मुंबई, चार दिसंबर (भाषा) मुंबई उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में गिरफ्तारी के पांच साल से अधिक समय बाद बृहस्पतिवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर हनी बाबू को जमानत दे दी।
न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति रंजीतसिंह भोसले की खंडपीठ ने बाबू की जमानत याचिका स्वीकार कर ली। विस्तृत आदेश अभी उपलब्ध नहीं है।
उच्च न्यायालय ने जमानत पर रोक लगाने के राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। एनएआईए ने यह अनुरोध इसलिए किया था ताकि वह उच्चतम न्यायालय में अपील कर सके।
हनी बाबू ने मुख्य रूप से मुकदमे पर सुनवाई के बिना लंबे समय तक जेल में रखे जाने के आधार पर जमानत मांगी थी।
उनके वकील युग मोहित चौधरी ने दलील दी थी कि आरोप अभी तय नहीं हुए हैं और उनकी रिहाई की अर्जी अब भी निचली अदालत में लंबित है।
एनआईए ने हनी बाबू पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) संगठन के नेताओं के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों और विचारधारा के प्रचार में सह-षड्यंत्रकारी होने का आरोप लगाया है।
उन्हें इस मामले में जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और नवी मुंबई की तलोजा जेल में रखा गया था।
यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है। पुलिस ने दावा किया था कि इन भाषणों के कारण अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के समीप हिंसा भड़क उठी थी।
इस हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे।
इस मामले में 12 से अधिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया था, जिसकी जांच शुरू में पुणे पुलिस ने की थी और बाद में एनआईए ने जिम्मा संभाला।
भाषा
गोला जोहेब
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