कई मुद्दे गूंजने वाले हैं। यहां बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। वहीं किसान, शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के मुद्दे पर भी विधायक को घेरने की तैयारी है। लेकिन मुद्दों के साथ–साथ इस सीट के जाति समीकरण भी नतीजों को खास प्रभावित करते हैं और आने वाले चुनाव में यहां से उसकी संभावना ही ज्यादा होगी जो जाति समीकरण को साध पाएगा।
राजगढ़ जिले की नरसिंहगढ़ विधानसभा ही एक मात्र ऐसी सीट है, जिस पर कांग्रेस काबिज है। बाकी सभी सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। नरसिंहगढ़ में भले कांग्रेस के विधायक हैं। लेकिन ये सीट सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के दबदबे वाला इलाका माना जाता है और नरसिंहगढ़ में व्हाइट टाइगर के नाम से चर्चित मोहन शर्मा यहां 2003 और 2008 में विधायक रह चुके हैं। नरसिंहगढ़ की जनता ने 2013 में कांग्रेस प्रत्याशी गिरीश भंडारी को अपना नेता चुना और उनके कार्यकाल का ये आखिरी साल है। लेकिन उपलब्धियों की बात करें तो धरातल पर कुछ खास नजर नहीं आता। इसे लेकर लोगों में नाराजगी है और वे इस बार वोट देने से पहले अपने नेताजी के पिछले पांच साल के कार्यकाल को जरूर ध्यान में रखेंगे।
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नरसिंहगढ़ में चुनावी मुद्दो की बात करें तो यहां किसानों की समस्या चुनाव में गूंजना तय है। क्षेत्र में स्टाप डैम बनाने के बावजूद खेती के लिए किसानों को पर्याप्त पानी नहीं मिलता। वहीं बेरोजगारी का मुद्दा भी यहां बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है। कहने को तो पीलूखेड़ी इंडस्ट्रियल एरिया तो है। लेकिन वहां भी स्थानीय लोगों को मौका नहीं मिलता। इसके अलावा अब तक नरसिंहगढ़ में रेल लाइन नहीं पहुंची है, इसे लेकर भी लोगों में गुस्सा है। हालांकि नरसिंहगढ़ में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो वर्तमान कांग्रेस विधायक के काम की तारीफ भी कर रहे हैं। उनका मानना है कि कि कांग्रेसी विधायक होने के चलते बीजेपी सरकार गिरीश भंडारी के साथ भेदभाव करती है। कुल मिलाकर नरसिंहगढ़ की आम जनता का जीवन कष्ट में है और ये कष्ट आने वाले चुनाव में नेताओं को महाकष्ट में डाल सकता है और नेताओं को भी इसका अंदाजा हो चुका है। लिहाजा इन दिनों सियासत के गलियारों में कष्ट निवारण के एक से एक उपाए सुझाए जा रहे हैं
नरसिंहगढ़ के सियासी समीकरण की बात करें तो यहां करीब दो लाख मतदाता हैं। इसमें सबसे ज्यादा अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यकों की आबादी है। दोनों ही जातियों के करीब 25-25 हजार मतदाता हैं, वहीं मीणा, चौरसिया और खाती समाज भी इलाके में दखल रखता है। नरसिंहगढ़ में मामूली विवाद भी बड़ी सांप्रदायिक हिंसा का रंग ले लेता है। मिशन 2018 के लिए यहां कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों में संभावित उम्मीदवारों की लंबी फेहरिस्त नजर आती है।
इतिहास किसी न किसी रूप में वर्तमान में भी अपना वजूद कायम रखता है। लेकिन नरसिंहगढ़ की सियासत में भी इस सच को महसूस किया जा सकता है। 70 साल पहले नरसिंगढ़ रियासत भले ही खत्म हो गई हो। यहां का महल भले ही जर्जर हो गया हो लेकिन इसका असर यहां की सियासत में अब भी कायम है नरसिंहगढ़ राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाले राज्यवर्धन सिंह यहां राजनीतिक तौर पर सक्रिय हैं। कभी कांग्रेस पार्टी से विधायक रहे राज्यवर्धन सिंह ने दिग्विजय सिंह से मनमुटाव के कारण कांग्रेस छोड़ दी थी। अब वे यहां बीजेपी से टिकट मांग रहे हैं। उनके मुताबिक जनता से उनका 400 साल पुराना रिश्ता है और उनके विधायक रहते क्षेत्र से भ्रष्टाचार खत्म हो गया था। किसानों के लिए भी ठोस कदम उठाए थे। उनका कहना है कि अगर बीजेपी मौका देती है तो क्षेत्र की जनता को ध्यान में रखकर विकास कार्य करूंगा।
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वैसे बीजेपी के लिए नरसिंहगढ़ में टिकट फाइनल करना इतना आसान नहीं रहने वाला। इस बार राजगढ़ सासंद रोड़मल नागर भी बीजेपी की तरफ से दावेदार के तौर पर देखे जा रहे हैं। राजगढ़ से सांसद रोड़मल नागर पूरे क्षेत्र की वजाय सबसे ज्यादा नरसिंहगढ़ में ही सक्रिय हैं। इसके अलावा 2003 और 2008 में लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले मोहन शर्मा भी टिकट के प्रबल दावेदार हैं। हालांकि उनके कार्यकाल में नरसिंहगढ़ में कई सांप्रदायिक दंगे भी हुए। बावजूद इसेक मोहन शर्मा का दावा मजबूत है। पूर्व विधायक के मुताबिक उनकी गलतियों की वजह से वो चुनाव हारे थे। लेकिन इस बार अगर पार्टी उन्हें मौका देती है तो अपनी गलतियों को सुधारकर नरसिंहगढ़ के विकास के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। इन सबके बीच बीजेपी में गुटबाजी की बात भी निकलकर सामने आ रही है। हालांकि बीजेपी नेता नरसिंहगढ़ में किसी भी गुटबाजी से इंकार करते हैं। उनके मुताबिक इस बार यहां चुनाव बीजेपी ही जीतेगी।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो नरसिंहगढ़ में सीटिंग एमएलए होने के कारण गिरीश भंडारी का दावा सबसे मजबूत नजर आ रहा है। कांग्रेस विधायक पिछले चुनाव में 23 हजार के बड़े अंतर से चुनाव जीते थे। लिहाजा कांग्रेस की पहली पसंद और टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। गिरीश भंडारी के मुताबिक पिछले पांच साल में एक भी दंगा नहीं हुआ। साथ ही विकास के काफी काम हुए। उनके दावा है कि बीजेपी किसी को भी टिकट दे लेकिन कांग्रेस रिकार्ड मतों से जीतेगी। कांग्रेस में मौजूदा विधायक के अलावा नगर पालिका अध्यक्ष रही मंजूलता शिवहरे भी टिकट के लिए अपनी दावेदारी कर रही है। मंजूलता शिवहरे के मुताबिक दिग्विजय सिंह ने आश्वासन दिया है कि जिले से एक महिला को टिकट दिया जाएगा। ऐसे में अगर उन्हें मौका मिलता है तो महिला अपराध की रोकथाम के साथ साथ किसानों और ग्रामीणों के लिए पूरी शिद्दत से काम करेगीं।
कुल मिलाकर दोनों दलों में दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है और सब अपने–अपने गणित भी फिट कर रहे हैं लेकिन यहां बड़े नेताओं का आशीर्वाद भी काफी काम आ सकता है। हालांकि यहां टिकट तय करते समय राजनीतिक पार्टियां जाति समीकरण को जरूर ध्यान में रखेगी।
वेब डेस्क, IBC24