मुंबई, नौ दिसंबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने एक रेल दुर्घटना में चल बसे एक व्यक्ति के परिवार को मुआवजा दिये जाने पर मुहर लगाते कहा कि उपनगरीय ट्रेनों में काम के सिलसिले में व्यस्त समय के दौरान यात्रा करने वाले व्यक्ति के पास ट्रेन के दरवाजे पर खड़े होकर अपनी जान को जोखिम में डालने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता, और इसे लापरवाही नहीं कहा जा सकता।
न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की एकल पीठ ने सोमवार को रेलवे प्रशासन की यह दलील स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि यह दुर्घटना उक्त व्यक्ति के लापरवाह रवैये के कारण हुई, जो ट्रेन के पायदान पर खड़ा था।
केंद्र सरकार ने रेलवे दावा न्यायाधिकरण के दिसंबर 2009 के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। न्यायाधिकरण ने पीड़ित परिवार को मुआवजा देने का आदेश दिया था।
यह व्यक्ति 28 अक्टूबर 2005 को भयंदर से मरीन लाइन्स की ओर यात्रा करते समय ट्रेन से गिर गया और कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई।
पीठ ने रेलवे की इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि यह इस व्यक्ति की लापरवाही थी जिसकी वजह से उसकी जान गयी। पीठ ने कहा कि सुबह के समय विरार-चर्चगेट ट्रेन में बेहद भीड़ होती है और विशेषकर भायंदर रेलवे स्टेशन पर किसी भी यात्री के लिए डिब्बे में प्रवेश कर पाना बहुत कठिन होता है।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘आज भी यही स्थिति है। इसलिए यह तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता कि दरवाज़े के पास खड़े होकर यात्री लापरवाही बरत रहा है। अगर किसी व्यक्ति को अपने काम से यात्रा करनी है और डिब्बे में प्रवेश करना बहुत मुश्किल है, तो यात्री के पास दरवाज़े के पास खड़े होकर अपनी जान जोखिम में डालने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।’’
पीठ ने कहा कि अदालत इस सच्चाई को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती।
रेलवे ने अपनी अपील में यह भी तर्क दिया कि यह व्यक्ति सही यात्री नहीं था, क्योंकि दुर्घटना के समय उसके पास कोई टिकट या पास नहीं मिला था।
हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि इस व्यक्ति की पत्नी ने न्यायाधिकरण के समक्ष अपने पति का लोकल ट्रेन पास और पहचान पत्र पेश किया था, जिससे यह साबित होता है कि दुर्घटना के समय पीड़ित सही यात्री था।
उच्च न्यायालय ने कहा कि पीड़ित परिवार को मुआवजा देने के न्यायाधिकरण के आदेश में कोई खामी नहीं है। इसी के साथ उच्च न्यायालय ने रेलवे की अपील का निस्तारण कर दिया।
भाषा राजकुमार पवनेश
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