मुस्लिम व्यक्ति को बेटी की अभिरक्षा देने से अदालत का इनकार

मुस्लिम व्यक्ति को बेटी की अभिरक्षा देने से अदालत का इनकार

मुस्लिम व्यक्ति को बेटी की अभिरक्षा देने से अदालत का इनकार
Modified Date: April 28, 2025 / 07:24 pm IST
Published Date: April 28, 2025 7:24 pm IST

मुंबई, 28 अप्रैल (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने एक मुस्लिम व्यक्ति को कोई राहत देने से सोमवार को इनकार कर दिया, जिसने पत्नी पर नाबालिग बेटी को जबरन साथ ले जाने का आरोप लगाया था।

अदालत ने कहा कि धर्म के आधार पर कोई निर्णय नहीं किया जा सकता और बच्चे का कल्याण अधिक महत्वपूर्ण है।

व्यक्ति ने उच्च न्यायालय में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में कहा कि वह और उसकी पत्नी दोनों मुसलमान हैं और मुस्लिम कानून के तहत पिता को बच्चे का स्वाभाविक अभिभावक माना जाता है, इसलिए तीन साल की बच्ची की अभिरक्षा याचिकाकर्ता को सौंपी जानी चाहिए।

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याचिका में कहा गया है कि पाकिस्तान में पैदा हुई याचिकाकर्ता की पत्नी 1995 में भारतीय नागरिक बन गई थी और फिलहाल दिल्ली में है, लेकिन उसे (पिता को) आशंका है कि वह बच्ची के साथ भारत से चली जाएगी।

न्यायमूर्ति एस. वी. कोतवाल और न्यायमूर्ति एस. एम. मोदक की खंडपीठ ने सोमवार को याचिका खारिज कर दी और कहा कि धर्म के बजाय बच्ची के कल्याण पर विचार किया जाना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘लिहाजा, ऐसे मामलों में न्यायालय के समक्ष पक्षकार का धर्म ही एकमात्र विचारणीय बिंदु नहीं है। नाबालिग का धर्म भी एक विचारणीय बिंदु है, लेकिन यह निर्णायक कारक नहीं है।’

अदालत ने कहा, ‘हमारे विचार में, तीन साल की बच्ची के लिए उसकी मां की देखरेख में रहना उसके लिए सही होगा। मां अपने और अपनी बेटी के लिए पर्याप्त पैसा कमा कर रही है।’

दोनों ने 2019 में शादी की थी और 2022 में उनके यहां बेटी पैदा हुई थी।

भाषा जोहेब रंजन

रंजन


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