Adhik Maas 2026: क्यों 2026 का अधिक मास होगा सबसे ख़ास? 12 की जगह होंगे 13 महीने? जानें 100 गुना फल देने वाले पुरुषोत्तम मास का बड़ा राज़!
हिन्दू पंचांग के अनुसार, साल 2026 में आएंगे दो ज्येष्ठ मास। पुराणों के अनुसार अधिक मास में किया हुआ दान-पुण्य व पूजा अर्चना अन्य 12 महीनों की अपेक्षा अधिक फल देती है। आईये जानते हैं विस्तार से..
Adhik Maas 2026/Image Source: IBC24
- साल 2026 में 13 महीनें, 2 ज्येष्ठ मास: दुर्लभ संयोग!
- पुरुषोत्तम मास 2026: एक माह में 1000 गुना पुण्य कमाने का दुर्लभ योग!
Adhik Maas 2026: हिन्दू धर्म में पंचांग एकमात्र जरिया है जो कि सूर्य और चन्द्रमा की गति पर आधारित है। जब सूर्य और चन्द्रमा की गति आपस में टकराती है तो जन्म होता है “अधिक मास” (Adhik Maas) या “अतिरिक्त मास” का.. एक चंद्र वर्ष में 12 चंद्र मास होते हैं, लेकिन सूर्य वर्ष (लगभग 365 दिन) और चंद्र वर्ष (लगभग 354 दिन) के मध्य 11 दिनों का अंतर होता है यह अंतर (difference) हर 3 सालों में एक पूरा मास के बराबर हो जाता है जो सामान्य 12 मास को 13 मास में बदल देता है।
Adhik Maas 2026: क्यों होता है अधिक मास?
चन्द्रमा को पृथ्वी के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में 29.5 दिन लगते हैं। चंद्र वर्ष और सूर्य वर्ष के बीच का अंतर, हर 3 सालों में मास बन जाता है। जब दो पूर्णिमा या अमावस्या एक ही संक्रांति में आ जाती हैं तो बीच का अंतर अधिक हो जाता है। अधिक मास में सूर्य मिथुन राशि में विराजमान होंगे, इसलिए इस दौरान कोई संक्रांति नहीं होगी। इसी वजह से अधिक मास के दौरान शादी, नामकरण, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते।
Adhik Maas 2026: अधिक मास 2026 की तिथि
साल 2026 में अधिक मास 17 मई 2026 (रविवार) से शुरू होकर 15 जून 2026 (सोमवार) तक रहेगा, जिसमें ज्येष्ठ मास दो बार आएगा। पहला सामान्य ज्येष्ठ और दूसरा अधिक ज्येष्ठ।
विक्रम संवत 2083 के अनुसार, वर्ष 2026 बहुत ही ख़ास माना जा रहा है क्यूंकि ज्येष्ठ मास की कुल अवधि 58 – 59 दिनों की हो जाएगी।
Adhik Maas 2026: क्यों कहते हैं इसे पुरुषोत्तम मास?
पुराणों के अनुसार, अधिक मास को पुरुषोत्तम मास कहते हैं क्यूँकि जब ऋषिगणों ने 12 मास को देवताओं में बांटा, तो अधिक मास बिलकुल अकेला रह गया, कोई भी देवता इस मास का स्वामी बनने के लिए तैयार नहीं था वो इसे मलमास कहकर माज़क उड़ाने लगे। तब भगवान विष्णु, जो कि पुरुषोत्तम हैं.. उन्होंने स्वयं इस मास को अपनाया, इसलिए इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। श्रीमद्भागवत पुराण और स्कन्द पुराण में यह उल्लेख है कि इस मास में की हुई पूजा-अर्चना, दान-पुण्य अन्य 12 मासों की अपेक्षा 100 गुना ज्यादा फल देती है।
Disclaimer:- उपरोक्त लेख में उल्लेखित सभी जानकारियाँ प्रचलित मान्यताओं और धर्म ग्रंथों पर आधारित है। IBC24.in लेख में उल्लेखित किसी भी जानकारी की प्रामाणिकता का दावा नहीं करता है। हमारा उद्देश्य केवल सूचना पँहुचाना है।
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