पुणे के शोधकर्ताओं ने ब्रह्मांड के प्रारंभिक काल से ही मौजूद एक विशाल सर्पिल आकाशगंगा की खोज की

पुणे के शोधकर्ताओं ने ब्रह्मांड के प्रारंभिक काल से ही मौजूद एक विशाल सर्पिल आकाशगंगा की खोज की

पुणे के शोधकर्ताओं ने ब्रह्मांड के प्रारंभिक काल से ही मौजूद एक विशाल सर्पिल आकाशगंगा की खोज की
Modified Date: December 3, 2025 / 06:00 pm IST
Published Date: December 3, 2025 6:00 pm IST

पुणे (महाराष्ट्र), तीन दिसंबर (भाषा) पुणे स्थित एक खगोल भौतिकी संस्थान के दो शोधकर्ताओं ने अब तक देखी गई सबसे दूरस्थ सर्पिल आकाशगंगाओं में से एक की खोज की है, जो उस समय से अस्तित्व में है जब ब्रह्मांड केवल 1.5 अरब वर्ष पुराना था।

शोधकर्ताओं ने कहा कि यह खोज इस प्रमाण को और पुष्ट करती है कि शुरुआती चरण का ब्रह्मांड पहले की धारणा से कहीं अधिक विकसित था।

शोधकर्ताओं ने कहा कि हिमालय की एक नदी के नाम पर ‘अलकनंदा’ नाम दी गई ये भव्य सर्पिल आकाशगंगा, इस मौजूदा सिद्धांत को चुनौती देती है कि प्रारंभिक जटिल आकाशगंगा संरचनाओं का निर्माण कैसे हुआ।

 ⁠

एक शोधकर्ता ने कहा, ‘‘इतनी सुगठित सर्पिल आकाशगंगा का पता लगना अप्रत्याशित है। इससे पता चलता है कि परिष्कृत संरचनाएं हमारी सोच से कहीं पहले ही बन रही थीं।’’

उन्होंने कहा कि ‘अलकनंदा’ उस समय अस्तित्व में थी जब ब्रह्मांड अपनी वर्तमान आयु का केवल 10 प्रतिशत था, फिर भी यह आकाशगंगा के समान ही प्रतीत होती है।

ये निष्कर्ष यूरोपीय पत्रिका ‘एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स’ में प्रकाशित हुए हैं।

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के ‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ (जेडब्लूएसटी) का उपयोग करते हुए, पुणे के शोधकर्ता राशि जैन और योगेश वाडेकर ने इस आकाशगंगा की पहचान की है।

जैन ने कहा, “अलकनंदा का रेडशिफ्ट लगभग 4 है, जिसका अर्थ है कि उसकी रोशनी पृथ्वी तक पहुंचने में 12 अरब वर्षों से अधिक का समय तय करके आई है।”

‘रेड शिफ्ट’ एक खगोलीय शब्दावली है। सरल शब्दों में कहें तो जब कोई तारा, आकाशगंगा या खगोलीय वस्तु हमसे दूर जा रही होती है, तो उसके द्वारा उत्सर्जित प्रकाश की तरंगें खिंचकर लंबी हो जाती हैं। इससे प्रकाश का रंग लाल (रेड) दिशा की ओर खिसक जाता है। इसी घटना को ‘रेडशिफ्ट’ कहा जाता है।

भाषा शफीक प्रशांत

प्रशांत


लेखक के बारे में