IBC24 Janjatiya Pragya
भोपाल: IBC24 Janjatiya Pragya मध्यप्रदेश सरकार के दो साल पूरे होने पर IBC24 आज एक जनजातीय प्रज्ञा करने कर रहा है। जिसकी शुरूआत दोपहर दो बजे से हो चुकी है, राजधानी भोपाल में आयोजित इस विशेष कार्यक्रम में राज्य सरकार की जनहितैषी योजनाओं और उपलब्धियों पर संवाद के साथ जनजातीय समाज के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर विमर्श किया जा रहा है। मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव समेत प्रदेश की कई बड़ी शख्सियत IBC24 के मंच पर भविष्य का रोड मैप बताएंगे।
इसी कड़ी में IBC24 के मंच पर मंत्री प्रहलाद पटेल ने कहा कि हमारे राज्य में 88 ट्राइबल ब्लॉक है। भारत सरकार में जब मोदी जी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने एक नया प्रयोग किया था आकांक्षी जिला और आकांक्षी ब्लॉक। यदि हम आकांक्षी ब्लॉक की सूची देखते हैं तो वह भी इन 88 में से निकल कर आती है। फिर हम पेशा ब्लॉक की बात करते हैं तो ये 88 के 88 पेशा ब्लॉक है। वो ट्राइबल ब्लॉक भी है। पेशा ब्लॉक भी है। आकांक्षी ब्लॉकों के बहुत सारी ब्लॉक उसकी भी श्रेणी में आते हैं। करना क्या चाहिए? तो एक रोड मैप होता है कि जहां जनजाति रहते हैं जिनको हम आदिवासी कहते हैं आप यह जो प्रज्ञा शब्द आपने रखा इसके लिए मैं आपको बधाई देता हूं। उसकी सहजता, उसकी जरूरतें वो लालच से परे हैं। और अगर मैं एक नर्मदा का परिक्रमा वासी होने के नाते कहूं तो नर्मदा के किनारे 16 जिले हैं। ऐसा कोई जिला नहीं है जो नर्मदा के किनारे जनजाति समाज ना रहता हो। तो उसकी प्रज्ञा के बारे में हम कैसे परिभाषित करें? यह मुझे लगता है ज्यादा महत्वपूर्ण है। तो मैं अपने आप से कहता हूं जब मैं नर्मदा की परिक्रमा में गया तो तीन कमजोरियां मनुष्य की होती है। वो है लालच, अहंकार और भय। आप जनजातियों में तीनों नहीं देखेंगे। यह प्रज्ञा की उनका सामर्थ्य है। यदि आप जाते हैं तो वह इस धर्म से कभी बर्ताव नहीं करते। उनकी जो जीवन शैली है यह जीवन शैली के यथार्थ से बाकी लोग बहुत दूर हैं। उनकी कला, संस्कृति, जीने का तरीका।
रहा सवाल सरकार का तो सरकार ने जो उसकी केंद्र की और राज्य की योजनाएं हैं वह तो दी ही हैं। लेकिन मैं उस प्रज्ञा का सम्मान अगर किसी ने किया तो देश के प्रधानमंत्री ने किया जब गांव में बैठा कोई हमारा जनजाती बंधु जो कला के क्षेत्र में या संस्कृति के क्षेत्र में अपनी दखल रखता था उसको जब पद्म अवार्ड से वह सम्मानित हुआ तो पहली बार शायद उसकी प्रज्ञा का सम्मान हुआ। देश की राष्ट्रपति कोई उसे जनजाति समाज से बने देश की आजादी के इतने लंबे कालखंड के बाद पहली बार हुआ। रहा सवाल और भी आगे सोचने का। तो जब केंद्र भारत सरकार ने देखा कि ट्राइबल्स की इतनी सारी जातियां हैं लेकिन उनमें भी कुछ अति पिछड़ी जातियां हैं। जैसे बैगा है, शहरिया है, भारिया है। जो कभी बड़ी संख्या में रहते ही नहीं है। माइग्रेशन करते हैं। उनके लिए एक जनमन प्रधानमंत्री जनमन योजना बनाई। उसमें सड़क भी है, उसमें आवास भी है। प्रधानमंत्री आवास को हम पूरे देश में सबको पैसा देते हैं। लेकिन उन जनजातियों के लिए हमने 2 लाख से शुरुआत की कि 2 लाख देंगे। उनकी आबादी अगर 100 है, 250 भी है तो भी वहां तक सड़क पहुंचेगी चाहे कितना ही खर्चा लगे।
मुझे लगता है कि अगर हम जनजाती क्षेत्रों का विकास करना चाहते हैं तो उनकी संस्कृति उनके तौर तरीकों को बचाकर उसको संरक्षित करते हुए हम उनके विकास के बारे में अगर प्राथमिकता देंगे तो ज्यादा बेहतर होगा और इसलिए मैं चाहे वो हमारा ट्राइबल मिनिस्ट्री हो चाहे रूरल डेवलपमेंट मिनिस्ट्री हो चाहे पंचायत का जो क्षेत्र हो मेरे आने के बाद मैं गर्व के साथ कहता हूं कि 88 ब्लॉक थे हमारे जो नए यंगस्टर्स आए थे सारे बैच को दोनों बैच को मैंने उन्हीं ब्लॉकों में पहुंचाया। नए बच्चे जाएंगे, बेहतर वह सीखेंगे भी बेहतर करेंगे और अगर कोई उनकी दुविधा है तो उसको दूर करेंगे। पेशा के बारे में सामान्यता आम लोगों को जानकारी नहीं है। पेशा हां तो पेशा का जो अधिकार है वो जनजातीय समाज को इसलिए दिया गया है कि उनकी सांस्कृतिक विरासत उनकी बची रहे। वो अपने फैसले खुद कर सके। बाहर से फैसले थोपे ना जाएं। इसलिए जो पंचायत का सेटअप है उसके भीतर अगर एक गांव है एक पंचायत में अगर पांच गांव हैं तो उन पांच गांव की अलग-अलग ग्राम सभाएं हैं। उनके अपने खाते हैं सरकार उस खाते में पैसे डालेगी। उनके प्रस्ताव को कोई नकार नहीं सकता। उनके फैसलों को कोई बदल नहीं सकता और उसका परिणाम यह आया है कि मध्य प्रदेश में जितने आपस के विवाद आते थे वो विवाद 90% घट गए।
कुछ ऐसे विवाद थे जो उन्हीं ग्राम सभाओं में बैठकर सुने। अदालत में जाने की जरूरत नहीं पड़ी और वह फैसले हो गए। उनके जितने भी और भी अधिकार हैं डेवलपमेंट के लिए सड़क बनेगी कि नहीं बनेगी? कहां से बनेगी? यह सारे के सारे अधिकार पेशा कानून के तहत उस जनजातीय हमारी ग्राम सभा को हैं। लेकिन सामान्यता में मुझे लगता है कि उसके लिए क्योंकि उनको अधिकार पता चले तो हमारा गांव के स्तर पर प्रेशर मोबिलाइजर है। जनपद के क्षेत्र पर प्रेशर मोबिलाइजर है और डिस्ट्रिक्ट के लेवल पर प्रेशर मोबिलाइजर है। तो डिस्ट्रिक्ट के लेवल पर 20 जिलों में जनजातीय लोग हैं। वहां पर हमारे पैसा मोबिलाइजर हैं। जो लोगों को अवेयर कर रहे हैं। उनके लिखापड़ी में सहयोग कर रहे हैं और यह कोशिश कर रहे हैं कि उसी गांव का कोई बेटा या बेटी उनका लिखापढ़ी का काम संभालने लगे ताकि उनकी ग्राम सभा की ताकत उनकी ही ताकत हो और उनकी बात एक शब्द में भी तब्दीली किए बगैर हम उनके अधिकारों को दे सकें। उसमें उनकी कला भी है, संस्कृति भी है, नृत्य भी है, अन्य जीवन की पद्धतियां वो सबको जीवन अगर वो कहते हैं कि ये हमारे देवता हैं और उनकी जो देवता की जो परंपरा है वो अपने बुजुर्गों को हम भले याद ना रखें कागज में लिखने के बाद भी लेकिन जनजातीय अपने बुजुर्ग का ध्यान रखता है और उसके वो देवता होते हैं और उस दिन वो जाकर वहां पर दीप लगाएगा या बाकी चीजें करेगा तो उसकी प्रतिष्ठा भी सुनिश्चित हो इस बात का भी अधिकार पेशा कानून के तहत है।