Krishna Janmashtami
Krishna Janmashtami : पूरे देश में आज धूम-धाम से भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार, जन्माष्टमी का पर्व हर साल भादव माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृ्ष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात्रि में 12 बजे हुआ था। जिस वजह से ही भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा रात्रि में ही की जाती है।
आज भक्तजन जन्माष्टमी का व्रत बड़ी ही श्रद्धा और भाव से करते हैं। हिंदू धर्म में जन्माष्टमी व्रत का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति जन्माष्टमी व्रत करता है वह ऐश्वर्य व मुक्ति को प्राप्त करता है। जातक कीर्ति, यश पुत्र व लाभ आदि को प्राप्त कर सभी प्रकार के सुखों को भोगकर अंत में मोक्ष को जाता है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल की पूजा आधी रात को करने का विधान है। जन्माष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्त 17 अगस्त की मध्य रात्रि 12 बजकर 04 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट तक है। भक्तों को पूजन के लिए 43 मिनट का समय मिल रहा है।
जन्माष्टमी के पावन पर्व में रात्रि में भगवान श्री कृष्ण का जन्म कराया जाता है। भगवान का जन्म खीरे से कराया जाता है। भगवान के जन्म के समय डंठल वाले खीरे का उपयोग किया जाता है। डंठल वाले खीरे को गर्भनाल की तरह माना जाता है। श्री कृष्ण के जन्म के बाद डंठल वाले खीरे को डंठल से उसी तरह अलग कर दिया जाता है जैसे गर्भ से बाहर आने के बाद बच्चे को नाल से अलग किया जाता है।
जन्माष्टमी पर खीरा काटने का मतलब बाल गोपाल को मां देवकी के गर्भ से अलग करना है। आपको पूजा के शुभ मुहूर्त से पहले ही डंठल वाले खीरे को पूजा स्थल पर रख लेना है। शुभ मुहूर्त में सिक्के से खीरे का डंठल काटें और खीरे को डंठल से उसी तरह अलग करें जैसे गर्भ से बच्चे की नाल को किया जाता। भगवान के जन्म की खुशी में शंख बजाएं।
भगवान को जन्म के बाद पंचामृत स्नान अवश्य कराएं। जन्म के बाद भगवान श्री कृष्ण की हल्के हाथों से मालिश करें। मालिश के बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं। इसके बाद चंदन का लेप लगाएं। अब पंचामृत स्नान की तैयारी करें। पंचामृत स्नान के लिए आपको कच्चे दूध, दही, शुद्ध शहद, चीनी और गंगाजल की आवश्यकता होगी। अब भगवान का सबसे पहले कच्चे दूध से स्नान कराएं। इसके बाद दही, शहद, चीनी से स्नान कराएं। अंत में भगवान का गंगाजल से अभिषेक करें। पंचामृत स्नान के बाद भगवान श्री कृष्ण का श्रृंगार करें। भगवान का श्रृंगार संपूर्ण हो जाने के बाद आरती करें और भगवान को भोग लगाएं। भगवान को झूला जरूर झुलाएं।
भये प्रगट गोपाला दीनदयाला यशुमति के हितकारी।
हर्षित महतारी सुर मुनि हारी मोहन मदन मुरारी ॥
कंसासुर जाना मन अनुमाना पूतना वेगी पठाई।
तेहि हर्षित धाई मन मुस्काई गयी जहाँ यदुराई॥
तब जाय उठायो हृदय लगायो पयोधर मुख मे दीन्हा।
तब कृष्ण कन्हाई मन मुस्काई प्राण तासु हर लीन्हा॥
जब इन्द्र रिसायो मेघ पठायो बस ताहि मुरारी।
गौअन हितकारी सुर मुनि हारी नख पर गिरिवर धारी॥
कन्सासुर मारो अति हँकारो बत्सासुर संघारो।
बक्कासुर आयो बहुत डरायो ताक़र बदन बिडारो॥
तेहि अतिथि न जानी प्रभु चक्रपाणि ताहिं दियो निज शोका।
ब्रह्मा शिव आये अति सुख पाये मगन भये गये लोका॥
यह छन्द अनूपा है रस रूपा जो नर याको गावै।
तेहि सम नहि कोई त्रिभुवन सोयी मन वांछित फल पावै॥
नंद यशोदा तप कियो , मोहन सो मन लाय।
देखन चाहत बाल सुख , रहो कछुक दिन जाय॥
जेहि नक्षत्र मोहन भये ,सो नक्षत्र बड़िआय।
चार बधाई रीति सो , करत यशोदा माय॥
यदु- नन्द नन्दन देवकी- वसुदेव नन्दन वन्दनम्।
मृदु चपल नयननम् चंचलम् मनमोहनम् अभिनन्दनम्।।
मस्तक मुकुट पर- मोर , कर मुरली मधुर धर मंगलम्।
तन पीत अम्बर वैजयन्ती कण्ठ , कर्णम् कुण्डलम्।।
गौ ग्वाल गोकुल गोपियाँ , जल जमुन गिरि गोवर्धनम्।
शुचि बाल कौतुक चरित पावन , असुर- रिपु- दल भन्जनम्।।
स्वर्णिम प्रभा सुषमा सुखदतम् नील वर्णम् सुन्दरम्।
वह धन्य है बृज- भूमि जहँ कण- कण रमे राधेश्वरम्।।
कुरुक्षेत्र सारथि- पार्थ नायक महाभारत श्रेष्ठतम्।
सर्वत्र तुम ही विराट हो सर्वज्ञ भी अति सूक्ष्मतम्।।
उपदेश प्रेरित सजग गीता- ज्ञान अर्जुन केशवम्।
अवतार जगदाधार नव उत्थान सन्त सनातनम्।।
क्षिति शेष पद्मा पद्म कर गद शंख चक्र- सुदर्शनम्।
मति भ्रमित भौतिक भोग भव अनुरक्त मन कामायनम्।।
चिर- भक्ति सर्व समर्पितम् उद्घोष जय जगदीश्वरम्।
प्रति- श्वाँस हृदय सुवास हो दृग- दर्श हे! करुणाकरम्।।
मम् मुदित मन- मन्दिर बसो हे ! सतत् श्यामा श्यामलम्।
सद्बुद्धि सद्गति प्राप्य हो उद्धार भक्त- सुवत्सलम्।।
योगेश्वरम् सर्वेश्वरम् राधेरमण ब्रजभूषणम्।
हे! माधवम् मधुसूदनम् जय जयति जय नारायणम्।।
भगवान के जन्म के समय ये गीत गाएं
आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की ।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की ॥
जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की ।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
॥ आनंद उमंग भयो…॥
आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की ।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की ॥
आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
कोटि ब्रह्माण्ड के, अधिपति लाल की ।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की ॥
गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की ।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
कोटि ब्रह्माण्ड के, अधिपति लाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
पूनम के चाँद जैसी, शोभी है बाल की ।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की ॥
आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
कोटि ब्रह्माण्ड के, अधिपति लाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
भक्तो के आनंद्कनद, जय यशोदा लाल की ।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की ॥
जय हो यशोदा लाल की, जय हो गोपाल की ।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
कोटि ब्रह्माण्ड के, अधिपति लाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
आनंद से बोलो सब, जय हो बृज लाल की ।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की ॥
जय हो बृज लाल की, पावन प्रतिपाल की ।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
कोटि ब्रह्माण्ड के, अधिपति लाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥
आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की ।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की ॥
॥ बृज में आनंद भयो…॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
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