पुणे, तीन दिसंबर (भाषा) हिंदुत्व विचारक वीडी सावरकर के बारे में कथित टिप्पणी को लेकर राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि के मामले की सुनवाई कर रही एक विशेष अदालत ने बुधवार को कहा कि कांग्रेस नेता को ऐसे किसी आदेश पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, जो अंतिम हो चुका है या जिसे उन्होंने चुनौती नहीं दी है।
राहुल की पैरवी कर रहे अधिवक्ता मिलिंद पवार ने न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रथम श्रेणी) (सांसद/विधायक अदालत के लिए विशेष न्यायाधीश) अमोल एस शिंदे के समक्ष एक अर्जी दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि शिकायतकर्ता सात्यकी सावरकर ने 2023 में ‘‘समन जारी करने का आदेश’’ ठोस सबूतों के आधार पर नहीं, बल्कि ‘‘अनुचित दबाव डालकर’’ और अदालत के समक्ष ‘‘जल्दबाजी और तात्कालिकता का माहौल’’ बनाकर हासिल किया।
वीडी सावरकर के पोते सात्यकी की ओर से पेश हुए अधिवक्ता संग्राम कोल्हटकर ने इस अर्जी पर आपत्ति जताई।
उन्होंने कहा, ‘‘आरोपी ने अदालत के कामकाज पर गंभीर सवाल उठाए हैं। इस अदालत के पूर्व न्यायाधीश ने सभी सबूतों का विश्लेषण करने के बाद आरोपी के खिलाफ समन जारी किया था।’’
न्यायमूर्ति शिंदे ने भी सहमति जताई कि राहुल की अर्जी अदालत के कामकाज पर सवाल खड़े करती है।
उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस नेता को समन जारी किए जाने पर कोई आपत्ति है, तो उन्हें इसे उचित अदालत में चुनौती देनी चाहिए।
न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा, ‘‘लेकिन वह (राहुल) उस आदेश पर टिप्पणी नहीं कर सकते, जिसे उन्होंने चुनौती नहीं दी है। या तो उन्हें आदेश को स्वीकार करना होगा या फिर उसे उचित अदालत में चुनौती देनी होगी। इसलिए यह अदालत निर्देश देती है कि आरोपी किसी ऐसे आदेश पर कोई टिप्पणी न करें, जो अंतिम हो चुका हो या जिसे उन्होंने चुनौती न दी हो।’’
मानहानि की शिकायत में सात्यकी सावरकर ने आरोप लगाया है कि मार्च 2023 में लंदन में दिए गए एक भाषण में राहुल ने कहा था कि वीडी सावरकर ने एक पुस्तक में लिखा था कि वह और उनके पांच से छह साथियों ने एक मुस्लिम व्यक्ति की पिटाई की थी और इससे उन्हें खुशी हुई थी।
शिकायत में कहा गया है कि ऐसा कोई घटना कभी हुई ही नहीं और न ही सावरकर ने इस तरह की कोई बात लिखी थी।
भाषा सिम्मी पारुल
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